
प्रयागराज।दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष प्रख्यात दलित महिला साहित्यकार अनिता भारती जो दलित लेखिका और आंदोलनकर्मी हैं।बुधवार को दिल्ली से चलकर यमुनापार की तहसील बारा विकास खण्ड जसरा स्थित जसरा गांव में प्रबुद्ध फाउंडेशन के तत्वाधान में सात से सत्रह आयु वर्ग के बच्चों के सृजनात्मक कलात्मक और व्यक्तित्व विकास के लिए चलाई जा रही एक तेईस दिवसीय प्रस्तुतिपारक ग्रीष्मकालीन प्रबुद्ध बाल रंगशाला में “बहुजन बाल रंगमंच: दशा और दिशा”पर अपने विचार प्रकट की।दलेस की पूर्व अध्यक्ष अनीता भारती बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कहा कि सुविधाविहीन बहुजन समाज के बच्चों को उचित मंच नहीं मिल पाता। नामी गिनामी सांस्कृतिक संस्थाएं भी बहुजन समाज के बच्चों पर ध्यान न देकर पहले से ही कुछ न कुछ पारंगत बाल कलाकरो को ही मंच प्रदान करते है जबकि रंगमंच की विविध कला आयामों की उत्पत्ति ग्रासरुट समाज से ही हुई है।अनीता भारती ने आगे बताया कि भले ही बहुजन समाज को राजनैतिक बराबरी मिल चुकी है परन्तु सामाजिक बराबरी से बहुजन समाज कोशो दूर है। तथाकथित शिक्षित वर्ग भी इस सामाजिक असमानता के लिये काफी हद तक जिम्मेदार है। स्वार्थी लोगो ने समानता प्रदान करने वाली बहुजन संस्कृति का विनाश किया है जिसे हमें पुनः पुनर्जीवित और विकास करना होगा। इस दिशा में प्रबुद्ध फाउंडेशन देवपती मेमोरियल ट्रस्ट और डा.अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा) के संयुक्त तत्वावधान में चलाई जा रही प्रस्तुतिपरक ग्रीष्मकालीन प्रबुद्ध बाल रंग कार्यशाला के संयोजक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता आईपी रामबृज का योगदान सराहनीय है।डा. गीता शाक्य असिस्टेंट प्रोफेसर और समाज सेविका बविता बौद्ध बतौर विशिष्ट अतिथि अपने सम्बोधन में कहा कि रंग कार्यशाला बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा को निकालकर उसे निखारने का काम करता है। आज हम दूसरे के त्योहारों को अपना त्योहार मनाकर खुशी मनाते है जबकि भारत का बहुजन समाज सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग है। उस समय की सभ्यता और संस्कृति जो समता पर आधारित थी उस श्रमण संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।कार्यशाला में डायमंड पब्लिक स्कूल के प्रबन्धक हीरा लाल, राजू राय, अंकित, करन,अभय राज सिंह, फूल चंद्र,राजेंद्र प्रसाद,उर्मिला मीरा,अंगूरा,विटोला,रिया,सीटू, काजल,सलोनी,आंचल,मानसी सोनम,आराध्या,मोनिका,साक्षी सहित बच्चों के अभिभावक उपस्थित रहे।