कूड़ा बीनता बचपन सरकार आंकड़ों में मशगूल,पढ़ने की उम्र में कचरा चुन रहे बच्चे कचरे के ढेर में तलाश रहे भविष्य

0 minutes, 1 second Read
कूड़ा बीनता बचपन सरकार आंकड़ों में मशगूल,पढ़ने की उम्र में कचरा चुन रहे बच्चे कचरे के ढेर में तलाश रहे भविष्य
एस के श्रीवास्तव विकास:पहल टुडे
वाराणसी।जहां सरकार ऐसी योजनाओं पर भारी-भरकम धनराशि खरचने का दावा करती है,वहीं आज भी गरीब व मजदूर तबके के मासूम बच्चे होटलों,ढाबों में मजदूरी करने के अलावा कूड़ा-करकट बीनते नजर आ रहे है।शिक्षा मनुष्य को समाज में रहने के तौर-तरीकों से अवगत कराती है।यही एक ऐसा माध्यम है जिससे हम सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के खिलाफ समाज को खड़ा कर सकते हैं। पर आजादी के इतने वर्षों के बावजूद हम जहां से शुरू हुए थे उस स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है।आज भी शिक्षा जन सुलभ नहीं बन सकी है,जबकि शिक्षा के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए की योजनाएं बन रही हैं।वाराणसी में भी यही हाल है।यहां भी ये योजनाएं धरातल पर उतरते ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं।दिनों दिन महंगी हो रही शिक्षा आम आदमी के बच्चों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही है।खास कर गरीब मजदूर और वनवासी/मलिन बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों के लिए वर्तमान दौर में शिक्षा हासिल करना एक सपना बन गया है।कहने को सरकार ने इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए विशेष योजनाएं भी बनायी हैं,पर वहां पर ईमानदारी व जिम्मेदारी के अभाव में योजना का ढोल पीटने तक सीमित है। दम तोड़ रही इन योजनाओं से प्रदेश के लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई का कुछ अंश सरकार के खजाने के तौर पर बर्बाद हो रहा है।वहीं इन गरीब मजदूर व वनवासी/मलिन बस्तियों के बच्चों का भविष्य भी रोजी-रोटी की भूख तक सीमित होकर रह गया है।ऐसे हालातों में गरीब बच्चे शिक्षा की ओर कैसे उन्मुख होंगे।इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से काफी हद तक वंचित हैं।ऐसी बस्तियों में मौजूदा हालात की यदि पड़ताल की जाए तो तस्वीर खुदबखुद कहानी बयां कर देती है पर एक बात जो अच्छी है निरक्षर अभिभावकों का भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण।प्राप्त जानकारी के मुताबिक पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के राजातालाब क्षेत्र में इन दिनों मासूम बच्चों का एक समूह प्लास्टिक का बोरा कंधे पर लेकर कूड़ा करकट बीनने को निकल जाता है और दिनभर में 200 से 300 का कूड़ा करकट बीनकर बेचने के बाद अलग अलग बाटकर घर चला जाता है।पूछने पर मासूमो ने अपना नाम नही बताया लेकिन कुछ जानकारियां साझा की उन्होंने बताया कि हम लोग दिन भर राजातालाब से रखौना,असवारी,तहसील,थाना,मंडी के बीच कूड़ा करकट बीनते है उसे 20 से 30 रुपये किलो में बेचकर मिले पैसों में बटवारा कर लेते है कभी 200 तो कभी 300 का काम होता है।
विद्यालय और आरटीई के औचित्य पर सवाल बाल मजदुरी करते बच्चे
परिवार का भी भरण-पोषण करते हैं ये बच्चे:बाल श्रम अधिनियम के तहत बच्चों को काम लेना कानूनी अपराध है पर कूड़े कचरे के ढेर में भविष्य तलाशने वाले बच्चों को इस अधिनियम से कोई लेना देना नहीं है।उनकी यही दिनचर्या है और जीने का साधन भी यही है।कूड़े कचरे के ढेर से कबाड़ चुनकर यह बच्चे अपना तो पेट भरते ही हैं साथ ही साथ घर चलाने में परिजनों की भी सहायता करते हैं।पेट की आग बुझाने के लिए यह बच्चे अपना बचपन कूड़े कचरे के ढेर में कबाड़ चुनने में ही गवा देते हैं।ऐसे बच्चों पर बाल श्रम के तहत कोई मामला भी नहीं बनता।
सरकारी आंकड़ों में सब कुछ है दुरुस्त
जहां तक शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात है तो सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त है।यानी ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं।वे भी सरकारी स्कूलों में नाम अंकित है।उनके नाम पर भी सरकारी सुविधाएं उठाई जाती है यानी सरकारी आंकड़ों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बिल्कुल दुरुस्त है लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और है।
पीठ पर स्कूली थैला हाथ मे कॉपी कलम की जगह कचरे का बोरा ढो रहे बच्चे
सूरज की पहली किरण के साथ ही ये बच्चे हाथ मे प्लास्टिक का बोरा लिए वह कबाड़ चुनने के लिए निकल पड़ते हैं।इस जमात में कई बच्चे शामिल रहते हैं।इन बच्चों के स्वास्थ्य सुरक्षा की कोई गारंटी लेने को तैयार नहीं है।इन नौनिहालों के प्रति सरकारी महकमा बिल्कुल उदासीन है।कबाड़ से चुने गए हैं सामान को ले गए बच्चे कबाड़ी वालों के पास जाते हैं।कबाड़ी वाले इन्हें कुछ पैसे देकर उनका सामान खरीद लेते हैं।यह पैसा न्यूनतम मजदूरी के बराबर भी नहीं होता है।
दीवार लेखन तक सिमटा स्कूल चलो अभियान
स्कूल चलो अभियान पर सरकार लाखों रुपए खर्च कर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं।लेकिन वाराणसी में स्कूल चलो अभियान केवल दीवार लेखन तक सिमट कर रह गया है।नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में कई बच्चे जागरूकता के अभाव में शिक्षा से बंचित हो रहे हैं लेकिन नगर व क्षेत्र में जिम्मेदार लोगों की जागरुकता के लिए अभियान के तहत कुछ नहीं कर रहे हैं।

मिलती जुलती खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *