सोनभद्र। कलेक्ट्रेट परिसर में गुरुवार को गांधी प्रतिमा पार्क स्थल पर राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के बैनर तले एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करते हुए अपनी विभिन्न मांगों को लेकर कार्यकर्ताओं ने आवाज बुलंद की। 22 सुत्रिय मांग संबंधित राष्ट्रपति नामित ज्ञापन जिलाधिकारी प्रतिनिधि को सौंपा।
परिषद के जिलाध्यक्ष भगवान दास ने बताया कि,भारत के विभिन्न राज्यों में निवास करने वाले आदिवासीयों की संस्कृति और पहचान समाप्त करने के लिए एवं विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन से बेदखल करने के लिए बनाये जा रहे संसद द्वारा असंवैधानिक कानूनों पर तत्काल रोक लगाकर, संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अधिकार सुनिश्चित होने चाहिए जिसके लिए संगठन एकत्रित हैं।
उन्होंने कहा कि, संविधान में आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचान प्राप्त है और इसी पहचान के आधार पर तमाम प्रकार की सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, राजनितिक, सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न अनुच्छेदों और अनुसूचियों में अधिकार प्राप्त है । परंतु बिडंबना यह है कि, जिन तमाम विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए गुलाम भारत में आदिवासी महापुरुषों ने जल, जंगल, जमीन और अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए जान की बाजी लगाई थी उन्हे ही अधिकार से वंचित किया जा रहा है।सन 1947 को मिली आजादी और हमें सन 1950 में मिले अधिकारों के बावजूद विकास के नाम पर, पर्यावरण संरक्षण के नाम एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर आदिवासीयों को उनके जल, जंगज और जमीन से विस्थापित किया गया और उनका पुर्नवास करने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुआ। जबकि संविधान में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूची 5 और 6 में उल्लेख है कि, इन क्षेत्रों में केंद्रिय या राज्य सरकार को दखल देने का अधिकार नहीं होगा। बल्कि जनजाति मंत्रणापरिषद की स्थापनाकर वही विकास की सारी संभावनाओं को जमीन पर उतारने का काम करें और उसका नियंत्रण प्रदेश में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति के अधीन होगा। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के विरोध में राज्य और केंद्र की सरकारे लगातार आदिवासीयों के विरोध में कानून बनाकर आदिवासियों को बेदखल करने का काम कर रही है। इसलिए देशभर के लाखों जनजातियों के सामाजिक संगठनों में आक्रोश होने से उन्हें ओदालन करना पड रहा है और हम संगठनों ने अपनी बुनियादी और जायज मांगों को एकत्रित कर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है। हमारी मांगो पर विचार कर उचित कार्यवाही की जाय । कहा कि, कॉमन सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लागू करने का कानून बनाकर आदिवासीयों को मिली अलग आदिवासी पहचान को खत्म करके उन्हें हिन्दू बनाने की साजिश की जा रही है। इससे आदिवासीयों का कस्टमरी लॉ, पृथक संवैधानिक पहचान एवम् तमाम तरह के संवैधानिक अधिकर खत्म होने का खतरा पैदा हो जायेगा, विकास के नाम पर, पर्यावरण संरक्षण के नाम पर एवम् वन्य प्रणियों के संरक्षण के नाम पर आदिवासीयों को जल, जंगल और जमीन से विस्थापित करने एवम् उनकी रोजीरोटी छिनने का षड्यंत्र किया जा रहा है, नेशनल कॉरिडोर एवम् भारत माला प्रोजेक्ट के नाम पर 4-लेन, 6-लेन, 8-लेन और 10-लेन नेशनल हाईवे का निर्माण करके और हाईवे के आजू-बाजू में नये-नये इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण करके आदिवासीयों को विस्थापित किया जा रहा है। जिससे उनके 5 वी अनुसूची क्षेत्रों को खत्म होने का क्षतरा पैदा हो गया है, उसके विरोध में, 2020 2021 व 2022 में आदिवासीयों के विरोध में जो बिल संसद में पारित हुए एवम् 2023 में नया फॉरेस्ट एक्ट बनाया जा रहा है, जिससे आदिवासीयों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है, उसके विरोध में, मणिपुर में आदिवासीयों पर बड़े पैमाने पर अन्याय एवम् अत्याचार किये जा रहे है। उनकी बस्तियों में आग लगाई जा रही है। जिसकी वजह से मणिपुर के आदिवासी बडे पैमाने पर पलायन करने के लिए मजबूर हो गये है,अतिक्रमण हटाने के नाम पर जंगलों के आसपास रहने वाले आदिवासीयों को बड़े पैमाने पर फॉरेस्ट विभाग के द्वारा विस्थापित किया जा रहा है, जडमूल से रहने वाले आदिवासीयों के गाँवों को रेवन्यू विलेज (राजस्व ग्राम) का दर्जा आजादी के 75 वर्षो के बाद भी प्रदान नहीं किया गया है, यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है।आदिवासी बहुल इलाको में ब्राह्मणों के देवी-देवताओं के मंदिरों का बड़े पैमाने पर निर्माण करके, उनके इलाकों में कथा वाचकों के कार्यक्रम आयोजित करके आदिवासीयों की संस्कृति को खत्म करके उन्हें जबरदस्ती हिन्दू बनाया जा रहा है, उसके विरोध में, डिलिस्टिंग के नाम पर यानि धर्म परिवर्तित आदिवासीयों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के नाम पर प्रोपोगेंडा करके ईसाई आदिवासीयों एवम् गैर-आदिवासीयों में आपस में झगडा लगाकर गैर ईसाई आदिवासीयों को RSS के द्वारा हिन्दू बनाने की साजिश की जा रही है तथा आदिवासीयों के धार्मिक स्थलों पर कथा प्रवचन, कथा भागवत करके उनका ब्राह्मणीकरण किया जा रहा है। उन पर जबरन ब्राह्मणवाद थोपा जा रहा है। जिससे आदिवासीयों की मूल सभ्यता, संस्कृति, कल्चर, देवी-देवताओं, पूजा पद्धती खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। आदिवासी बहुल इलाकों में आदिवासी महापुरुषों के बारे में कपोल कल्पित एवम् मनगढत इतिहास से सम्बंधित साहित्य का निर्माण करके आदिवासी महापुरुषों के इतिहास का विकृतिकरण करने के लिए विभिन्न प्रकार के साहित्य को आदिवासी बहुल इलाकों में फ्री में वितरित किया जा रहा है । मणिपुर की कुकी आदिवासी महिलाओं के साथ किया गया नंगा नाच, कुकृत्य जिसमें बहुत सारे मर्द महिलाओं को नंगा करके उनके गुप्तांगों को दबोच रहे है। बेबस औरतें रो रही है और मर्दो की भीड़ आनंद ले रही है? पुलिस-प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है? इस कुकृत्य का हम धिक्कार करते है। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार चौथे चरण में राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आयोजन किया जाएगा । इस मौके पर भगवान दास ,राजबली गोड़, जोखन अगरिया ,लक्ष्मी नारायण ,हीरावती देवी ,फूलवती देवी, संपतिया ,गुलबिया, रूपनारायण ,अनीता सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।