प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है। प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्वीकार कर लिया है, जिसका मतलब है कि मोदी सरकार के 9 साल के कार्यकाल में ये दूसरा मौका पर जब उसे विपक्ष के भरोसे का टेस्ट देना होगा। 2018 में विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तंज कसते हुए कहा था, मैं आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। आप इतनी मेहनत करो कि 2023 में आपको फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका मिले। यानि प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा था, वो अब सच हो गया है। विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है।
वैसे विपक्ष ने जो लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिसका गिरना तय है क्योंकि एनडीए के 331 सांसद हैं, टीडीपी के 3 और जेडीएस का एक सांसद भी एनडीए के साथ हैं। दूसरी तरफ 210 सांसद बचते हैं, अगर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 210 वोट नहीं पड़ते तो विपक्ष का यह दावा गलत साबित हो जाएगा कि इंडिया गठबंधन मोदी के खिलाफ खड़ा हो चुका है। विपक्ष, जिसे अब वे सदन से बाहर इंडिया कह रहे हैं, उसके लोकसभा में सिर्फ 142 सांसद हैं, टीआरएस के 9 सांसद भी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देंगे। 9 अन्य सांसदों पर भी विपक्ष को भरोसा है कि वे अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करेंगे। वाईएसआर कांग्रेस-22, बीजू जनता दल-12, और बसपा-9 सांसद भी तटस्थ हैं, लेकिन इन तीनों दलों के 43 सांसदों के विपक्ष के साथ वोट किए जाने की संभावना अभी तक नजर नहीं आती। इसलिए यह तय है कि पटना और बेंगलुरु बैठकों से उसने जो माहौल बनाने की कोशिश की है, उसकी हवा अविश्वास प्रस्ताव से निकल जाएगी।
दरअसल देखा जाय तो विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर बड़ी राजनीतिक गलती कर ली है। वह मणिपुर के मुद्दे पर बात करना चाहता था, और सरकार उसके लिए तैयार थी। गृहमंत्री अमित शाह ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी को चिठ्ठी लिख कर कहा था कि विपक्ष मणिपुर के मुद्दे पर जितनी लंबी बहस करना चाहता है, करे, सरकार उसके लिए तैयार है, लेकिन आप बहस करिए। जबकि विपक्ष बहस के बजाए हंगामा कर रहा था। विपक्ष की जिद्द यह थी कि पहले प्रधानमंत्री दोनों सदनों में मणिपुर पर बयान दें, फिर बहस होगी। राज्यसभा में तो बयान के बाद सवाल उठाने के नियम हैं, लेकिन लोकसभा में तो यह नियम ही नहीं है कि मंत्री या प्रधानमंत्री के बयान के बाद उस पर स्पष्टीकरण मांगा जाए। विपक्ष के नेता सदन को अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं, जबकि सदन नियमों से चलता है। पता है गिरेगा अविश्वास प्रस्ताव , फिर फुल कॉफिडेंट में क्यों हैं INDIA वाले । विपक्ष का राजनीतिक दृष्टिकोण भी इतना कमजोर क्यों हो गया है कि अपना नफा नुकसान ही नहीं देख पा रहा। वैसे भी अगर मणिपुर पर बहस होती, तो प्रधानमंत्री मोदी बहस में दखल देते हुए अपना बयान देते ही, तब आप जितने चाहे सवाल दाग सकते थे। वह संसद सत्र के पहले दिन पत्रकारों के सामने मणिपुर की शर्मनाक घटना की न सिर्फ निंदा कर चुके हैं, बल्कि देश को आश्वासन भी दे चुके हैं कि अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। दो महिलाओं को नग्न करके पीटने का वीडियो सामने आने के बाद सात लोग गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं। किसी भी प्रदेश में क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर बहस