मध्य प्रदेश का एक वीडियो सोशल मीडिया वह वायरल है। इसमें कथित भाजपा नेता एक आदिवासी युवक पर पेशाब करता दिखता है। सीधी जिले के कुबरी गांव का ये वीडियो ऐसे वक्त पर सामने आया है जब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और इसके दिखता है। सीधी जिले के कुबरी गांव का ये वीडियो ऐसे वक्त पर सामने आया है जब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और इसके फीसदी हिस्सा हैं। 36 साल के जिस आदिवासी शख्स पर प्रवेश शुक्ला पेशाब करता दिखा वह कोल समुदाय से आता है। वहां भील और गोंड के बाद यह आदिवासियों का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। प्रवेश शुक्ला को भाजपा के विधायक केदारनाथ शुक्ला का प्रतिनिधि बताया जा रहा है.
हालांकि, विधायक खुद इससे इनकार कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने केदारनाथ शुक्ला संग प्रवेश शुक्ला की फोटोज सामने रख दी हैं। बता दें कि मात्र चार दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी मध्यप्रदेश के शहडोल में आदिवासी समुदाय से मुलाकात कर रहे थे। उनके कई कार्यक्रमों में भी मोदी ने हिस्सा लिया था। चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में मोदी खुद चार दिन में दो दौरे कर चुके हैं।
चुनाव से पहले भाजपा का आदिवासियों के तुष्टिकरण पर पूरा जोर पहले से ही जरी था । 16वीं सदी की गोंडवाना शासक रानी दुर्गावती की याद में भाजपा पांच बड़ी यात्राएं निकाल चुकी है, जिसे वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्राएं नाम दिया गया। बता दें कि रानी दुर्गावती ने मुगलों से लड़ते हुए वीरगति पाई थी।दुर्गावती की याद में जबलपुर में बड़ा मेमोरियल, एक पोस्टल स्टैंप, एक फिल्म बनाने का ऐलान किया जा चुका है। इसके अलावा 5 अक्टूबर को उनकी 500वीं जयंती पर राष्ट्रव्यापी उत्सव की तैयारी है। इसके साथ ही सिकल सेल एनीमिया को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने देशव्यापी अभियान भी शुरू किया है। इस बीमारी से देशभर की बड़ी आदिवासी जनसंख्या प्रभावित है। इस अभियान की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू का भी जिक्र किया था, जो खुद आदिवासी समाज से आती हैं।
मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीट हैं। इसमें से 47 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं। साल 2018 में भाजपा ने इन रिजर्व सीटों पर ठीक प्रदर्शन नहीं किया था। इनमें से भाजपा सिर्फ 15 जीत पाई थी, वहीं कांग्रेस को 31 मिली थी। इन्हीं सीटों के बलबूते कमलनाथ तब सरकार बनाने में कामयाब हो गए थे। आदिवासियों पर भाजपा की खास नजर इस वजह से भी है क्योंकि इन 47 सीटों के साथ-साथ आसपास की 30 विधानसभाओं पर भी आदिवासी वोट असर डालता है।
मध्य प्रदेश के आदिवासियों पर फोकस सिर्फ विधानसभा चुनाव नहीं लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भी किया जा रहा है। यहां कुल 29 लोकसभा सीटों में से 6 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में 28 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।
साल 2020 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने फिर सरकार बनाई। इसके बाद से भाजपा ने आदिवासी जनसंख्या को खुश करने के लिए कई कदम उठाए हैं, मानों तब से इस वोटबैंक पर नजर थी। इसमें आदिवासी प्रतीकों को याद करना, उनकी याद में संग्रहालय बनवाना। आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना, उनकी जयंती मनाना शामिल है। इतना ही नहीं रेलवे स्टेशनों, यूनिवर्सिटीज का नाम भी आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखा गया।
