मुख्यमंत्री धामी ने की परिवहन विभाग की समीक्षा
देहरादून(आरएनएस)। बस स्टेशनों को स्वच्छ और आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त बनाया जाए। दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में क्रैश बैरियर और सड़कों के किनारे वृक्षारोपण किये जाएं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वाहनों की फिटनेस टेस्टिंग का विशेष ध्यान रखा जाए। वाहन चालकों के प्रशिक्षण और मेडिकल की भी समुचित व्यवस्था की जाए। यातायात नियमों के प्रति लोगों को निरन्तर जागरूक किया जाए। रोडवेज की बसों के माध्यम से सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं का प्रचार भी किया जाए। जन सुरक्षा की दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्रों में पुराने वाहनों की जगह पर नये वाहनों की व्यवस्था की जाए। यह निर्देश मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को सचिवालय में परिवहन विभाग की समीक्षा के दौरान अधिकारियों को दिये।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड में श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में हर साल तेजी से वृद्धि हो रही। राज्य में जो भी नये बस स्टेशन बनाये जा रहे हैं, उनमें यात्रियों की सुविधा के दृष्टिगत व्यवस्थाओं को और सुदृढ़ बनाया जाए। सभी बस स्टेशनों पर स्वच्छता, पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि अयोध्या के लिए देहराूदन, हल्द्वानी और हरिद्वार से बस सेवा को संचालित किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि वाहनों पर नम्बर प्लेट स्पष्ट दिखे, नम्बर प्लेट से छेड़खानी करने वालों पर सख्त कारवाई भी की जाए।
बैठक में जानकारी दी गई कि उत्तराखण्ड परिवहन निगम की स्थिति में पिछले दो वित्तीय वर्ष में लगातार सुधार आया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में निगम को 29.06 करोड़ रूपये का फायदा हुआ, जबकि इस वित्तीय वर्ष में अभी तक 27 करोड़ रूपये का फायदा हुआ है। परिवहन विभाग के राजस्व प्राप्ति में भी पिछले दो वित्तीय वर्ष में लगातार वृद्धि हुई है। 2021-22 में 20.86 प्रतिशत और 2022-23 में 34.52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस वित्तीय वर्ष में भी अभी तक गत वर्ष की तुलना में 11.20 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। परिवहन विभाग में ऑनलाईन सुविधाएं बढ़ने से प्रर्वतन संबंधी कार्यवाही में भी तेजी आई है। उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में व्हीकल टेस्टिंग सेंटर के निर्माण के लिए धनराशि अवमुक्त की जा चुकी है। अल्मोड़ा में आईएसबीटी का निर्माण कार्य पूर्ण होने वाला है। परिवहन विभाग द्वारा 58 सेवाएं ऑनलाईन दी जा रही हैं। लाइसेंस संबंधी सभी सेवाएं ऑनलाइन की गई है। पंजीयन से संबंधित 20 सेवाएं और परमिट से संबंधित 08 सेवाएं ऑनलाईन दी जा रही हैं।
प्रवर्तन कार्यों को सुदृढ़ करने के लिए राज्य में 10 चिन्हित स्थानों पर ए.एन.पी.आर कैमरे लगाये गये हैं, जबकि 17 स्थानों पर और लगाये जा रहे हैं। 09 इन्टरसेप्टर वाहनों और 30 बाईक स्क्वैड की तैनाती की गई है। सड़क सुरक्षा की दृष्टि से 66811 वाहनों में व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस लगाये गये हैं। 2023 में 35515 वाहनों पर वी.एल.टी.डी स्थापित किये गये हैं। परिवहन विभाग द्वारा देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार एवं कोटद्वार में ऑटोमेटिड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक बनाया गया है। जबकि काशीपुर, अल्मोड़ा , उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, रूड़की हल्द्वानी और रामनगर में ऑटोमेटिड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक की कार्यवाही गतिमान है। इन्वेस्टर समिट में परिवहन विभाग के साथ 3513 करोड़ के 22 एम.ओ.यू हुए हैं। जिन्हें उच्च मध्यम और निम्न प्राथमिकता के साथ चिन्हित कर धरातल पर उतारने की कार्यवाही की जा रही है।
इस अवसर पर उपाध्यक्ष अवस्थापना अनुश्रवण समिति विश्वास डाबर, अपर मुख्य सचिव राधा रतूडी, सचिव आर.मीनाक्षी सुन्दरम, सचिव परिवहन अरविन्द सिंह ह्यांकी, एमडी उत्तराखंड परिवहन निगम डॉ. आनंद श्रीवास्तव, परिवहन विभाग और परिवहन निगम के अधिकारी उपस्थित थे।रादून(आरएनएस)। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने शुक्रवार को राजभवन में उत्तराखण्ड राज्य में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा की। बैठक में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य एवं अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष सुरेश भट्ट और स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। अधिकारियों द्वारा टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत राज्य में वर्ष 2023 की अद्यतन स्थिति से अवगत कराते हुए बताया कि अभी तक 9,922 नि-क्षय मित्र बनाये गए हैं। कुल 19,833 रोगियों को नि-क्षय मित्र द्वारा सहायता प्रदान की गई है। दिनांक 04 जनवरी, 2024 तक 2,252 ग्राम, 1012 ग्राम पंचायत एवं 61 शहरी वार्ड टीबी मुक्त सूचकांक को प्राप्त कर चुके हैं। प्रस्तुतीकरण में बताया गया कि माह नवंबर, 2023 तक टीबी के इलाज की सफलता दर में भारत सरकार से प्राप्त 85 प्रतिशत के लक्ष्य के सापेक्ष 87 प्रतिशत की उपलब्धि प्राप्त की गई है।
इस अवसर पर टीबी उन्मूलन लक्ष्य 2024 की प्राप्ति हेतु कार्ययोजना, टीबी मुक्त ब्लॉक कार्ययोजना के संबंध में अधिकारियों द्वारा बताया गया। राज्यपाल ने प्रदेश में टीबी मुक्त अभियान के अन्तर्गत किए जा रहे कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जिन लोगों द्वारा इस अभियान में उत्कृष्ट कार्य किया गया है उन्हें प्रोत्साहित किया जाए। राज्यपाल ने कहा कि जनसहयोग से ही यह अभियान सफल होगा और राज्य अपने लक्ष्य के अनुसार इस वर्ष के अंत में टीबी मुक्त बन सकेगा। उन्होंने अभी तक के किए गए प्रयासों को डाक्यूमेंट करने के भी निर्देश दिए। राज्यपाल ने कहा कि विभाग द्वारा अब तक जो प्रयास किए गए हैं वह सराहनीय हैं और उसे जारी रखने की जरूरत है।
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि टीबी मुक्त भारत अभियान की सफलता के लिए राज्यपाल की प्रेरणा और उनके मार्गदर्शन से यह सब संभव हो सका है। उन्होंने राज्यपाल की अध्यक्षता में सभी जिलाधिकारियों एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की बैठक और पूरे प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर पांच बड़े सेमिनार आयोजित करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि इस माह के अंत तक पांच हजार गांवों को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
बैठक में सचिव स्वास्थ्य डॉ. आर.राजेश कुमार, अपर सचिव श्रीमती स्वाति एस. भदौरिया, अपर सचिव अमनदीप कौर, महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ.बिनीता शाह, निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना, प्रभारी अधिकारी क्षय उन्मूलन कार्यक्रम डॉ. पंकज भट्ट आदि उपस्थित रहे।देहरादून(आरएनएस)। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने शुक्रवार को राजभवन में पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों की समस्याएं सुनी और उनके हर संभव निवारण का आश्वासन दिया। राज्यपाल द्वारा राजभवन में पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों की समस्याओं को सुनने और उनके समाधान हेतु समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इससे पूर्व उन्होंने 03 बार इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए हैं। आज विभिन्न जनपदों के दूरस्थ क्षेत्रों से 10 लोगों द्वारा अपनी-अपनी शिकायतें/समस्याएं राज्यपाल के सम्मुख रखी गई। इस अवसर पर पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों द्वारा ई.सी.एच.एस सुविधाएं नहीं मिलने, उपनल में नियुक्ति से संबंधित, पेयजल की समस्या से संबंधित, गांव के विकास कार्यों और आर्थिक सहायता व अन्य प्रकार की समस्याएं राज्यपाल के सम्मुख रखी गई। राज्यपाल ने सभी समस्याओं को गंभीरता से सुना और उचित कार्यवाही के लिए आश्वासन दिया।
