November 24, 2024
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नई दिल्ली । दिल्ली की एक अदालत ने कथित तौर पर 12 लाख रुपये की रिश्वत लेने वाले एक व्यक्ति को जमानत दे दी है। अदालत ने आरोपित को जमानत देते हुए कहा कि किसी आरोपित को दोषी ठहराए जाने से पहले उसको सजा देना उचित नहीं और उसको जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

विशेष न्यायाधीश सुनेना शर्मा ने 12 लाख रुपये की रिश्वत लेने के कथित आरोपित ऋषि राज को जमानत देते हुए कहा कि यह आपराधिक न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है कि किसी आरोपी को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है।

दोषी साबित होने से पहले तक निर्दोष होता है आरोपितअदालत

न्यायाधीश ने 17 जुलाई को पारित आदेश में कहा, “यह आपराधिक न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है कि दोषी साबित होने तक आरोपी को निर्दोष माना जाता है। यहां तक कि यह मानते हुए भी कि आरोपित किसी अपराध के लिए प्रथम दृष्टया दोषी है, दोषी ठहराए जाने से पहले आरोपित को दंडित करने की अप्रत्यक्ष प्रक्रिया में जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता है।”

अदालत ने आरोपी को 50,000 रुपये के जमानत बांड और इतनी ही राशि के दो जमानत देते हुए निर्देश दिया कि आरोपी अदालत की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ेगा और न ही किसी भी तरह से गवाहों से संपर्क करेगा या उन्हें प्रभावित करेगा और वह जांच में सहयोग करेगा।

आरोपित ने इन आधारों पर मांगी थी जमानत

याचिकाकर्ता ने अदालत से जमानत मांगते हुए बताया कि आरोपित अपने वृद्ध माता-पिता और सात महीने की गर्भवती पत्नी की देखभाल की जिम्मेदारी है। आरोपित ने यह भी दावा किया कि उसे आगे हिरासत में रखने से कोई जांच एजेंसी का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, क्योंकि जांच लगभग पूरी हो चुकी है और वह जरूरत पड़ने पर जांच में शामिल होने के लिए तैयार है।

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी एक महीने से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में था और कथित लेनदेन की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग पहले से ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के कब्जे में थी। उन्होंने आगे कहा कि आरोपित एक लोक सेवक था और उसकी ऐसे किसी भी मामले में पहले से कोई संलिप्तता नहीं थी।

जमानत का दुरुपयोग होने पर बेल रद्द की मांग कर सकती है एजेंसी

न्यायाधीश ने कहा, “ऐसे मामले में सीबीआई की आशंका कि आरोपित न्याय से भाग सकता है या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, जिसका कोई आधार नहीं है। इसके अलावा यदि आरोपित ऐसे किसी जमानत का दुरुपयोग करता पाया जाता है तो सीबीआई जमानत रद्द करने के लिए अदालत से संपर्क कर सकती है।”

बता दें कि गुप्ता मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल के प्रबंधक मनोज कुमार शेरा की शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत 12 जून को सीबीआई ने मामला दर्ज किया था।

क्या है मामला

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में प्रवर्तन अधिकारी के रूप में कार्यरत राज ने 26 अप्रैल को अस्पताल का दौरा किया और अस्पताल के कर्मचारियों के भविष्य निधि से संबंधित रिकॉर्ड से संबंधित दस्तावेज मांगे थे। 27 अप्रैल को शिकायतकर्ता ने ईपीएफओ कार्यालय का दौरा किया और संबंधित दस्तावेज पेश किए।

इसके बाद आरोपी ने शिकायतकर्ता को रिकॉर्ड में अनियमितताओं के बारे में बताया और कहा कि इसके कारण 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। हालांकि, उन्होंने रिश्वत के रूप में 20 प्रतिशत राशि के भुगतान पर मामले को बिना किसी दंड के निपटाने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने शिकायतकर्ता के अनुरोध पर घटाकर 12 लाख रुपये कर दिया।

शिकायतकर्ता ने बाद में शिकायत दर्ज कराई। जाल बिछाया गया और आरोपी को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया था।

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