भदोही। उमरा से लौटे गुलामाने शमशुददोहा बदरूद्दोजा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम हाजी यूसुफ इमाम सिद्दीकी, हाजी शफ़क़त इमाम सिद्दीकी, प्रो. डॉ शफात इमाम सिद्दीकी, फिरोज अख्तर सिद्दीकी, वसीम अख्तर सिद्दीकी व ख्वातीने इस्लाम से मिलने वालो का तांता लगा। हर कोई आता उनके लबे मुबारक से गुंबदे ख़ज़रा में आराम फरमाने वाले आक़ा मुस्तफा जाने रहमत स.की मीठी-मीठी बातें सुन आँखें अश्कबार हो जाती। वहीँ मेहमाने शहे बतहाँ स. से हाफिज आबिद हुसैन, सपा के प्रदेश सचिव आरिफ सिद्दीकी, मुशीर इकबाल, हाजी इश्तियाक अहमद सिद्दीकी, हाजी एहतेशाम अहमद सिद्दीकी, आरिफ खां,फहीम अख्तर सिद्दीकी, मुशीर इकबाल, नदीम अख्तर सिद्दीकी, मो. सबीह सिद्दीकी, मो. आसिफ खां जेम, जीशान उर्फ जिस्सु खां, अमजद अहमद, सैफ सिद्दीकी, डॉ आसिफ सिद्दीकी, सना सिद्दीकी, वकील खां, चंदू खां, हैदर संजरी, नईम अख्तर, साजिद अंसारी, एहसान अंसारी से नबी-ए-मोकर्र्म स.के शहर की बात हुई तो दिल मचल गया और कहा मदीने की गली छोड़ कर हम यहां आये तो ज़रूर है लेकिन दिलो दिमाग मदीने की गलियों में गर्दिश कर रही है। मदीने की खुशबु लिए आशिकाने मुस्तफा कुछ इस अंदाज़ में बयां कर रहे थे की बारिशे तहारत में गुस्ल कर के लौटी है।उम्र भर न देखेंगी अब इधर उधर आँखे। ज़िक्र हुस्ने तैबा का हक़ अदा नहीं होता। वरना लोग पी जाएं घोल-घोल कर आंखे। कहा ज़िन्दगी में देख आएं उनका संगे दर आँखे। कितनी मोतबर निकली मेरी बेहुनर आँखें कहते-कहते आँखे अश्कबार हो गईं। मेहमाने आक़ा स.से नबी-ए-आखेरुज़्ज़मा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के शहर का जमाल और दरे खाक की खुश्बुवों की महक से लोग फैज़ियाब होते रहे।उनकी आँखों ने गुंबदे ख़ज़रा की सुनहरी जाली रियाजुलजन्ना।जन्नतुलबकीय.जबले वहद गारे हेरा,गारे सुर, मस्जिदे कुबा, मक़ामे इब्राहिम तो संगे अस्वद का बोसा लेना और परवरदिगार के घर की ज़ियारत का शरफ हासिल होने पर लोग उनके आँखों और लबो को इश्के मुस्तफा स.की नज़र से देख रहे थे। बताया निगाहो में मदीने का मंज़र और काबे का तवाफ़ समाया हुआ है मस्जिदे नबवी में नमाज़ पढ़ना याद आ रहा है कहते-कहते आँखों से आंसू छलक पड़े। बहरहाल लोग अज़वा खजूर और आबे ज़मज़म से सैराब होते रहे और मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के शहर की बाते सुन फैज़ियाब होते रहे