एक-एक दिन करके लोक सभा चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है। ऐसे में युवाओं में अपने मुद्दों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। राजनीतिक दल अपने मुद्दों को लेकर मैदान में उतरने को बेताब हैं तो वहीं गरीब बेरोजगार युवाओं के मुद्दे बिल्कुल साफ हैं। युवाओं को रोजगार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, न्याय और शिक्षा चाहिए। युवा अब राजनीति दलों के चक्कर में नहीं फंसना चाहते हैं। युवा उसी राजनीति पार्टी को वोट करना चाहते हैं जो उनके मुद्दों की बात करती हो। युवाओं का कहना है कि जमाना बदल रहा है। उन्हें राजनीतिक दलों की घमासान में नहीं फंसना है। उन्हें अपने मुद्दों को पूरा करने वाली सरकार चाहिए। युवा चाहते है कि उन्हें रोजगार देने वाली मजबूत सरकार चाहिए, पेपर न लीक हो इसकी गारंटी वाली सरकार चाहिए।
इधर उत्तर प्रदेश में हुए पेपर लीक हुआ है उसके लिए सत्ता व विपक्ष के आरोपों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। पुलिस भर्ती परीक्षा समेत आरओ, एआरओ समेत हाल में हुए कई परीक्षाओं में पेपर लीक और धांधली को लेकर अभ्यर्थियों में जबरदस्त नाराजगी है। उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले के बाद कांग्रेस पार्टी नेताओं की ओर से आए बयान के बाद मामला सियासी गलियारों में भी तूल पकड़ने लगा। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने पेपर लीक मामले में जहां सीबीआई जांच की मांग कर डाली। वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही निशाने पर ले लिया। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस दौरे पर आने और प्रयागराज में सड़कों पर उतरे युवाओ को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनारस में युवाओं के नाम पर युवाओं को ही बरगला रहे हैं।
गौरतलब है कि राजस्थान में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा था। राजस्थान में कॉन्स्टेबल भर्ती, लाइब्रेरियन भर्ती, जेईएन सिविल डिग्रीधारी भर्ती, रीट लेवल 2 परीक्षा, वनरक्षक भर्ती परीक्षा, वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा, हाई कोर्ट एलडीसी परीक्षा सहित कई मामले पिछले पांच साल में सामने आ चुके हैं। इन्ही मामलों को भाजपा ने भुनाया था । अब कांग्रेस की बारी है । जुलाई 2017, दरोगा भर्ती परीक्षा, फरवरी 2018, UPPCL परीक्षा, जुलाई 2018, UPSSSC, सितंबर 2018, नलकूप ऑपरेटर भर्ती, अगस्त 2021, B। ED।, नवंबर 2021, UPTET, मार्च, 2022 UP बोर्ड परीक्षा वगेरह । इन्हें कांग्रेस उत्तरप्रदेश में चल रही न्याय यात्रा के दौरान भुना रही है । दरअसल इस राजनीतिक लड़ाई में बेरोजगार छात्र पिस रहे है ।
दरअसल अब समस्या की गंभीरता, इसके सामाजिक, आर्थिक व प्रशासनिकल दुष्प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर विकास के पथ पर अग्रसर होने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर डालने के कारण इस पर चर्चा, चिंता और चिंतन करने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड की जेओए आईटी की परीक्षा के पेपर लीक के समाचार की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि बिहार और