जैसे, नवंबर 2021 में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन किया गया। 18वीं सदी की गोंड रानी को भाजपा भोपाल की आखिरी हिंदू शासक कहती है। इसके अलावा बिरसा मुंडा की जयंती को भाजपा सरकारी छुट्टी घोषित कर चुकी है। इससे पहले तक यह वैकल्पिक अवकाश हुआ करता था। आदिवासियों को भाजपा से जोड़ने के लिए ही अमित शाह ने इसी साल फरवरी में कोल जनजाति महाकुम्भ को संबोधित किया था। यहां शाह ने 1831 में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हुए विद्रोह के लिए कोल समुदाय के योगदान का जिक्र भी किया था।
इस सबके बीच सीधी की घटना ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। कांग्रेस पार्टी ने इस घटना को ‘आदिवासी अस्मिता’ पर चोट बताया है। कांग्रेस के हमलों के बीच राज्य की भाजपा सरकार ने घटना को अमानवीय माना और आरोपी पर एनएसए के तहत कार्रवाई की बात कही है। यहां तक कि उसके घर पर बुलडोजर एक्शन भी हुआ। शिवराज की तरफ से यह भी कहा गया कि आरोपी का कोई धर्म-जाति या राजनीति पार्टी नहीं होती है। लेकिन इस बीच सवाल यही है कि क्या घटना की वजह से पार्टी को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी? क्या प्रवेश शुक्ला पर हुए एक्शन से आदिवासी समुदाय संतुष्ट होगा? ये सवाल इसलिए बड़े हैं क्योंकि राज्य में सरकार बनाने के लिए आदिवासी काफी अहम हैं, यह बात भाजपा एसटी मोर्चा के अध्यक्ष कलसिंह भाभर भी मानते हैं।
दशमत उन 1।5 करोड़ आदिवासियों में से एक है जो मध्य प्रदेश में रहते हैं। देश में सबसे ज्यादा। मध्य प्रदेश की आबादी का 21 प्रतिशत। अनुसूचित जनजाति के तौर पर पहली पहचान इन्हें 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से मिली। फिर हमारे संविधान में भी यही अपना लिया गया। लेकिन आदिवासी शब्द की बात करें तो श्रेय अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर यानी ठक्कर बापा को जाता है। मध्य प्रदेश में 46 जनजातियां हैं।
राज्य के 53 जिलों में से 30 में आदिवासियों का वास है। झाबुआ, बड़वानी, डिंडोरी , मंडला, बस्तर, धार, खरगौन में अच्छी खासी आदिवासी आबादी है। कोल, गोंड, भील, सहरिया जैसी जनजातियां रहती हैं। मांडला पिछले साल ही सौ प्रतिशत साक्षर जिला बना है। शिवराज सिंह चौहान को इन आदिवासियों की सख्त जरूरत है। खासकर तब जब प्रदेश में चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है। तो बजट में भी सुनाई दी। तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के बजट में लगभग 37 हजार करोड़ रुपए मामा ने आदिवासियों के लिए रखा। पिछले साल से 37 परसेंट ज्यादा। आदिवासी जिलों में कितना काम हो रहा है उसकी मॉनिटरिंग के लिए अलग ट्राइबल सेल भी बना दिया। शिवराज की मदद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी लगा है। वो खुद वनवासी कल्याण परिषद और आश्रम के काम को बताते-बताते थक जाते हैं।
शिवराज सरकार ने इसी साल फरवरी में कोल महाकुंभ का आयोजन किया। अमित शाह भी आए और बता गए कि मोदी सरकार ने 2014 के बाद से अब तक जनजातियों के लिए 89000 करोड़ रुपए दिए हैं। मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में टॉयलेट्स बनाए गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बनाए जा रहे हैं। सन 1831 के कोल विद्रोह का जिक्र भी हो रहा है। पूरे देश में 200 करोड़ रुपए लगाकर म्यूजियम बन रहे हैं जहां आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका दिखाई देगी। चाहे मोदी हों शाह या शिवराज, इन सबने आदिवासियों को रिझाने के लिए इनके पौराणिक हीरो का इस्तेमाल किया है। मौकों पर गोंड महारानी दुर्गावती, रानी कमलापति का बलिदान, बुद्ध भगत और जोवा भगत की बहादुरी की कहानियां बताई जाती है। एकलव्य मॉडल स्कूलों की संख्या भी बढ़ा दी गई है।