लोकसभा चुनाव : रण के लिए भाजपा के ‘सेनापति’ तैनात, जिलाध्यक्षों में अगड़ों पर दांव, पिछड़ों को भी तवज्जो
लखनऊ
भाजपा के 98 जिलाध्यक्षों में मात्र पांच दलित वर्ग से हैं जबकि अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 22 फीसदी से अधिक है। वहीं आधी आबादी को भी पांच प्रतिशत से कम प्रतिनिधित्व दिया है। केवल चार महिलाओं को जिले की कमान दी गई है। निवर्तमान जिलाध्यक्षों में तीन महिलाएं थीं।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के रण के लिए जिलाध्यक्षों के रूप में अपने सेनापतियों की टीम तैनात कर दी है। चुनाव से ठीक छह महीने पहले घोषित जिलाध्यक्षों की सूची में पार्टी ने अगड़ों को तवज्जो दी है। लेकिन, पिछ़ड़ों को भी पूरी तरजीह देकर सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन बनानेका प्रयास किया गया है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 80 सीटें जीतने और 60 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। पार्टी ने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए करीब दो महीने की मशक्कत के बाद जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है। इन्हीं 70 फीसदी नए चेहरों की टीम के साथ पार्टी ने चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया। इसी टीम के ऊपर लोकसभा चुनाव का पूरा दारोमदार होगा। लिहाजा पार्टी ने प्रत्येक क्षेत्र में वोट बैंक व जातियों के सामाजिक समीकरण को देखकर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है।
पार्टी के 98 जिलाध्यक्षों की सूची में अगड़ी जातियों से 57 लोग शामिल हैं। इनमें ब्राह्मण समाज से 21, ठाकुर समाज के 20, वैश्य समाज के 8, कायस्थ समाज के 5 और भूमिहार समाज से 3 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। वहीं पिछड़े वर्ग से कुल 36 लोगों को जिलों की कमान सौंपी गई है। इसमें पार्टी ने अपने परंपरागत जाट, गुर्जर, कुर्मी, सैनी, मौर्य, शाक्य, कुशवाहा, लोधी और पाल समाज को पूरा मौका दिया है। पार्टी के एक जिम्मेदार नेता का कहना है कि वर्तमान में इंडिया गठबंधन के कई नेता सनातन विरोधी बयान देकर जातीय खाईं बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी ने अपने परंपरागत अगड़े वोट बैंक पर भरोसा जताने के साथ पिछड़े वर्ग को पूरा सम्मान देने का काम किया है।
दलितों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम
भाजपा के 98 जिलाध्यक्षों में मात्र पांच दलित वर्ग से हैं। जबकि अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 22 फीसदी से अधिक है। वहीं आधी आबादी को भी पांच प्रतिशत से कम प्रतिनिधित्व दिया है। केवल चार महिलाओं को जिले की कमान दी गई है। निवर्तमान जिलाध्यक्षों में तीन महिलाएं थीं।
एक भी मुस्लिम और सिख नहीं
भाजपा ने मूल संगठन में एक भी मुस्लिम या सिख समाज के कार्यकर्ता को प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों की सूची में भी एक भी मुस्लिम और सिख नहीं है। उल्लेखनीय है कि भाजपा पसमांदा मुस्लिम समाज के वोट बैंक को साधने का प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय टीम में एएमयू के पूर्व कुलपति डॉ. तारिक मंसूर को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
राजभर और निषाद को भी नहीं मिल सकी जगह
पार्टी के जिलाध्यक्षों में राजभर और निषाद समाज से एक भी कार्यकर्ता को मौका नहीं दिया गया है। जबकि, इन दोनों समाज के वोट बैंक के लिए पार्टी ने सुभासपा और निषाद पार्टी से गठबंधन किया है।
संघ की राय को तवज्जो
भाजपा के जिलाध्यक्षों की सूची में आरएसएस को भी पूरी तवज्जो दी गई है। सूची पर पश्चिम और पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख संघ पदाधिकारियों से भी रायशुमारी ली गई।
कामकाज के बूते बची सीट
भाजपा ने जिन 29 जिलाध्यक्षों को फिर मौका दिया है वह अपने कामकाज के बूते सीट बचाने में कामयाब रहे हैं। कुछ मौजूदा जिलाध्यक्षों को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का वरदहस्त भी था। स्थानीय सांसद और विधायक उन्हीं के पक्ष में थे। सूची में प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के करीबी लोगों को भी मौका दिया गया है।
जोखिम का साहस दिखाया
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने चुनाव से पहले इतने बड़े पैमाने पर बदलाव कर जोखिम लेने का साहस दिखाया है। करीब दो महीने की मशक्कत में कई ऐसे नेताओं को मौका दिया गया है, जो पूर्व में जिलाध्यक्ष या अन्य महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं। इनमें पश्चिमी यूपी में सुधीर सैनी, वेदपाल उपाध्याय, सुरेश जैन (ऋतुराज) और शिव कुमार राणा जैसे नेताओं की टीम में फिर से वापसी हुई है। निवर्तमान टीम में इन्हें मौका नहीं मिला था।
मोदी और योगी के क्षेत्र में बदलाव नहीं
जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर और केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल के संसदीय क्षेत्र आगरा में महानगर और जिला के अध्यक्ष नहीं बदले गए हैं।