September 18, 2024

वर्ष 2014 के बाद से भारतीय स्टॉक बाजार ने जो रफ्तार पकड़ी हैं, वह भारतीय स्टॉक बाजार के इतिहास में पहिले कभी भी नहीं रही है। 7 अप्रैल 2014 को भारत में सेन्सेक्स 22,343 अंकों पर था, जो 26 मई 2014 को 24,700 के आंकड़े को पार कर गया। वर्ष 2019 में चुनावी बिगुल बजने से पहले 10 अप्रैल 2019 को सेन्सेक्स 38,600 अंकों पर पहुंचा। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में स्टॉक बाजार ने लगभग 73 प्रतिशत यानी 16,250 अंको से ज्यादा की छलांग लगाई। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी पर नियंत्रण स्थापित करते हुए भारत ने पूरी दुनिया के पटल पर सफलता की एक कहानी लिखी। वर्ष 2020 में भारतीय स्टॉक बाजार ने दुनिया के बाजारों के मुकाबले निवेशकों को 15 प्रतिशत से अधिक का रिटर्न प्रदान किया। मौजूदा समय में भारत में सेन्सेक्स 65,000 के पार पहुंच गया है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सेन्सेक्स ने 66 प्रतिशत यानी 25,500 अंकों की तेजी दिखाई है। बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज का मार्केट केप 7 अप्रैल 2014 को 74.51 लाख करोड़ रुपए था, जो वर्तमान में बढ़कर 294.11 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। इस प्रकार, इस दौरान निवेशकों की झोली में 219.59 लाख करोड़ रुपए आ चुके हैं। भारत में पिछले 40 दिनों में सेन्सेक्स ने लगभग 1800 अंकों की छलांग लगाई है।

भारतीय स्टॉक बाजार में वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के दौरान विदेशी निवेशकों की अहम भूमिका रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 4,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश भारतीय स्टॉक बाजार में किया है। अप्रैल 2023 से जुलाई 2023 तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 1500-1600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश भारतीय स्टॉक बाजार में किया है। जो विदेशी संस्थागत निवेशक जनवरी-फरवरी 2023 में भारतीय कम्पनियों के शेयर बेचकर चीन की कम्पनियों के शेयर खरीद रहे थे परंतु अब मार्च-अप्रैल 2023 के बाद से पुनः वे भारतीय कम्पनियों के शेयर खरीदने लगे हैं। पिछले 9 वर्षों में से केवल 2 वर्ष ही ऐसे रहे हैं जिनमें विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय स्टॉक बाजार में शुद्ध रूप से निवेश ऋणत्मक रहा है।

विदेशी संस्थागत निवेशक आज भारतीय स्टॉक बाजार की ओर इतना अधिक आकर्षित क्यों हो रहे हैं। एक तो भारतीय स्टॉक बाजार ने अपने निवेशकों को बहुत अधिक रिटर्न प्रदान किए हैं। जब हम इस रिटर्न की तुलना अन्य देशों के पूंजी बाजार से करते हैं तो ध्यान में आता है कि विश्व के अन्य कई देशों के स्टॉक बाजार में निवेश पर लगभग 8-9 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है, जबकि भारतीय स्टॉक बाजार में निवेश पर लगभग 15-16 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है। इसी प्रकार, अमेरिका में बांड्ज में निवेश पर केवल 2-3 प्रतिशत अथवा अधिकतम 5 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है और भारत में बैंक में सावधि जमाराशि पर लगभग 6 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है, ऋण, कामर्शियल पेपर, बांड्ज आदि पर भी लगभग 6 से 7.5 प्रतिशत तक रिटर्न मिलता है। सोने के निवेश पर भी रिटर्न लगभग 7 से 8 प्रतिशत का ही रहता है और रियल इस्टेट में निवेश पर लगभग 9 से 11 प्रतिशत तक का रिटर्न मिलता है। जबकि भारतीय स्टॉक बाजार में वर्ष 1980 में सेन्सेक्स 100 अंकों पर था जो आज 67,000 अंकों पर आ गया है। अतः स्टॉक बाजार ने प्रतिवर्ष औसत 16 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से अधिक की रिटर्न निवेशकों को दिलाई है। लम्बी अवधि में सामान्यतः केवल स्टॉक बाजार ही मुद्रा स्फीति से अधिक की वृद्धि दर देता आया है।

आगे आने वाले समय में भारतीय स्टॉक बाजार में वृद्धि दर और भी तेज होने की सम्भावना इसलिए भी बलवती होती जा रही है क्योंकि आज भी भारतीय स्टॉक बाजार में खुदरा निवेशकों की पैठ बहुत कम है। 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले देश में केवल 14 करोड़ डीमैट खाते खोले जा सके हैं। कोरोना खंडकाल से पहले भारत में डीमैट खातों की संख्या केवल 4 करोड़ के आसपास थी और कोरोना खंडकाल के दौरान लगभग 7-8 करोड़ नए डीमैट खाते खोले गए हैं। हालांकि अब खुदरा निवेशकों का रुझान तेजी से स्टॉक बाजार की ओर बढ़ रहा है। डिपोजिटरी आंकड़ों के अनुसार खुदरा घरेलू निवेशकों ने भारतीय स्टॉक बाजार में 7 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।

यूरोपीय देश आपस में लड़ रहे हैं तो इधर रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। चीन के भी अपने पड़ोसी देशों से सम्बंध बहुत अच्छे नहीं हैं। साथ ही, भारत में राजनैतिक स्थिरता है, विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत में ही मानी जाती है। भारतीय राज्य भी अब आर्थिक विकास के मामले में आपस में प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं। पहले केवल गुजरात राज्य को ही तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था कहा जाता था। परंतु, अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा आदि राज्य भी विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं इनमें से कुछ राज्यों ने तो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बनाने की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं। 19वीं शताब्दी यदि यूरोप की थी और 20वीं शताब्दी यदि अमेरिका की थी तो अब 21वीं शताब्दी भारत की होने जा रही है।

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