November 24, 2024

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नई दिल्ली:  एक समय आता है जब हम अपनी बाइक को सेल करने का सोचने लगते हैं। उसके पीछे कई कारण भी हो सकते हैं। अगर आप भी ऐसा ही कुछ सोच रहे हैं तो आज हम आपके काम को आसान बना देगे। अगर आप अच्छी कीमत पर अपनी बाइक को बेचना चाहते हैं , तो आपको इन बातों का जरूर ख्याल रखना चहिए। आपको सबसे पहले ये तय करना होगा कि आपकी बाइक पूरी तरह से क्लीन हैं कि नहीं और ठीक से काम तो कर रही है। सही खरीदार खोजे अपनी बाइक सही आदमी को खोजकर बेचना और उससे अच्छी कीमत पर बेचने अपने आप में ये बड़ा काम है। क्योंकि कई बार लोग बाइक खरीदकर उसका इस्तेमाल अपराध के लिए करते हैं। इसलिए सबसे पहले आपको ये सेलेक्ट करना होगा कि आपका खरीदार बढ़िया है कि नहीं। आप अपनी बाइक को किसी डीलर या ग्राहक को बेच सकते हैं जो पुरानी बाइक खरीदने का प्लान बना रहा है। इतना ही नहीं धोखाधड़ी से बचने के लिए आप जिस व्यक्ति को बाइक बेच रहे हैं उसकी पूरी डिटेल को जरुर खोज लें। डॉक्यूमेंटेशन को लेकर न बरतें लापरवाही बहुत से लोग आलस के कारण बाइक बेचते समय प्रॉपर डॉक्यूमेंटेशन नहीं करते हैं। अगर आप भी अपनी बाइक को बेचना का प्लान बना रहे हैं और आप चाहते हैं कि बेचने के बाद आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो आप गाड़ी को ट्रांसफर करने के बाद ही राहत की सांस लें। जब आप अपनी बाइक को बेचने का प्लान बना रहे हैं तो सबसे पहले बाइक के सभी दस्तावेज को रख लें, ताकि आपको बाइक बेचते समय किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। इस मामले में आपको बाइक ओनरशिप सर्टिफिकेट, प्रदूषण सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस, सेल्स एग्रीमेंट और कुछ अन्य डॉक्यूमेंट को भी संभाल कर रख ले। बाइक के लिए बीमा ट्रांसफर करना जिन प्रमुख नियमों के बारे में लोग आमतौर पर नहीं जानते हैं उनमें से एक यह है कि खरीद के 14 दिनों के भीतर बीमा को बाइक के लिए ट्रांसफर कर दिया जाना चाहिए। वाहन के बीमाकर्ता को बिक्री के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। ट्रांसफर होने के बाद आपके गाड़ी का मालिकाना हक दूसरे व्यक्ति की हो जाएगी।
मानसून सत्र में दोनों सदनों में सुचारू रूप से चलें इसके लिये सर्वदलीय बैठक में सहमति भले ही बनी हो, लेकिन अब तक के अनुभव के अनुसार यह सत्र भी हंगामेदार ही होना तय है। भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए विपक्ष ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया)’ नाम के नए गठबंधन की घोषणा कर दी है। नए गठबंधन के नेता संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी कर चुके हैं। मानो विपक्षी दलों ने प्रण कर लिया है कि वह इस सत्र को भी सुगम तरीके से नहीं चलने देगा। हम पिछले कुछ वर्षों से देख रहे हैं कि किस प्रकार संसद के सत्र छोटे पर छोटे होते जा रहे हैं और साल में संसद बामुश्किल 55 या 56 दिन के लिए ही बैठती है और उसमें भी सार्थक चर्चा होने के स्थान पर सत्ता व विपक्षी खेमों के बीच एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोपों की बौछार होती रहती है और भारी शोर-शराबा मचता रहता है या बैठकें बार-बार स्थगित होती रहती हैं। विपक्ष का आक्रामक रुख और हंगामा उचित नहीं है। उसे अपनी छवि सुधारनी चाहिए। हर बार की तरह इस बार भी संसदीय अवरोध कायम रहता है तो इससे लोकतंत्र कमजोर ही होगा। लोकतंत्र में संसदीय अवरोध जैसे उपाय किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। इस मौलिक सत्य व सिद्धांत की जानकारी से आज का पक्ष एवं विपक्षी नेतृत्व अगर अनभिज्ञ रहता है, तो यह अब तक की हमारी लोकतांत्रिक यात्रा की कमी को ही दर्शाता है। यह स्थिति देश के लिये नुकसानदायी है, इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की काली छाया से मानसून सत्र को बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत पूरी दुनिया में संसदीय प्रणाली का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और इसके बावजूद इसकी संसद की हालत ऐसी हो गई है कि सदन चलता ही नहीं। 17वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने में अब केवल मुश्किल से नौ महीने ही बचे हैं। इस अवधि में विपक्ष प्रभावी भूमिका में सामने आये, यह जरूरी है। वैसे भी संसद पर पहला अधिकार विपक्ष का होता है क्योंकि वह अल्पमत में होता है मगर उसी जनता का प्रतिनिधित्व करता है जिसका प्रतिनिधित्व बहुमत का सत्ताधारी दल करता है। अतः विपक्ष द्वारा उठाये गये मुद्दों और विषयों पर विशद चर्चा कराना सत्ताधारी दल का नैतिक कर्त्तव्य बन जाता है। मगर हम तो देखते आ रहे हैं कि पिछले सत्र में जिस प्रकार एक के बाद एक विधेयक बिना चर्चा के ही संसद के दोनों सदनों के भीतर भारी शोर-शराबे के बीच पारित होते रहे, यहां तक कि चालू वित्त वर्ष के बजट को भी बिना किसी चर्चा के ही ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धुंधलाने के उपक्रम है। मानसून सत्र के दौरान सरकारी कार्यों की संभावित सूची में 31 नये विधेयकों को पेश या पारित करने के लिए शामिल किया गया है। इसमें दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2023 को भी जोड़ा गया है। यह विधेयक संबंधित अध्यादेश का स्थान लेने के लिए रखा जाएगा। आम आदमी पार्टी इस मामले को लेकर सरकार पर निशाना लगा रही है। हम भयंकर गलती कर रहे हैं क्योंकि हम उसी संसद को अप्रासंगिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसके साये में इस देश का पूरी शासन-व्यवस्था चलती है और जिसमें बैठे हुए आम जनता के प्रतिनिधि आम लोगों से ताकत लेकर उसे चलाने की जिम्मेदारी उठाते हैं और इस मुल्क के हर तबके के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए नीतियां बनाते हैं। मानसूत्र सत्र व्यर्थ न जाये, यह पक्ष एवं विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। इस सत्र में अहम विधेयक पेश किए जाने हैं, ऐसे में सभी का सहयोग बहुत जरूरी है। सभी दलों को सत्र चलाने में मदद करनी होगी। संसदीय कार्यमन्त्री का मुख्य कार्य विपक्ष के साथ संवाद कायम करके संसदीय कामकाज को सामान्य तरीके से चलाने का होता है। मगर इसके साथ ही दोनों सदनों के सभापतियों की भी यह जिम्मेदारी होती है कि वे संसद की कार्यवाही को चलाने के लिए संसदीय कार्यमन्त्रणा समितियों से लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं से सहयोग एवं सहृदयता प्राप्त करने का प्रयास करें। लेकिन जैसे-जैसे लोकतंत्र के विस्तार के साथ देश की भौतिक अवस्था में भी सकारात्मक बदलाव आया है, उससे तो कल्पना में यही बात रही होगी कि बौद्धिकता का भी स्तर और अभिव्यक्ति की शैली में प्रगतिशीलता और श्रेष्ठता आएगी। लेकिन यथार्थ इससे एकदम भिन्न है। संसद में हम अगर सार्थक बहस या रचनात्मक चर्चा को ही टालने का प्रयास करेंगे तो आम जनता में जनप्रतिनिधियों के बारे में जो सन्देश जायेगा वह संसद की गरिमा के हक में नहीं होगा क्योंकि हर पांच साल बाद तो हर पार्टी का प्रत्याशी जनता से बड़े-बड़े वादे करके ही वोट यह कह कर पाता है कि वह लोकसभा में पहुंच कर आम जनता का दुख-दर्द व उनकी समस्याओं के बारे में चर्चा करेगा और राष्ट्र की नीतियों के निर्माण में अपना योगदान देगा। लेकिन हर सांसद को यह योगदान देने के लिये तत्पर होना चाहिए एवं उनके दलों को भी यह भूमिका निभानी चाहिए। संसदीय अवरोध कोई लोकतांत्रिक तरीका नहीं है, उससे हम प्रतिपल देश की अमूल्य धन-सम्पदा एवं समय-सम्पदा को खोते हैं, जिनकी भरपाई मुश्किल है।
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गाजीपुर।जखनियां ब्लाक अंतर्गत शाहपुर सोमर राय गांव में काली माता के मंदिर पर खंड...