May 2, 2024
लखनऊ कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन 2009 में जीती गई 21 सीटों पर पुख्ता रणनीति बनाकर तैयारी तेज करेगी। इसमें 12 सीटें मध्य उत्तर प्रदेश की हैं। यह फैसला सोमवार को प्रदेश कार्यालय में हुई पार्टी के पूर्व पदाधिकारियों, जिला एवं शहर अध्यक्षों की बैठक में लिया गया।विभिन्न जिलों से आए पदाधिकारियों ने सियासी समीकरण के बारे में जानकारी दी। बूथ कमेटी से लेकर जातीय समीकरण पर भी चर्चा हुई। पार्टी नेताओं ने कहा कि प्रदेश की 80 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी रखनी होगी। इसमें 2009 में जीती गई 21 सीटों पर विशेष रूप से चर्चा हुई। पहले चरण में पार्टी के वरिष्ठ नेता इन सभी सीटों पर फोकस करेंगे। इन 21 सीटों पर अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में फ्रंटल संगठन अलग- अलग कार्यक्रम करेंगे। जातीय गणित का ध्यान रखते हुए जहां जिस जाति की आबादी अधिक होगी, वहां उनसे जुड़े जातीय सम्मेलन होंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी ने कहा कि महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर हर जिले में धरना- प्रदर्शन शुरू किया जाएगा। उन्होंने प्रदेश के विभिन्न जिलों में आई बाढ़ में जनता का सहयोग करने की अपील की। यह भी कहा कि मथुरा- वृन्दावन और पूर्वाचल में बाढ़ से परेशान लोगों की मदद के लिए कांग्रेस के पदाधिकारी सक्रिय भूमिका निभाएं। भाजपा के रवैए का पर्दाफाश करें। इस दौरान सभी ने एक स्वर से लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत सुनिश्चित कराने का संकल्प लिया। बैठक में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री, प्रांतीय अध्यक्ष पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, अनिल यादव, हरीश बाजपेई, अनिल अमिताभ दुबे, श्याम किशोर शुक्ला, अमरनाथ अग्रवाल, सीमा चौधरी आदि ने संबोधित किया। बैठक का संचालन पूर्व संगठन सचिव विजय बहादुर ने किया।
लखनऊ उत्तर प्रदेश में 1573 स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएनएम) को मंगलवार को लोकभवन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नियुक्ति पत्र वितरित किया। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि 1573 एएनएम प्रदेश की तस्वीर बदलने के लिए है। नीति आयोग की रिपोर्ट बता रही है कि यूपी बीमारू राज्य से बाहर निकला है। पहले करीब पौने छह करोड़ दिन हीन स्थिति में थे। अब करीब इनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। दो साल में स्वास्थ्य शिक्षा क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है। यूपी विकास की प्रक्रिया से जुड़ा है। सीएम ने कहा कि बहराइच, बस्ती संभल, खीरी, बांदा सहित कई जिलों में पूर्वर्ती सरकार ने ध्यान नहीं दिया। यहां अभियान चलाया गया, जिसकी वजह से व्यापक स्तर पर सुधार हुआ। 100 असेवित  ब्लाक चुने गए। वहां सुधार हुआ। टीकाकरण का कवरेज 98 फीसदी हो गया है। इसमें एएनएम की बड़ी भूमिका है। आशा वी एएनएम की ताकत का मूल्यांकन नहीं किया गया लेकिन अब इनकी ताकत का अहसास हो गया है। पहले गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से बच्चे मरते थे। लेकिन 2017 के बाद बच्चों की मौत नही हो रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले 10 से 15 जिलों में कोई मेडिकल कॉलेज...
