यह खुला तथ्य है कि पहलवानों को कांग्रेस पार्टी का समर्थन है। खबरें तो यह भी हैं कि साक्षी, विनेश और बजरंग को आगामी लोकसभा या हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी टिकट दे सकती है। ताजा प्रकरण में नाराज पहलवानों से मिलने प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी पहुंचे। राहुल गांधी की बजरंग पुनिया के गांव जाने और कुश्ती लड़ने वाली तस्वीरें पूरे देश न देखीं। विनेश के अवार्ड वापसी के बाद भी राहुल और प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया के माध्यम से मोदी सरकार पर तीखे हमले किये। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा की पहलवान आंदोलन से लेकर वर्तमान प्रकरण तक भूमिका सार्वजनिक है।
न्याय के लिए आंदोलन और अपनी आवाज बुलंद करने का अधिकार हमें हमारा संविधान प्रदान करता है। लेकिन खिलाड़ियों का एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता की भांति व्यवहार उचित नहीं ठहराया जा सकता। पिछले एक साल में ऐसे कई अवसर आए जब पहलवानों ने अपने राजनीतिक आकाओं के इषारे पर सोची समझी रणनीति के तहत केंद्र की मोदी सरकार की छवि धूमिल करने वाले कृत्यों को अमली जामा पहनाया।
बीती 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या धाम में नवनिर्मित हवाई अड्डे ओर रेलवे स्टेशन का लोकार्पण किया। अयोध्या को देश से जोड़ने के लिए कई नई रेलगाड़ियों का हरी झंडी दिखाई। और अयोध्या धाम के विकास के लिए करोड़ों की योजनाओं की घोषणा की। अयोध्या के विकास और प्रभु श्रीराम मंदिर के लोकापर्ण से पूर्व इस कार्यक्रम की बड़ी महत्ता है। लेकिन पहलवान इस दिन भी प्रपंच करने से बाज नहीं आए। विनेश फोगाट इसी दिन पीएम आवास के बाहर अपना अर्जुन और खेल रत्न सम्मान वापस करने पहुंची और अपने अवार्ड सड़क पर छोड़कर चली आईं। पहलवानों का खास मौके पर नकारात्मक व्यवहार यह साबित करता है कि वे एक राजनीतिक दल के पयादे या मोहरे भर हैं। पूर्व की घटनाओं के आधार पर इस बात की संभावना है कि आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के शुभ अवसर पर रंग में भंग डालने के लिए पहलवान कोई नया नाटक या प्रपंच कर सकते हैं।
पूरा देश चाहता है कि पहलवानों को न्याय मिले। लेकिन न्याय पाने के लिए जो पहलवान जो प्रपंच और प्रोपगेंडा कर रहे हैं, वो देशवासियों को अखरता है। एक अहम प्रश्न यह भी है कि जब पहलवानों ने धरना प्रदर्शन किया, उस समय भी उन्हें देश के सारे पहलवानों या अखाड़ों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। वहीं जाट समुदाय की खाप पंचायतें भी खुलकर उनके समर्थन में नहीं आई। इससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कहीं न कही पहलवान बिरादरी और जाट समुदाय ये मानता है कि पहलवानों ने इस मामले में राजनीति कर रहे हैं। यकीन मानिए अगर पहलवानों के आरोपों में सौ फीसदी सच्चाई झलकती तो पूरा देष उनके साथ खड़ा दिखाई देता। पहलवानों के आरोप बेबुनियाद और झूठा नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इन आरोपों में राजनीति की मिलावट साफ-साफ दिखाई देती है।
पहलवान न्याय चाहते हैं, लेकिन अपने मन के मुताबिक। वो चाहते हैं कि कुश्ती महासंघ पर उनका वर्चस्व हो। वो कानून और नियमों को दरकिनार कुश्ती में बना रहना चाहते हैं। वो खुद को चैंपियन समझते हैं और ट्रायल देने में अपनी तौहीन समझते हैं। वो चाहते हैं कि सभी बड़ी खेल र्स्पाधाओं में बिना ट्रायल उन्हें प्रवेश दिया जाए। ऐसा हो भी चुका है। 2022 के एशियाई खेलों में विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को बगैर ट्रायल सीधी एंट्री मिली। नतीजा सबका सामने है।