भाजपा के लिए भी क्षेत्रीय दलों के साथ सीट शेयरिंग मुश्किल भरा रास्ता होगा, किन्तु इतना नहीं जितनी मुश्किलों का सामना विपक्षी दलों को करना पड़ेगा। असली मुद्दा विपक्षी दलों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर होना तय होगा। प्रधानमंत्री पद का मुद्दा हो सकता है उसके बाद तय हो। यह दोनों मुद्दे विपक्षी दलों के लिए लोहे के चने चबाने से कम नहीं हैं। कांग्रेस की चार राज्यों में खुद की और तीन राज्यों में गठबंन की सरकार है। कहीं डीएमके तो कहीं राजद-जेडीयू, जेएमएम के साथ गठबंधन में हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी साफ सहित कई दूसरे दलों के नेता इस बात पर सहमत होते हुए राय व्यक्त कर चुके हैं कि कांग्रेस उनके राज्यों से दूर रहे। ये दल नहीं चाहते कि भाजपा के साथ-साथ उन्हें कांग्रेस से भी चुनावी मुकाबला करने पड़े। ऐसी स्थिति में इन क्षेत्रीय दलों का सत्ता में हिस्सेदारी का सपना कमजोर पड़ता है।
कांग्रेस ने अभी तक इस मुद्दे पर पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस नहीं चाहती कि लोकसभा सीटों की शेयरिंग और प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के मुद्दों को अभी से हवा देकर विपक्षी एकता में रुकावट पैदा करे। इससे विपक्षी दलों को कांग्रेस के खिलाफ बोलने का मौका मिल जाएगा और कांग्रेस इस एकता के टूटने का आरोप अपने सिर नहीं लेना चाहती। यह निश्चित है कि कांग्रेस को यदि देश और दिल्ली की राजनीति करनी है तो विपक्षी दलों के सीट शेयरिंग फार्मूले को नकारना होगा। फिलहाल कांग्रेस तेल और तेल की धार देखने के मूड में है। कांग्रेस अभी पूरी ताकत से विपक्षी दलों के साथ मिलकर केंद्र की भाजपा सरकार के प्रति हमलावर की मुद्रा में है और इस तेवर को पीएम सहित किसी तरह के मुद्दे् को हवा देकर की कमजोर नहीं करना चाहती।
विपक्षी एकता में लोकसभा चुनाव की सीट शेयरिंग सबसे बड़ा मुद्दा है। इस मुद्दे पर किसी तरह की जल्दबाजी दिखा कर कांग्रेस अपने माथे पर एकता के टूटने का ठीकरा नहीं फुड़वाना चाहती। यही वजह है कि कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की दावेदारी और सीट शेयरिंग के मामले में खुलकर प्रतिक्रिया जाहिर करने से हिचकिचा रही है।
कांग्रेस यदि विपक्षी दलों के इस प्रस्ताव को मंजूर कर लेती है तो उसका जनाधार और संगठन, दोनों कमजोर पड़ जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय दलों का यह प्रस्ताव गले की फांस बना हुआ है। हालांकि मुंबई में होने वाली विपक्षी दलों की तीसरी बैठक में ही कुछ स्पष्ट हो पाएगा कि यदि ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो कांग्रेस क्या स्टैंड लेती है। कांग्रेस इस मुद्दे पर दोराहे पर खड़ी है। यदि विपक्षी दलों का सीट शेयरिंग प्रस्ताव स्वीकार करती है तो पहले से ही भाजपा द्वारा कमजोर कर देने के बाद और कमजोर हो जाएगी। यदि कांग्रेस प्रस्ताव का विरोध करती है कि विपक्षी एकता का होना संभव नहीं होगा। ऐसे में विपक्षी को एकता में अड़चन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने का मौका मिल जाएगा, कांगेस फिलहाल ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी।