एक बार की बात है। एक नेता एक बड़े रैली में शामिल हो रहा थे। उनके पास माइक्रोफ़ोन था जिसके माध्यम से वे अपने समर्थकों को भाषण दे रहे थे। लोग उनके शब्दों में लिपट कर उनकी तारीफ कर रहे थे।
नेता ने कहा, “मेरे प्यारे समर्थकों, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझे इतना प्यार और समर्थन दिया है। मुझे अपनी मौजूदा सरकार के बारे में एक ख़बर सुनाई गई है, आपका जनता के अदालत में मुख्यालय लगाने का फैसला हुआ है!”
सभी लोग हैरान हो गए, क्योंकि किसी ने ऐसा कोई मामला सुना नहीं था। लोग सिर खुजलाने लगे और अचम्भित होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। कुछ समय बाद नेता ने खुलासा किया, “हाँ, यह बात सच है, मेरी सरकार जनता के अदालत का मुख्यालय होगी। और ये इतना अद्भुत होगा कि जब भी कोई आपत्ति पैदा होगी, तो सरकार एक चाय की दुकान में केस दर्ज करवाएगी! समस्या का समाधान हो जाने पर ताली-थाली पिटवाएगी।
“अच्छे नेता काम नहीं करते, बल्कि करवाते हैं। करने वाला कार्यकर्ता बनकर अपना भर्ता निकलवाता है। जनता नेताओं को बाकायदा चुन कर सदन में भेजती है और वे जनदेश का सम्मान करते हुए ऊँघने, पोर्न देखने की देशरक्षक क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं। ऐसा करने से उनमें अपार क्षमता का अनुभव और ज्ञान प्राप्त होता है । ऊँघना एक प्रकार की हेल्थ ड्रिंक है जिसे पीकर मूरख जनता कभी भी बेवकूफ बन सकती है । नेता आकंठ कुंठा से भरे होते हैं। अपनी इस कुंठा को निकालने के लिए समय-समय पर अजीबोगरीब भाषण देते हैं। जिसका भाव चैट जीपीटी का बाप तक नहीं दे सकता है। ऐसे नेता अपने स्वार्थ की डायरी में निस्वार्थ का लालच लिखने की चेष्टा करते हैं। अपनी लपलपाती जिह्वा निकालकर अपनी आत्मा को तृप्त करते रहते हैं। उन्हें दृढ़ विश्वास है कि शरीर के अंगों को कैंसर इसलिए होता है क्योंकि वे शरीर से जुड़े हैं, इसलिए नाशवान अंगों को कैंसर का भोगी बनाने से पहले पुण्य कार्य करते रहना चाहिए। जैसे हाथों से चोरी, पैरों से लात मारना, आँखों से पोर्न देखना और मुँह से झूठ बोलना। ऐसा करने से नेता बनने की सार्थता पूरी होती है।