राजस्थान से अध्यापकों, बीपीएससी की भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक होने पर अभ्यर्थियों ने बवाल काटना शुरू कर दिया था । बिहार की परीक्षा में तो यह भी आरोप लगे कि लीक पेपर के बावजूद उन्हीं प्रश्नपत्रों के आधार पर दूसरी पाली की परीक्षा करवा ली गई। केवल इन्हीं राज्यों में नहीं, गुजारात से कश्मीर तक लगभग सभी राज्यो में किसी न किसी विषय, आसामी भर्ती की परीक्षा अवश्य पेपर लीक की वजह से रद्द हुई। राजस्थान में गत 4 वर्षों में 8, यूपी में 9, गुजरात में 10/5, बिहार में 5, जम्मू कश्मीर, हिमाचल में 2/2, उत्तराखंड की 8 परीक्षाएं दोबारा करवाए जाने की घोषणा हो चुकी है। इस विषय में पंजाब और हरियाणा की चर्चा इसलिए अर्थहीन है क्योंकि यहां तो यह रिवाज बन चुका है।
चयन आयोगों द्वारा पेपर लीक की वास्तविक सज़ा गरीब बेरोजगार युवा भुगत रहे हैं। एक ओर बढ़ती बेरोजगारी, दूसरे खाली पद भरने की विज्ञप्तियां ही 2-2 साल बाद निकलती हैं, ऊपर से परीक्षा आयोजन तक पहुंचने की लम्बी प्रक्रिया पार करने में ही 2-2 साल और बीत जाते हैं और लगातार परिश्रम कर तैयारी करने वाले युवा जैसे तैसे सफर तय करके परीक्षा देने पहुंचते पेपर लीक माफिया का शिकार हो जाते हैं। कई बार तो परीक्षा केंद्र से बाहर निकल कर मालूम पड़ता है कि किसी दूसरे केंद्र पर पर्चा लीक हो गया। बेचारे जिनकी मेहनत और मां-बाप की गाढ़ी कमायी का बंटाधार हो जाता हैं उनकी उम्मीदों का पहाड़ कैसे टूटा करता है, वे ही जानते हैं! पेपर लीक समस्या मात्र नौकरी में भर्तियों की परीक्षा तक ही सीमित नहीं है। 10वीं 12वीं की सीबीएसई, मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षा को भी इसने डस लिया है । संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुरूप ही सामाजिक कायकर्ताओं और विचारकर्ताओं का मानना है कि सभी परीक्षाओं में पेपर लीक के पीछे जो मुख्य कारण है उसमें मांग के अनुरूप आसामियों की कमी, अति प्रतिस्पर्धात्मक मानसिकता भरे वातावरण में अभिभावकों की उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति के साथ साथ उच्च शिक्षा के निजीकरण से उपजी कोचिंग संस्थानों की भरमार, सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा करवाने वाली और निगरानी व्यवस्था का कमज़ोर होना है यानी व्यवस्था वीक, पेपर लीक। इसके अतिरिक्त चान्दी के जूते की चमक के चलते व्यवस्था के भीतर बड़े लोगों के पराश्रय और पकड़े जाने के बाद मामूली सज़ा पाकर छूट जाने के कमजोर प्रावधानों के चलते ही यह काला धंधा एक व्यवसाय बन गया है जिसे संगठित अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है जिसमें पुलिस प्रशासन, राजनीतिक आका से लेकर पेपर बनाने और छापने वाले सभी की अपनी भूमिका है और सभी का अपना हिस्सा।