राज्यपाल ने कहा कि सभी समस्याओं को नियमानुसार यथाशीघ्र निवारण सुनिश्चित किया जायेगा। उन्होंने शिकायत निवारण अधिकारी को उक्त समस्याओं हेतु संबंधित जिलाधिकारियों एवं अन्य अधिकारियों को तत्काल सूचित करते हुए समस्याओं का निस्तारण यथाशीघ्र करने के निर्देश दिए। राज्यपाल ने कहा कि सभी समस्याओं का निश्चित समयावधि में निराकरण सुनिश्चित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हमारे जवान विषम परिस्थितियों में पूरी निष्ठा व तत्परता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं उनके परिवार की देखभाल और उनकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है।देहरादून(आरएनएस)। जिलाधिकारी सोनिका की अध्यक्षता में ऋषिपर्णा सभागार कलैक्ट्रेट में जनपदीय पशुकू्ररता निवारण समिति की बैठक आयोजित की गई। जिलाधिकारी ने निर्देश दिए कि निराश्रित गौंवश को गौशाला में शिफ्ट करते हुए इसकी नियमित सूचना उपलब्ध कराई जाए।साथ ही निर्देशित किया शीतलहर में घूमन्तू पशुओं को ढंड से बचाने हेतु ऐसे पशुओं को नजदीकी गौशाला में भेजा जाए। गौ सदनों के संचालकों द्वारा अस्थायी गौ शरणालय बनाए जाने के अनुरोध पर जिलाधिकारी ने मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी को प्रस्ताव भेजनें को कहा। तिमली अवस्थित गौशाला में विद्युत एवं पानी की व्यवस्था किये जाने के अनुरोध पर मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को सम्बन्धित विभागों के साथ संयुक्त निरीक्षण करते हुए करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत करने को निर्देशित किया। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने बताया कि छरबा एवं प्रेेमनगर में गौ सदन का कार्य गतिमान हैं जो अगले माह तक पूर्ण हो जाएगा तथा विकासखण्ड स्तर पर गौ सदन हेतु स्थल चयनित कर लिए गए है। आवारा पशुओं पर चिप लगाये जाने के कार्य की जानकारी लेेने पर नगर निगम के अधिकारियों द्वारा अवगत कराया गया कि चिप लगाने की फाईल चलाई गई है। डॉग ब्रीडर्स/पैट शॉप के पंजीकरण पर चर्चा हुई।
बैठक में मुख्य विकास अधिकारी सुश्री झरना कमठान, पुलिस अधीक्षक क्राइम मिथलेश सिंह, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ विद्याधर कापड़ी, उप प्रभागीय वनाधिकारी अनिल सिंह रावत, खाद्य सुरक्षा अधिकारी पी.सी जोशी, शिव आनंद आश्रम से स्वामी अचितानंद, एसपीसीए के सदस्य मंयक रावत, अमित कुमार, कुनाल ग्रोवर, हरिओम आश्रम से अनुपमा वन्दगौरी, शाकुम्बरी गौशाला सविता देवी, प्रवीण शर्मा सहित नगर निगम देहरादून व ऋषिकेश तथा समस्त नगर निकायों के अधिशासी अधिकारी सहित सम्बन्धित विभागों अधिकारी एवं संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।ऋषिकेश(आरएनएस)। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज ‘राष्ट्रीय पक्षी दिवस’ पर कहा कि पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं। पक्षियों के स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बनाये रखने के लिये एक स्वस्थ प्रकृति व पर्यावरण का होना अत्यंत आवश्यक है। थोड़े से वित्तीय लाभ और खुशी के लिए पक्षियों को पकड़ लिया जाता है; कैद किया जाता है तथा उनके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया जाता है। आज का दिन यह याद दिलाता है कि हम यह सुनिश्चित करें कि पक्षियों को बेहतर जीवन मिले, स्वच्छ व स्वछंद वातावरण कैसे प्राप्त हो।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की संस्कृति निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने का संदेश देती है। भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है मानवता की सेवा करना। दुनिया में ऐसे कई महापुरूष हुये जिन्होंने दूसरों की सेवा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। प्रत्येक प्राणी को गरिमापूर्ण जीवन देने, समाज के हर वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार करने हेतु भारतीय सनातन संस्कृति का सूत्र ‘सेवा ही साधना है’ को अंगीकार कर हमारे ऋषियों और महापुरूषों ने इस दिव्य संस्कृति का निर्माण किया।
