कांधला। संतों के बलिदान दिवस के प्रसंग पर नगर में गुरू स्मरण अराधना, गुरू गुणगान महोत्सव को समायिक दिवस के रूप में मनाया गया। इस दौरान गुरूओं ने श्री श्वेताम्बर स्थानक वासी जैन परम्परा के इतिहास पर प्रकाश डाला। बुधवार को नगर के सुधर्मा सभागार में उपप्रवर्त्तक श्री आनन्द मुनि जी महाराज एवं पंडित रत्न नवकार साधक श्री विचक्षण मुनि जी महाराज ठाणे 08 के सानिध्य में त्रय संतों के बलिदान दिवस के प्रसंग पर नगर में गुरू स्मरण अराधना, गुरू गुणगान महोत्सव को समायिक दिवस के रूप में मनाया गया। इस दौरान कांधला के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन परम्परा को सर्वप्रथम 1723 में आचार्य श्री भागचंद जी महाराज के द्वारा कांधला शुरू किया था। उन्होंने बताया कि सन् 1723 में आचार्य श्री भागचन्द जी महाराज सायं के समय में कस्बे में पधारे थे। उस समय नगर में कोई भी जैन परिवार नही रहता था। महाराज श्री के नगर में पहुंचने पर उन्होंने नगर के निवासी लाला लक्ष्मी चंद से ठहरने के लिए स्थान के लिए पूछा तो उन्होंने महाराज श्री को एक स्थान पर खडा रहने की बात कहते हुए थोडी देर में आने के लिए कहा किन्तु लाला लक्ष्मीचंद घर जाने के बाद संतों को कही बात भूल गए तथा आचार्य श्री पूरी रात्रि सर्द मौसम में उसी स्थान पर खडे रहे। सुबह के समय जब लाला जी अपनी दुकान पर आए तो बाहर छप्पर के नीचे संतों को खडे देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तथा उसने संतों से अपनी भूल के लिए प्रायश्चित करते हुए अपनी हवेली को संतो ंके लिए दान में दे दिया था, उक्त हवेली वर्तमान में जैन स्थानक के रूप में स्थित है। उन्होंने बताया कि महाराज श्री से प्रभावित होकर उस समय लगभग 300 वैश्य परिवारों ने जैन धर्म स्वीकार किया था, उसके बाद महाराज श्री से प्रभावित होकर आस पास के 48 क्षेत्रों के लोगों ने जैन धर्म को स्वीकार किया था। महाराज श्री ने बताया कि वर्ष 1761 में नगर में आर्चाय श्री खेमचंद जी महाराज विराजमान थे, एक रात्रि उन्होंने आकाश की और देखकर तारों की गणना करते हुए बताया कि नगर में कत्ले आम होने वाला है, सभी लोग नगर छोडकर एलम की और चले जाए। उससे अगले दिन अहमद शाह अब्दाली की सेना में कत्ले आम करते हुए नगर में पहुंची तथा नगर के जैन स्थानक में पहुंचकर आचार्य श्री खेमचंद जी महाराज, श्री गोविन्दराम जी व श्री साहबराम जी महाराज का कत्ल कर दिया था। जिसका देव स्थान आज भी जैन स्थानक में है। उन्होंने नगर के हुए घटनाओं व नगर के जैन इतिहास को सहेज कर रखने के लिए गुरू स्मृति कक्ष की आधार शिला रखी गई है। उनके अतिरिक्ति श्री उदित राम जी, श्री जागृत मुनि, श्री दीपेश मुनि, श्री मनोहर मुनि एवं श्री पारस मुनि ने धर्मसभा को सम्बोधित किया।