विगत नौ वर्ष में मोदी सरकार विकास एवं सशक्तीकरण के अनेक आयाम स्थापित किये हैं, सरकार ने ऐसी गरीब कल्याण की योजनाओं को लागू किया गया है, जिससे भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए है एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है। वर्ष 2005 से 2020 तक देश में करीब 41 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं तब भी भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जहां गरीबी सर्वाधिक है। भारत और इसकी अर्थव्यवस्था की सफलताओं व संभावनाओं की बुनियाद में राजनीतिक स्थिरता, मोदी सरकार की दूरगामी एवं गरीबी उन्मूलन की योजनाओं की बड़ी भूमिका है। यूएनडीपी की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के आंकडे भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। साल 2005-06 में देश में करीब 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी-रेखा के नीचे जी रहे थे। वर्तमान में अब यह संख्या काफी कम होकर वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार भारत में कुल 23 करोड़ गरीब हैं। बावजूद इसके यह स्पष्ट संकेत है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए विचारों एवं कल्याणकारी योजनाओं पर विमर्श के साथ गरीबों के लिये आर्थिक स्वावलम्बन-स्वरोजगार की आज देश को सख्त जरूरत है। गरीबों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने एवं उनके वोट बटोरने की स्वार्थी राजनीतिक मानसिकता से उपरत होकर ही संतुलित समाज संरचना की जा सकती है। मोदी सरकार राजनीतिक रूप से स्थिर रही हैं और इनकी प्राथमिकताओं में गरीबी उन्मूलन प्रमुखता से शामिल रहा है। महान् अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार भी स्थिर थी और उन्होंने भी गरीबी उन्मूलन के ठोस उपक्रम किये। उनकी सरकार के समय से ही यह प्रयास निरन्तर जारी है। अनूठी बात यह है कि ये दोनों सरकारें दो विपरीत राजनीतिक ध्रुवों पर खड़ी रही हैं, पर इनका आर्थिक दर्शन एक रहा है। मगर भारतीय अर्थव्यवस्था के नीति-नियंताओं को इसकी कुछ विसंगतियों को गंभीरता से देखने की जरूरत है। देश में गरीबी का अंत जितना जरूरी है, आर्थिक विषमताओं से निपटना उससे कम अहम नहीं है। ऑक्सफेम की हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि देश की 60 फीसदी संपत्ति सिर्फ पांच प्रतिशत भारतीयों के पास है, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा है। हमें इस बात की खुशी है और होनी चाहिए कि हमने डेढ़ दशकों में इतने करोड़ों लोगों को गरीबी-रेखा से ऊपर उठाया, मगर हम इस तथ्य की भी अनदेगी नहीं कर सकते कि 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है। एक अच्छी-खासी तादाद में हमारे करोड़पति-अरबपति दूसरे देश जाकर बस भी रहे हैं। क्या भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले अरबपतियों पर कोई प्रभावी दण्ड व्यवस्था लागू नहीं होनी चाहिए ? भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों को इन विसंगतियों पर नियंत्रण पाने के तार्किक रास्ते तलाशने होंगे। हम नहीं भूल सकते कि हमारी गरीबी की रेखा जिस स्तर पर तय होती है, उसके ऊपर भी जीवन काफी कठिन है। इसलिए इन खुशनुमा आर्थिक तस्वीरों को हाशिये के करोड़ों भारतीयों के लिए सुखद बनाने की कवायद की जाए। जिन दो एजेंसियों ने भारत की सुखद एवं खुशहाल आर्थिक तस्वीर प्रस्तुत की है, उस तस्वीर में एक वर्तमान भारत से संबंधित है, दूसरी भविष्य के भारत के संबंध में। दोनों ही तस्वीर नये भारत, सशक्त भारत, विकसित भारत एवं दूसरी की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने की बात को उजागर कर रही है। इन सुखद क्षणों में अधिक सावधानी एवं सर्तकता अपेक्षित है। यह अधिक चुनौतीपूर्ण दौर है, क्योंकि भारत अमीर-गरीब के बीच बढ़ रहा फासला एक चिन्ता का कारण है, जिस बड़ा राजनीतिक मुद्दा होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से यह मुद्दा कभी भी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना। शायद राजनीतिक दलों की दुकानें इन्हीं अमीरों के बल पर चलती है और गरीबी कायम रहना उनको सत्ता दिलाने का सबसे बड़ा हथियार है। दुर्भाग्यपूर्ण है
sunroof और moonroof के बीच है ये खास अंतर नई दिल्ली । अधिकतर लोगों को सनरूफस मूनरूफ और पैनोरमिक सनरूफ को कन्फ्यूजन रहता है। इसी कन्फ्यूज को दूर करने के लिए आपके लिए एक खास ऑर्टिकल लेकर आए हैं, जहां हम बात करने वाले हैं सनरूफ और मूनरूफ के बारे में। देश में इस समय सनरूफ गाड़ियों का आप क्रेज देख सकते हैं। यही वजह है कि वाहन बनाने वाली कंपनियां इस समय अपनी गाड़ियों में इस फीचर्स को जोड़ने लगी हैं। हालिया पेश हुई होंडा एलिवेट, मारुति इनविक्टो और किआ सेल्टोस फेसलिफ्ट को आप उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। सनरूफ किसे कहते हैं? वह डिवाइस जो गाड़ी की छत को खोलता है, ऊपर से धूप गाड़ी के अंदर प्रवेश करती है, उसे सनरूफ कहा जाता है। सनरूफ का सबसे अधिक फायदा ये है कि स्टैंडर्ड ग्लास क्षेत्र की तुलना में बाहर से अधिक रोशनी देता है। केबिन को ज्यादा गरम होने से बचाने के लिए सनरूफ के साथ सनब्लाइंड और टिंट हमेशा शामिल किया जाता है। इससे केबिन को बड़ा दिखाता है और अधिक प्राकृतिक रोशनी मिलता है। मूनरूफ किसे कहते हैं? मूनरूफ एक फ्लैट कांच की खिड़की है, जो पूरे छत क्षेत्र को कवर करती है। इसे कई वाहनों पर इंस्टाल किया जाता है, क्योंकि यह आपको धूप, बारिश और अन्य तत्वों से सुरक्षित रहते हुए अपने वाहन से बाहर देखने की अनुमति देता है। सनरूफ और मूनरूफ के बीच का अंतर? इन दोनों की बीच के अंतर के बारे में बता करें तो, सनरूफ एक ग्लास या धातु का पैनल होता है जो कार, ट्रक या एसयूवी की छत पर इंस्टाल किया जाता है। जो गाड़ी के अंदर सीधे धूप या फिर रोशनी आने की इजाजत देता है। वहीं मूनरूफ आम तौर पर एक स्पष्ट या रंगा हुआ ग्लास पैनल होता है, जो गाड़ी के छत और हेडलाइनर के बीच स्लाइड करता है और ताजी हवा में आने के लिए अक्सर खुला झुका हुआ होता है। Panoramic Sunroof ज्यादातर कार निर्माता कंपनियां इस प्रकार के सनरूफ को अपने टॉप-स्पेक मॉडल में विकल्प के रूप में जोड़ रहे हैं। Panoramic Sunroof कार की पूरी छत को लगभग ठक लेता है। इसे दो पार्ट में विभाजित किया जाता है। भारत में Jeep Compass,...