देखा जाये तो हमारा समाज सहयोग एवं संघर्ष द्वारा संचालित एक संस्था है परन्तु जब संघर्ष बढ़ जाता है तो दमन की और सहयोग बढ़ता है तो शान्ति की शुरूआत होती है इसलिये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रति अहिंसा, करूणा और सहिष्णुता की भावना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि अहिंसा से तात्पर्य मन, वचन और कर्म से किसी को भी कष्ट न पहुंचाना तथा सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया, सहानुभूति और सेवाभाव बनाये रखने से है। अहिंसा करुणा, दया, धैर्य और शांति जैसे मूल्यों की प्राप्ति हेतु महात्मा बुद्ध, तीर्थंकर महावीर स्वामी और महात्मा गांधी जी ने अथक प्रयत्न कर अहिंसा के व्यापक कर शाश्वत जीवन मूल्य हमें प्रदान किये।
भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ जैसे मूल्यों को केंद्र में रखकर प्राणिमात्र के प्रति करुणा, आत्मीयता, प्रेम और शान्ति में अभिवृद्धि की जा सकती है।
महात्मा गांधी जी के अनुसार अहिंसा नैतिक जीवन जीने का मूलभूत सिद्धान्त है। यह केवल एक आदर्श नहीं है बल्कि यह हमारा एक प्राकृतिक नियम है। अगर हम देखें तो, भारत 18 वीं व 19 वीं सदी तक प्रकृति और मानव जीवन के समन्वित विकास, सहअस्तित्व एवं आध्यात्मिक मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ा लेकिन 20 वीं व वर्तमान 21 वीं सदी में मानव जिस भौतिकवादी संस्कृति को लेकर आगे बढ़ रहा है उसमें मानवता और प्रकृति का कल्याण निहित नहीं है। हमें एक ऐसी संस्कृति विकसित करनी होगी जो परम्परागत होने के साथ ही उसमें धर्म, आध्यात्मिकता, मानवतावादी, सनातन संस्कृति और वैज्ञानिकता की सभी धाराएँ समाहित हो। एक ऐसा मार्ग खोजना होगा जिसमें धर्म, अध्यात्म एवं भौतिकता’ का उत्कृष्ट समन्वय हो। इसी समन्वय से प्राणी, प्रकृति और मानव के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।
पक्षी, प्रकृति की सबसे खूबसूरत चीजों में से एक हैं। वे अपनी चहचहाहट से हमारे दिन को बेहतर बनाते हैं आईये आज राष्ट्रीय प्रक्षी दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि पौधों का रोपण व संरक्षण करें ताकि पक्षियों को अपना घरौंदा मिल सकें; वायु प्रदूषण को कम करें जिससे वे खुले आसमान में सांस लें सके। ग्लोबल वार्मिग के कारण पक्षियों का जीवन संकट में है इसलिये आईये प्रकृति व पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनाने का संकल्प ले।
तो क्या कभी नहीं खुलेगा रेंजर की मौत का राज?
हल्द्वानी(आरएनएस)। तराई केंद्रीय वन प्रभाग की भाखड़ा रेंज में तैनात रेंजर की मौत के मामले में वन विभाग ने खामोशी ओढ़ ली है। हैरानी की बात यह है कि विभाग ने घटना के एक माह से ज्यादा गुजर जाने के बावजूद विभागीय जांच करना भी उचित नहीं समझा है। जबकि मामले की गहन जांच को लेकर वन क्षेत्राधिकारी संघ, प्रदेश के डीजीपी और अपने विभाग के मुखिया को पत्र लिख चुका है। परिजनों की तहरीर नहीं मिलने से पुलिस भी मामले की जांच नहीं कर रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि रेंजर की मौत का राज अब नहीं खुल सकेगा। भाखड़ा रेंज में तैनात हरीश चंद पांडे 29 नवंबर 2023 की शाम को रेंज कार्यालय से अचानक अचानक लापता हो गए थे। करीब 15 दिन बाद 13 दिसबर को उनका शव भीमताल में ताल के किनारे मिला था। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर बिसरा जांच के लिए भेज दिया था। मामले में मीडिया से बात करते हुए रेंजर के पुत्र ने विभागीय अधिकारियों को घटना के लिए जिम्मेदार बताया था। हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना पर वन महकमा चुप्पी साध गया है। मामले में न तो कोई जांच हुई ना ही कोई कार्रवाई की और ना ही किसी तरह का खुलासा हुआ है। इससे वन विभाग की पूरी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा होने लगा है।
लापता होने पर ये उठ रहे थे सवाल: रेंजर पांडे 29 नवंबर को लापता हुए थे। तब यह बात कही जा रही थी कि उनकी रेंज में तस्करों द्वारा कई पेड़ों के काटे जाने के चलते उन पर अधिकारियों का दबाव था। एक अन्य जांच के मामले में भी उन पर दबाव बनाए जाने की बात कही जा रही थी। जिसे वन अधिकारियों ने नकार दिया था।
वन क्षेत्राधिकारी की मौत की जांच होनी ही चाहिए, ताकि उनके परिवार को न्याय मिले। जांच इसलिए भी जरूरी है कि भविष्य में इस तरह की घटना को होने से रोका जा सके। डीजीपी व वन विभाग के मुखिया को पत्र लिखकर जांच की मांग की गई है। – डॉ. विनोद चौहान, अध्यक्ष, वन क्षेत्राधिकारी संघ उत्तराखंड