करनी हो तो वह गृह मंत्रालय के अधीन ही आती है। विपक्ष के नेता नियम पर भी अड़े थे कि फलां नियम में बहस होनी चाहिए, फलां में नहीं होनी चाहिए। सरकार किसी भी नियम में बहस करने को तैयार थी, लेकिन मणिपुर पर बहस के बजाए मोदी को कटघरे में खड़ा करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस देकर विपक्ष ने गलती कर दी है। अब तो खुला खेल फर्रुखाबादी होगा, अविश्वास प्रस्ताव पर दो या तीन दिन की बहस होगी। भाजपा के सांसद ज्यादा हैं, तो बोलने का मौक़ा भी ज्यादा उन्हीं को ही मिलेगा।
गौरतलब है कि अब बहस सिर्फ मणिपुर पर नहीं होगी, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की घटनाओं पर भी होगी, जहां महिलाओं के खिलाफ करीब करीब मणिपुर जैसी ही घटनाएं हुई हैं। राजस्थान में तो सरकार के मंत्री राजेन्द्र गुढा ने ही कांग्रेस को यह कह कर कटघरे में खड़ा कर दिया था कि मणिपुर से पहले अपना घर तो संभालों, अपने गिरेबान में तो झांको। बंगाल में पंचायत चुनावों में मारे गए निरपराध कांग्रेस, वामपंथी और आईएसएफ के कार्यकर्ताओं की हत्याओं की भी चर्चा होगी। पंचायत चुनावों में 46 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। बहस में जब यह मुद्दा उठाया जाएगा, तो कांग्रेस, कम्युनिस्ट और एआईएमआईएम किसके साथ खड़े होंगे। क्या वे तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़े हो पाएंगे, जो इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार है। अभी 18 जुलाई को जब सीताराम येचुरी का ममता बनर्जी का हाथ पकड़ते हुए फोटोवायरल हुआ था, तो बंगाल के उन कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में हंगामा किया, जिनके पारिवारिक सदस्यों ने तृणमूल कांग्रेस की हिंसा में अपनी जान गंवाई है। अविश्चास प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, क्योंकि न सिर्फ विपक्ष के आपसी मतभेद खुल कर सामने आयेंगे, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को सदन में खुल कर बोलने का मौक़ा दे दिया है।
वह दो घंटे बोलेंगे और धोकर रख देंगे। अविश्वास प्रस्ताव का हो हल्ला तो बहुत होगा, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने एक प्रकार से ‘आ बैल तू मुझे मार वाली कहावत ही चरितार्थ किया है , क्योंकि अब मोदी तो आखिर में बोलेंगे, वह शुरू में तो बोलेंगे नहीं। वह तो बहस का जवाब देंगे। मोदी के विजन पर मोदी विरोधियों को कितना भी संशय हो, मोदी के विजन पर उनके समर्थकों को पूरा भरोसा है।
स्पष्ट है कि खुद विपक्ष ने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मोदी को अपनी नौ साल की उपलब्धियां गिनाने का स्वर्णिम अवसर उपलब्ध करवा दिया है। भाजपा का दावा है मोदी ने पिछले नौ साल में वह करके दिखाया है, जो 65 साल से नहीं हुआ था। देश ने आर्थिक मोर्चे पर बेमिसाल तरक्की की है, इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में बेमिसाल तरक्की की है। सड़कें, ट्रेन, हवाई अड्डे, पोर्ट, भारत एकदम बदल गया है। साईंस और विज्ञान के क्षेत्र में भी बेमिसाल तरक्की की है। कोरोना के दौरान भारत ने मेडिकल क्षेत्र में पूरी दुनिया में झंडे गाड़े हैं। बहस के दौरान एनडीए के सांसद उन उपलब्धियों को गिनाएंगे और बताएंगे कि मोदी ने देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है, आज पूरी दुनिया में इंडिया की पहचान मोदी से हो रही है। विश्व के बड़े बड़े नेता उनके विजन और कामों का लोहा मान रहे हैं, यह देश का बच्चा बच्चा जानता है, और आप उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर देश और दुनिया में क्या मैसेज दे रहे हो।