तमिलनाडु प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने कहा कि पार्टी चाहती है कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक के दौरान मेकेदातु बांध मुद्दे पर कर्नाटक सरकार की कार्रवाई की निंदा करेंगे। उन्होंने कहा कि जब कावेरी प्रबंधन बोर्ड मौजूद है तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि वह तमिलनाडु को पानी नहीं देंगे। बीजेपी नेता ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री कर्नाटक की कार्रवाई की निंदा किए बिना तमिलनाडु लौटते हैं, तो पार्टी काले झंडे के साथ प्रदर्शन करेगी। एक बयान में उन्होंने कहा कि पार्टी सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ बिजली दरों में बढ़ोतरी के खिलाफ 23 जुलाई को विरोध प्रदर्शन करेगी। अन्नामलाई ने कहा कि पार्टी पूरे तमिलनाडु में 12,600 ग्राम पंचायतों में विरोध प्रदर्शन करेगी। बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक पर कड़ा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी इसके बारे में जानना नहीं चाहता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति के खिलाफ गठबंधन तीन महीने से ज्यादा नहीं टिकेगा।
बलरामपुर / राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अभिषेक सिंह,जिला संगठन मंत्री हिमांशु मिश्रा के नेतृत्व में...
गुजरात की एक सत्र अदालत ने जासूसी करने और भारत के सैन्य ठिकानों के बारे में गोपनीय जानकारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) को लीक करने के आरोप में सोमवार को तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अंबालाल पटेल की अदालत ने मौत की सजा के लिए अभियोजन पक्ष की अपील खारिज कर दी और कहा कि तीनों व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध “दुर्लभ से दुर्लभतम” श्रेणी में नहीं आता है। अदालत ने कहा कि तीनों को रोजगार भारत में मिला, लेकिन उनका प्रेम और देशभक्ति पाकिस्तान के लिए थी। अदालत ने यह भी कहा कि “भारत में रह कर भारत के नागरिक के रूप में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले व्यक्ति को स्वेच्छा से देश छोड़ देना चाहिए, या सरकार को उन्हें ढूंढना चाहिए और पाकिस्तान भेज देना चाहिए”। अदालत ने 2012 के मामले में सिराजुद्दीन अली फकीर (24), मोहम्मद अयूब (23) और नौशाद अली (23) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), शासकीय गोपनीयता अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में दोषी ठहराया। तीनों को आईपीसी की धारा 121, 121 (ए) और 120 (बी) और आईटी अधिनियम की धारा 66 (एफ) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, साथ ही शासकीय गोपनीयता अधिनियम की धारा 3 के तहत 14 साल के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 123 (युद्ध छेड़ने की साजिश को छिपाना) के तहत 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई। सभी सजाएं एक साथ जारी रहेंगी। अहमदाबाद शहर की अपराध शाखा ने 14 अक्टूबर 2012 को जमालपुर इलाके के निवासी फकीर और अयूब को अहमदाबाद और गांधीनगर सैन्य छावनी से संबंधित गोपनीय जानकारी आईएसआई को देने के आरोप में गिरफ्तार किया था। एक अन्य आरोपी और जोधपुर निवासी नौशाद अली को दो नवंबर 2012 को जोधपुर सैन्य छावनी और बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) मुख्यालय के बारे में जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जामनगर स्थित एक संदिग्ध आईएसआई एजेंट को भी गिरफ्तार किया गया। लेकिन सबूतों के अभाव में उसे फरवरी 2013 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत बरी कर दिया गया था। बाद में, वह मामले में सरकारी गवाह बन गया। आरोपपत्र के अनुसार, फकीर, अयूब और अली ने संदेशों को ईमेल के ‘ड्राफ्ट’ में सेव किया, लेकिन भेजा नहीं। पाकिस्तानी अधिकारी उस ईमेल खाते को खोलकर ‘ड्राफ्ट’ में पड़े ईमेल को पढ़ते थे।