जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी आपसे करुणा की पुकार कर रहे हैं- मुनि विनम्र सागर
पहल टुडे
ललितपुर- तालबेहट कस्बे में वासुपूज्य दिगम्बर जैन नये मंदिर में श्रीमज्जिनेंद्र पंचकल्याणक मूर्ति प्रतिष्ठा एवं गजरथ महामहोत्सव में भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त करने पर वीना अजय जैन ललितपुर का भव्य स्वागत किया गया। अध्यक्ष पुष्पेंद्र जैन विरधा के नेतृत्व में धर्माबिलंबियों ने ढ़ोल बैण्ड बाजों के साथ नये बस स्टैंड पहुंचकर भारी संख्या में जन समूह के मध्य माता- पिता को मन्दिर लेकर आये। तत्पश्चात मंदिर जी में माता-पिता बने वीना अजय जैन ललितपुर का स्वागत एवं गोद भराई कार्यक्रम में समाज की माता बहनों व पुरुष वर्ग ने सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया, जिसमें बहु मंडल वासुपूज्य जिनालय का सक्रिय सहयोग रहा। संचालन विशाल जैन पवा ने किया। आभार व्यक्त महामंत्री प्रवीन जैन कड़ेसरा व कोषाध्यक्ष चक्रेश जैन ने किया।
वहीं कस्बे के पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सुबह मुनि विनम्र सागर महाराज के साथ मुनि निस्वार्थ सागर, मुनि निर्मद सागर, मुनि निसर्ग सागर, मुनि श्रमण सागर एवं क्षुल्लक हीरक सागर के सानिध्य में सामूहिक अभिषेक शांतिधारा पूजन एवं विधान का आयोजन किया। अष्ट द्रव्य को सुसज्जित कर भक्ति भाव से आचार्य श्री की पूजन की गयी। इस मौक़े पर मुनि विनम्र सागर महारज ने कहा करुणा के बिना धर्म होता ही कहाँ है, जीवन का पहला धर्म करुणा है।
मुनि श्री ने कड़कती सर्दी में गरजते बादल और घनघोर वर्षा के मध्य प्रसव के दौरान मादा खरगोश पर मदमस्त हाथी द्वारा की गयी दया का प्रसंग सुनाते हुए कहा विनय पूर्ण प्रार्थना भाग्य और पुरुषार्थ से ऊपर है। विनय हमारे जीवन को उठाती है। आज इंसान सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी का प्रयोग करना भूल गये तो जीवन व्यर्थ हो गया। आदमी को छोटी-छोटी बातों को बड़ा नहीं बनाना चाहिए, संघर्ष जिसके जीवन का गहना है वह खुश है। जीव और पुद्गल का परिरमण स्वभाव और पुरुषार्थ से होता है। स्वभाव प्रतिकूल होगा तो पुरुषार्थ व्यर्थ हो जायेगा। सही बात सबको समझ में आती है लेकिन अफ़सोस की वह सही वक्त पर समझ में नहीं आती। समता वो भाव है जो छद्मस्थ को सर्वज्ञ बनाती है, अपने जीवन में समता को लाओ। कितने कर्मों की विशुद्धि बनी होगी जब मनुष्य की पर्याय मिली है, जो बड़ी मुश्किल से मिलती है। इसकी सार्थकता तब है जब आप करुणा कर किसी के लिये भगवान बन जायें। इंसान लोकानुविनती विनय, अर्थ प्रयोजन विनय, अर्थ वित्त विनय, भय विनय, काम विनय तो प्रायः करता रहता है। लेकिन उसे मोक्ष विनय को अपने जीवन में लाना होगा जिससे उसका दर्शन ज्ञान चरित्र सुधरेगा।भगवान और मंदिर का वैभव स्वयं से बढ़ा होना चाहिए, मंदिर में किसी भी निमित्त से दिया गया दान जिन शासन के लिये प्राण होते हैं। ये धर्मायतन, गौशाला, हथकरघा, औषधालय, जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी आपसे करुणा की पुकार कर रहे हैं। अपनी संपत्ति का बहुभाग दान करो, भोगने के लिए जो चाहिए केवल उसको अपने पास रखो। इंसान को तीर्थंकर बनने में वक्त नहीं लगता, खाने पहनने और बोलने में भी करुणा को जागृत करो, अपने आचरण से किसी के लिये भगवान बनकर देखो। ज्ञान और दर्शन में ज्ञान और दर्शन के बने रहने का नाम सुख है। सायं काल की बेला में गुरु भक्ति एवं मंगल आरती की गयी। जिसमें वीर सेवा दल, अहिंसा सेवा संगठन, जैन युवा सेवा संघ, जैन मिलन, शिखरचंद्र, राजेंद्र कुमार, संतोष जैन, डॉ. सुरेश, आनंद जैन, महावीर, प्रकाश परिधान, यशपाल जैन, राजीव कुमार, कमलेश जैन, प्रवीन कुमार, अभय जैन, मेघराज मिठ्या, राकेश मोदी, प्रीतेश जैन, अजय जैन अज्जू, सुधीर कुमार, रीतेश चौधरी, सजल जैन, कपिल मोदी, हितेंद्र पवैया, अरविन्द जैन, आदेश मोदी, विशाल पवा, सौरभ मोदी, आकाश चौधरी, सौरभ पवैया, राहुल, स्वतंत्र, गौरव, नरेंद्र जैन, अमित कुमार, प्रिंस जैन, अभिषेक कुमार, आशीष जैन, अमन, अंकित, नितिन, मिलनराज, पीयूष, मयूर, आयुष, मुकुल, वैभव, अर्पित, इन्दर, सिद्धार्थ, आगम हर्ष जैन सहित सकल दिगम्बर जैन समाज का सक्रिय सहयोग रहा। संचालन चौधरी चक्रेश जैन एवं आभार व्यक्त मोदी अरुण जैन बसार ने किया।