अब मुद्दा केवल मणिपुर नहीं रहा, अब मुद्दा अविश्वास प्रस्ताव हो गया है, मणिपुर पर बहस न करके, और अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने साबित कर दिया कि वह इतने दिन तक मणिपुर की शर्मनाक घटना को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष शायद अपनी एकता का अहसास करवाना चाहता है। यह अहसास वह दिल्ली अध्यादेश के बिल पर भी करवा सकता था, जिसे केबिनेट ने मंजूरी दे दी है। संसद में काले कपड़े पहनकर पहुंचे विपक्षी सांसद, राघव चड्ढा बोले- मणिपुर को बचाएं मोदी ।
देखने वाली बात यह भी है कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर मोदी को विधानसभा चुनावों में प्रचार का मौक़ा दे दिया है, क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव पर उनके जवाब को देश भर के चैनलों पर सीधा प्रसारित किया जाएगा , देश विदेश की अख़बारों में प्रधानमंत्री का भाषण छपेगा । दूसरी तरफ लोकसभा में विपक्ष का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो देश को प्रभावित करने की क्षमता रखता हो। कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी को कौन सुनेगा। सोनिया गांधी क्या और कितना बोलेंगी। समाजवादी पार्टी के पास कोई बोलने वाला नहीं है, राजद-जेडीयू में कोई बोलने वाला नहीं, लेफ्ट में भी कोई असरदार बोलने वाला नहीं। विपक्ष के बोलने वाले सभी नेता लोकसभा का चुनाव हार गए थे, वे सब अब राज्यसभा में हैं, और अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पेश होता है।
यही वजह है कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर भाजपा बेफिक्र है, लेकिन पिछले इतिहास को देखा जाए तो ये दांव विपक्ष को ही भारी पड़ सकता है।ऐसा इसलिए कि 2018 में भी विपक्ष ने कुछ ऐसी ही एक कोशिश मोदी सरकार के खिलाफ की थी, जिसमें सरकार का तो कुछ बिगड़ा नहीं, लेकिन उसके बाद अगले चुनावों में देश की जनता का विश्वास विपक्ष से उठ गया था। 2019 में आए जनता के फैसले को जानने से पहले 2018 के अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति को समझते हैं। 20 जुलाई 2018 को विपक्ष की तरफ से केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस अविश्वास प्रस्ताव पर तकरीबन 11 घंटे की बहस हुई थी।वोटिंग का समय आया तो अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ 325 वोट पड़े थे, जबकि समर्थन में महज 126 वोट ही आए। लिहाजा सजन में मोदी सरकार ने अपना बहुमत साबित किया।उस समय विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था, लेकिन इसके कुछ महीनों के बाद 2019 में लोकसभा के चुनाव फिर से हुए थे, तो जनता ने भाजपा पर भरोसा किया था। 2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा को और भी मजबूत जनादेश मिला।
नतीजा ये रहा कि 2014 में भाजपा को 282 सीटें मिली थीं और भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी। NDA के खाते में कुल 336 सीटें आईं, जो बहुमत से काफी ज्यादा रहीं। 2014 में कांग्रेस को 44 सीटें ही मिलीं, तो UPA की कुल संख्या 59 तक सीमित रही। तो 2019 में भाजपा ने अकेले ही 303 सीटों पर कब्जा किया था और NDA को कुल 353 सीटें मिलीं। 2019 में कांग्रेस के खाते में 52 सीटें गईं तो UPA का कुल आंकड़ा 100 से नीचे 92 सीटों पर ही सिमट गया था।हालिया कांग्रेस की तरफ से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की बात करें तो पिछले ट्रेंड को देखते हुए ये भी माना जा सकता है कि कहीं न कहीं विपक्ष ने 2024 चुनाव के लिए खुद प्रधानमंत्री मोदी के लिए पिच तैयार कर दी है।