देखा जाए तो वे कमीशन-चोर, चिंदी-चोर हैं और बिचौलिया कहने वालों से बकायदा खफ़ा हो जाते हैं । सब जानते हैं कि वे अपने बाप से भी किसी भी प्रकार की डीलिंग करने के लिए पैसे वसूलते हैं । किसी भी चीज में या संपत्ति में एकबार उनके नाम का टैग लग जाए तो वह बिना कमीशन के नहीं मानते। इन दिनों वे श्मशान घाट में डेरा जमाए बैठे हैं। उनका मानना है कि दुनिया आखिरकार थकहारकर यही पर रुक जाती है। इसलिए अपने सारे कमीशनखोरी धंधे यहीं से चलाने की फिराक में हैं।
कमीशनचोर अपने पाले बाउंसरों को अपना सबसे प्रिय कहते हैं । कभी-कभी वे इन्हें पट्ठे, चेले, साथी, बाहुबली, बांए-हाथ वगैरह, कमीशन वसूलक भी कहते पाए जाते हैं । लेकिन ‘वे’ अपने बाउंसरों को कुत्ता कहते हैं, जो वक्त जरूरत ‘छू’ कहने पर दौड़कर छीनने, काटने जाते हैं। हाँ चाटने का एक्सक्लूजिव काम वे स्वयं करते हैं। उनकी देखरेख और कमीशनखोरी पर पले कुत्ते उनके प्रति ‘किसी की भी वसूली’ स्तर तक शरीफ हैं। कमीशन को वसूलने में सक्षम भी । ‘कुत्ते’ जहां-तहां काट-खाट रहते हैं कि- श्मशान घाट में कमीशन-चोर जैसा ‘भयंकर मेहनती’ शायद ही कोई दूसरा हो । हर किसी को मानना पड़ता है । जनतंत्र आपत्ति जताने का अधिकार अवश्य देता है लेकिन सामान्य समझदार भी जानता है कि यहां हाँ में हाँ मिलाना ही सुरक्षित होना है । ऐसे कामों में आजकल ईमानदार मिलते कहां है । सफेदी का धंधा करने वालों के हाथ भी काले दिखाई दे जाते हैं। फिर वे तो घोषित रूप से कमीशन-चोर के दीमक हैं । वे कहते हैं कमीशन कोई भी बुरा नहीं होता, चाहे श्मशान ही क्यों न हो । श्मशान में शरम कैसी, लोग जूता फैंके या ताना मारे !! प्रतिभाशाली दीमक मुर्दे से भी कमीशन वसूल लेते हैं। कहने को कमीशन-चोर एक तरह का जनसेवक कहलाता है ! लेकिन जो भाग्य लिखा कर लाए हैं वे श्मशान घाट में भी महान ही होते हैं । पहले भी उनके ओढ़ने-बिछौने में रुपया होता था, आज भी होता है। पहले जीवित लोग जयजयकार करते थे आज मुर्दे करते हैं। पुराने जमाने में पेड-हिस्ट्री लिखवाई जाती थी आज पेड-न्यूज। उंगली उठाने वालों का मस्तकाभिषेक पहले भी किया जाता था आज भी होता है ।
छोड़िए, इन सब बातों से क्या लेना-देना । आप तो बस इतना भर जानिए कि वे भयंकर कमीशन-चोर हैं । श्मशान घाट के चप्पे-चप्पे में उनकी शराफत का आतंक है । वे शराफत से दस रुपए रोज भी नहीं कमा पाते हैं इसलिए नियमानुसार भोले-भाले होने का दावा करते रहते हैं। गाय की शक्ल में लोमड़ी हैं। सरकार गरीबी हटाने की , या यों कह लीजिए कि निर्धनता मिटाने की अनेक योजना बनाती आ रही है। वे इन योजनाओं के भी दीमक हैं । सबकी निर्धनता मिटे न मिटे, लेकिन उनके नाम पर कमीशन कमाकर अपनी निर्धनता मिटाने की अपार क्षमता रखते हैं।
आंखों में तैरते गहरे-गहरे लाल डोरे उनके कमीशनखाऊ होने का सबूत है । वे कहते हैं कि सेवाभावना उनके खून में है और खून के आखरी कतरे तक वे देश की सेवा करेंगे, कोई माई का लाल उन्हें सेवा करने से रोक नहीं सकता है । कोई विरोध करने का प्रयास करेगा तो उनके कुत्ते रूपी बाउंसर तो हैं ही। कुत्तों के जरिए उसका खून पी जाएंगे लेकिन किसी को अपनी सेवा से वंचित नहीं करेंगे। सभी को चाहिए कि उनके जैसे त्यागी और समर्पित व्यक्ति को महापुरुष घोषित कर अपना कर्तव्य पूरा करे । वरना वे शरीफ हैं और मेहनती भी । किसी दिन राष्ट्रपति भवन में घुस गए तो ‘भारत रत्न’ उठा लाएंगे और फिर लौटाएंगे नहीं ।