चूंकि पेपर लीक मामले में लीक होने वाले पर्चे की कीमत लाखों में पहुंच गई है, इसलिए अक्सर पहला पर्चा प्राप्त करने वाला उतना पैसा जुताने के लिए और लोगों को संपर्क करता है, फिर आगे और कई बार तो 15 लाख में बिका पर्चा एक दिन होते होते 1500 रुपए में उपलब्ध होने लगता है। इस संगठित अपराध में निजी कोचिंग संस्थानों की बड़ी भूमिका इसलिए भी बन गई है क्योंकि वहां परीक्षा पास करने वाले छात्र या बेरोजगार युवा चारे के रूप में सुलभता से उपलब्ध हो जाते हैं जिन से वसूली कर संचालकों के माध्यम से पैसा पेपर लीक माफिया की ऊपरी कड़ी तक आसानी से पहुंच जाता है। दूसरा कोचिंग संस्थानों के माध्यम से उतीर्ण हुए छात्र उनके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन जाते हैं जिनके नाम विज्ञापित करके वो और मोटी फीस, और अधिक छात्र पा सकते हैंं। पेपर लीक घोटाले भी अब राजनीतिक रोटियां सेंकने के अखाड़े बन चुके हैं। भाजपा राजस्थान और छतीसगढ़ में हुए घोटालों पर हमलावर है, पर गुजरात और उत्तर प्रदेश में हुए पेपर लीक पर मौन। पेपर लीक वास्तव में एक राष्ट्रीय त्रासदी है जिससे देश की युवा पीढ़ी का और देश का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
इसलिए इस पर चर्चा व चिन्ता के बाद यह चिन्तन आवश्यक हो जाता है कि भर्ती और प्रवेश के लिए नितांत आवश्यक इन परीक्षाओं के सफल और निष्पक्ष आयोजन को प्रभावी बनाने के लिए क्या पग उठाए जाएं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। चूंकि अब अधिकांश परीक्षाएं आबजेकटिव, मल्टी च्वाइस प्रश्न पत्रों पर आधरित रहती हैं और अधिकांश पेपर लीक मामलो में प्रिंटिंग प्रेस अथवा छपाई से जुड़े लोगों की संलिप्तता सामने आई है, इसलिए पेपर लीक से बचने के लिए इलेक्ट्रानिक सुलभता का लाभ उठाते हुए परीक्षा हेतु बनाए क्वशचन बैंक से वरिष्ठतम अधिकारी स्तर पर निर्धारित प्रश्न कंपयूटर द्वारा उठा करने 2 घंटे पूर्व, साफट कापी को कोड लाक के माध्यम से सीधे जिला और उपमंडल तर तक प्रेषित कर दिया जाए जहां मौजूद स्कैन व प्रिंटर व्यवस्था के माध्यम से जि़ला व उपमंडल स्तर के प्रशासनिक अधिकारी और परीक्षा नियंत्रक जो परीक्षा लेने वाली संस्था के विशेष चयनित अधिकारी हों, निर्धारित मात्रा में प्रश्नपत्र प्रिंट करके परीक्षा केंद्र में मौजूद अभ्यर्थियों को वहीं वितरित कर दे। इस पद्धति से प्रिंटिंग द्वारा होने वाले पेपर लीक से बचा जा सकता है। लघु प्रश्नावलि द्वारा आयोजित न होने वाली परीक्षाओं हेतु हर परीक्षा में तीन अलग अलग प्रश्नपत्रों के 2-2 सेट प्रश्नपत्र बनाने वाले विषय विशेषज्ञों से सॉफ्ट कॉपी में ही लेकर अंतिम 2 घंटे पूर्व प्रश्नपत्र उसी विधि से छाप कर परीक्षा केंद्रों पर वितरित किए जा सकते हैं। परीक्षा केंद्रों पर इन्विजिलेटरों और परीक्षकों को भी सेल फोन या अन्य इलेक्ट्रानिक वस्तु भीतर ले जाने की अनुमति न हो। इस विधि से प्रश्नपत्र प्रेस छपाई से थोड़े महंगे जरूर होंगे, पर सुरक्षित और लीकप्रूफ बन जाएंगे। इसका सबसे बड़ा लाभ।यह होगा कि लीक की दशा में सम्भावित अपराधियों को पकडऩे में सुलभता होगी। देश की संसदीय समिति द्वारा परीक्षा करवाने वाली एजेंसी को निष्पक्ष, उत्तरदायी बनाने के जो भी सुझाव दिए गए हैं, वर्तमान में उन पर प्रयोग हो चुके हैं। परंतु आयोगों के सदस्य और सभापति राजनीतिक आधार पर नियुक्त होने के कारण ही इन संस्थाओं के निष्पक्ष, निर्भीक होने पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। अब समय आ गया है कि शिक्षा और परीक्षा के नियंत्रण की भांति निजी कोचिंग संस्थानों के फैलाव पर भी नियंत्रण रखा जाए।
अशोक भाटिया,