एक समय था जब चार घर छोड़ दुकान चलाने वाला मेरा मित्र मेरी हर बात का आदर करता था। अब वह बहुत बदल गया है। आजकल उस पर समाचार चैनलों की चिल्लाहट का गाढ़ा रंग हावी हो चुका है। उसकी आँखों को छोड़कर वह अंदर और बाहर दोनों से नंगा है। आँखों पर उसके हिंदू-मुस्लिम, देश-विदेश के दौरे, इंडिया शब्द के अलग-अलग फूल फार्म बनाने वाले चादरों की परत चढ़ी हुई हुई। मैं उसे बहुत देर से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ। मैंने उसे विश्वास दिलाने का हरसंभव प्रयास किया। किंतु उसमें मणिपुरी लड़की को नंगा घुमाने की बात तो दूर मणिपुर को अपने देश का हिस्सा मानने से इंकार कर दिया। उसे लगा सिंगापुर की तरह मणिपुर भी कोई देश है, जहाँ हमारे देश का शासन है। मैं गिड़गिड़ाता रहा कि वह राज्य भी हमारे देश का हिस्सा है। वहाँ रहने वाले लोग भी हमारे लोग हैं। वहाँ की औरतें भी हमारी माँ-बहन है। उर्फी जावेद की फैशन परेड चाव से देखने वाला भला नंगे होने की पीड़ा को खाक समझेगा। उसके पास तो नंगे वीडियो की भरमार है। वह तो मणिपुरी लड़की को नंगा घुमाने का जिम्मेदार भी उसी लड़की को मानता है। उसका कहना है कि बिना किसी गलती के कोई भला ऐसा क्यों करेगा?
न जाने कहाँ से उसकी जुबान पर बेशर्मी के गुर्गे आ बैठे, वह छिछोरों की तरह कहने लगा – भाई! जमाना बदल चुका है। अब तो लोग संवेदना की जूती बनाकर अपनी मर्जी की राह चलने के लिए खुले पड़े हैं। आज वही आदमी समझदार है जिसके जो ऐसे वीडियो को देखकर मजे लेता हो। हमारे नेता संसद में बैठकर पोर्नशास्त्र की थ्योरी डिग्री और प्रैक्टिकल के लिए गरीबों की बेटी पर हाथ आजमा रहे हैं, वैसे देश में लड़की का नंगा घुमाना कोई बड़ी बात नहीं है। एक समय द्वारकाधीश श्रीकृष्ण द्रौपदी के चीरहरण के समय अनंत चीर देकर दुष्टों के इरादों को चीर दिया था, वहीं आज चीर खींचने वाले, शासन कर रहे हैं। चीर देने वाला शरीफ होता है, और शरीफों को कोई वोट नहीं देता। वोट तो उनको दिया जाता है जो एक पौवा, कुछ रुपए हाथ में थमाते हैं और बाद में उन्हीं के हाथों बहू-बेटियों को नंगा होते हुए देखकर अपने अंग के सारे छेदों पर यह कह कर अंगुली धर देते हैं कि वह अपनी बहू-बेटी थोड़े न है। यहाँ हर कोई ऊपर से नीचे तक पाक होने का दावा करता है लेकिन भीतर से मैलेपन की नापाक कई अस्तरें होती हैं। यहाँ हर कोई नंगा है। जो नंगा है वही चंगा है। जो नंगा नहीं वह लफंगा है। नंगों से पंगा न लेने में ही भलाई है। नंगे की नंगई को देखकर एंजॉय करना जो सीख जाता है वही यहाँ खुश रहता है। दर्द महसूस करना, आँसू बहाना, जली खोटी सुनाना, अपशब्द कहना यह सब शारीरिक और मानसिक बीमारी के कारक बनते हैं। यहाँ सिर्फ दो ही चीज़ सस्ती है – एक आदमी की इज्जत और दूसरी जिंदगी। बाकी सब महंगे हैं। ऐसे में बीमार पड़ने का मतलब अस्पताल के चक्कर लगाकर डॉक्टरों की जेब भरना है। इसलिए मणिपुर एक लड़की के नंगे होने पर रोना छोड़ो। यहाँ तो हर कोई नंगा बैठा है। कोई नौकरी से नंगा है तो कोई रुपए से। कोई अधिकारों से नंगा है तो कई सुविधाओं से। अब झूठ का बोलबाला है। अब जमाना बातों की जुगाली करने और नूरा कुश्ती करने का अखाड़ा है। दवाओं की जगह बीमारी बाँटने की दुकानें खुलने लगी हैं। ऐसे में जितनी कम खरीददारी करो उतना ठीक है।
मैं उससे पूछना चाहता था कि क्या तुम्हें मणिपुर का ‘म’ तक पता है, लेकिन उसकी बातें सुनने के बाद पता चला वह सब कुछ जानकर भी दुनियादारी कर रहा है। उसने नंगेपन को नए सिरे से परिभाषित कर नंगा होने का नया अर्थ बताया है।