September 20, 2024

ललितपुर। अगस्त क्रांति की वर्षगांठ पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि 7 अगस्त 1942 को जैसे ही गाँधी ने देशवासियों को करो या मरो का मूलमंत्र देकर अंग्रेजों भारत छोड़ो का शंखनाद किया – दो दिन के भीतर अंग्रेजों का तख्तापलटने के षडयंत्र के तहत गांधी जी, पत्नी कस्तूरबा सहित सभी अनुयायियों को जेल में डाल दिया। फलतः प्रदर्शन, सत्याग्रह, हड़तालों से देश का आँगन गूंज उठा। लगभग 2 हजार सेनानी पुलिस के हाथों शहीद हुए। 60 हजार जेल गए। अंग्रेजों ने गंगा किनारे का मालपानी – इंग्लैंड की टेम्स के किनारे तक निचोड़ने के लिए जो रेलों के साथ संचार व्यवस्था बनाई थी, अगस्त क्रांति में वह उनके लिए गले की फांसी सिद्ध हो गई क्योंकि करो या मरो तथा अंग्रेजों भारत छोड़ो का संदेश बम्बई के और भारत के सभी रेल्वे के देशभक्त स्टेशन मास्टरों ने सेकेंडों में नेताओं की गिरफ्तारी का संदेश पहुंचा दिया। आंदोलन ने आम जनता को इतना झकझोर दिया कि जनता की धड़कती नाड़ी पर हाथ रखते हुए शायर अकबर इलाहाबादी को महसूस हुआ कि बुद्धू मियां ( समाज के अंतिम उपेक्षित वंचित व्यक्ति) भी हजरते गाँधी के साथ हैं,
गोगर्देराह(धूल कण) हैं, मगर आँधी के साथ हैं
स्वतंत्रता संग्राम के अहिंसक सेनापति गांधीजी ने अगस्त क्रान्ति के समय जनशक्ति की मंशा भांपकर , जब ‘ अँग्रेजो भारत छोड़ो ‘ का जयघोष किया तब अपने धोती परिधान ( बुन्देली में पर्दनी या परदनियां ) को छोड़ा नहीं , बल्कि धोती को मोड़कर उसे एक हाफपेंट में बदलकर वे एक सैनिक की भांति कूद पड़े । उनके प्रतिज्ञाबद्ध तने हुए हाथ की तर्जनी , द्वापर के और आधुनिक युग के मोहन मानों यह संदेश दे रहे हैं कि स्वाधीन भारत की विवेकशील जनता , एक उँगली पर ही , सारी जिम्मेदारियों का गोवर्धन पर्वत उठा लेगी
नि:सन्देह कैमरे से खींचा गया गाँधीजी द्वारा छेड़ी गई पुर-अमन बगाबत का यह श्वेत-श्याम चित्र इतना दुर्लभ है , जिसकी अग्रिम पंक्ति में जीत दिलाने के लिए अपराजिता नारी शक्ति कृत संकल्पित दिखाई दे रही है ।
संयोगवश, ललितपुर में अनादिकाल से एक गांव का नाम करमरा भी है, जो द्वापर के मोहन के गीता के निचोड़ – दो शब्दों वाले कर को न जाने कब से व्यक्त कर रहा है। वर्तमान युग के मोहनदास गांधी ने करो या मरो का नारा देकर सिद्ध कर दिया है कि करने वाला ही मृत्यु के बाद भी अमर रहता है। सन् 1942 के महासंग्राम में भाग लेने वाले योद्धाओं की लंबी माला में ललितपुर जैसे अति छोटे से जिले के दो शहीद होने वाले मोतियों में से एक हैं बाबूलाल फूलमाली, दूसरे डालचन्द जैन , जिनकी शहादत की चमक कभी भी फीकी नहीं पड़ सकती।

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