October 31, 2024
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गाजीपुर । आगामी ग्रीष्म ऋतु में जन समुदाय को जागरूक करने और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अभी से ही तैयारियाँ शुरू कर दी है। इस क्रम में जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन शुक्रवार को किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ देश दीपक पाल ने बताया कि राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम, भारत सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है, जिसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के कारण हीट वेव (लू), हीट स्ट्रोक (तापघात), कोल्ड वेव, अतिवृष्टि और सुखा जैसी परिस्थितियों और वायु प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से व्यापक बचाव का कार्यक्रम संचालित किया जाना है। इससे बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। सीएमओ ने बताया कि पहले दिन ग्रीष्म ऋतु के दौरान भीषण गर्मी, सम्भावित हीट वेव (लू), हीट स्ट्रोक (तापघात) तथा वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों के लक्षणों, निदान, उपचार तथा बचाव को लेकर चिकित्सकों तथा पैरा मेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित किया गया। दूसरे दिन यानि शुक्रवार को स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारियों, स्वास्थ्य पर्यवेक्षकों और ब्लाक कार्यक्रम प्रबंधकों का प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान गैर संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी व एसीएमओ डॉ मनोज कुमार सिंह तथा संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी व एसीएमओ डॉ जेएन सिंह ने बदलते मौसम में फैलने वाली बीमारियों की समय पर सूचना प्राप्त करने एवं बचाव संबंधी गतिविधियां आयोजित करने की बात कही।
प्रशिक्षक डॉ अभिनव सिंह एवं डॉ शाहबाज़ खान ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में बच्चों से लेकर वृद्धजन को बेहोशी, मांसपेशियों में जकड़न, मिर्गी दौरा पड़ना, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, अधिक पसीना आना, कमजोरी, चक्कर आना, सांस व दिल की धड़कन तेज होना, मिचली और उल्टी आना, नींद पूरी न होना आदि परेशानी हो सकती है। इससे बचाव के लिए प्राथमिक उपचार बेहद जरूरी है। इसके साथ ही लोगों को घर से निकलने से पहले पानी पीकर निकलना चाहिए और थोड़े-थोड़े समय पर पानी पीते रहना चाहिए। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं हो पाती। शुद्ध व ताजा भोजन का प्रयोग करने के अलावा भोजन बनने के तीन घंटे बाद बचे हुये भोजन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कार्यशाला का संचालन जिला मलेरिया अधिकारी मनोज कुमार ने किया। इस मौके पर चिकित्सा अधिकारी, स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, स्वास्थ्य पर्यवेक्षक, ब्लाक कार्यक्रम प्रबंधक, फार्मासिस्ट और लैब टेक्नीशियन मौजूद रहे।

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