चाचा शरद पवार की मौन सहमति हासिल थी
महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को आए एक बड़े राजनीतिक भूचाल के बाद अब छोटे पवार (अजित पवार) ‘पावर’ में आ गए हैं लेकिन बड़े पवार यानी शरद पवार ने जिस तरह से अजित पवार की बगावत और अपनी पूरी पार्टी छिन जाने के बाद भी एक शांत और संयमित प्रतिक्रिया दी है,
कि क्या वाकई शरद पवार इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम से अनजान थेहालांकि इस बारे में फिलहाल अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन भतीजे अजित पवार के एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए शरद पवार ने जिस अंदाज में यह कहा कि वह इस मसले पर अदालत में नहीं जाएंगे बल्कि जनता के बीच जाकर अपनी बात रखेंगे, उससे अपने आप में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। दिलचस्प तथ्य तो यह है कि एक तरफ जहां अजित पवार यह दावा कर रहे हैं
कि पार्टी के सांसद, विधायक और नेता उनके फैसले के साथ हैं, वे एनसीपी पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में शामिल हुए हैं और वह राज्य में होने वाले आगामी चुनावों को अपनी एनसीपी पार्टी के बैनर तले और एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर ही लड़ेंगे वहीं दूसरी तरफ शरद पवार अदालत की बजाय जनता के बीच जाने की बात कर रहे हैं।
वह एनसीपी के नाम से एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारेंगे तो ऐसे में जनता के बीच में जाकर शरद पवार किस पार्टी के नाम से, किस चुनाव चिह्न पर जनता का समर्थन मांगेंगे
कि शरद पवार को पार्टी पर कब्जा बनाए रखने के लिए अपनी बात से पलटना होगा और विधानसभा स्पीकर से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना होगा लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करते हैं