May 4, 2024

गाजीपुर – गंगा आश्रम बयपुर देवकली में 46 वां मानवता अभ्युदय महायज्ञ का दूसरा दिन 21/ 4./24 सुबह 7 बजे हवन यज्ञ एवं नवान्ह पाठ का शुभारंभ ईश प्रार्थना से शुरू किया गया।शाम को 7बजे से सत्संग का शुभारंभ हुआ। गुरु अर्चा श्री सदानंद जी ,केदार जी, योगेंद्र जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। गुरु वंदना बहन पूनम जी, सुरेंद्र जी एवं दीनबंधु जी ने प्रस्तुत किया। वक्ताओं में श्री विजय बाबू जी गोरखपुर बताएं कि सद्गुरु की मूरत पर जिस भक्त की सूरत लग जाती है उसको भजन करने की जरूरत नहीं है। उसका भजन खुल जाता है। और नाम की प्राप्ति हो जाती है। जो प्राप्त है और अप्राप्त है सब कुछ गुरु की कृपा से मिलता है। जिसका भाव गुरु में रहेगा उसका काम भगवान पूरा करते हैं। व्यक्ति के ऊपर जब भगवान बहुत बड़ी कृपा करते हैं तो सद्गुरु से मिला देते हैं। सद्गुरु अविनाशी बीज है यह नष्ट नहीं होते हैं। हरि में गुरु में कोई भेद नहीं है। जीवन में सुख दुख आता जाता है। जो जन्म लिया है उसको एक दिन मरना है। यही सत्य है। बिना दीनता आए मनुष्य नहीं बन सकता। सद्गुरु के शरण में जाने से दीनता आती है। अहंकारी व्यक्ति कभी दिन नहीं हो सकता। सद्गुरु के विचारों का प्रसार करना जो व्यक्ति ऐसा करता है गुरु उसके ऊपर बहुत प्रसन्न होते हैं। युवा व्यास श्री माधव कृष्ण जी बताएं कि व्यक्ति का भटकना ही उसका एक रास्ता है। आध्यात्मिक यात्रा ही व्यक्ति को एक दिन उसके सही रास्ते पर पहुंचा देता है। दास का भाव व्यक्ति के अंदर होना चाहिए। तब वह व्यक्ति भगवान की नजदीक पहुंचता है। व्यक्ति को ब्रह्म को केंद्र में रखकर कोई भी काम करना चाहिए। ईश्वर के मुख से निकला शब्द सत्य और असत्य दोनों से परे है। हमारी निष्ठा केवल व केवल ब्रह्म में होना चाहिए। आध्यमिक यात्रा पर व्यक्ति को चलना चाहिए। सभी लोग इस मार्ग पर नहीं चलते हैं। गुरु के प्रति एकमात्र निष्ठा होनी चाहिए। गुरु के मुख से जो निकल जाए उसी का पालन करना चाहिए। व्यक्ति को हर चीज में भगवान की कृपा का दर्शन देखना चाहिए। व्यक्ति को अपने आधार को नहीं त्यागना चाहिए। भगवान कृष्ण कहते हैं कि मन का आधार मैं हूं। मन से बड़ा बुद्धि है। बुद्धि को भगवान में निवेश करना चाहिए। संस्था के अध्यक्ष पूज्य श्री राजेंद दास बापू जी अपने प्रवचन में बताएं की सृष्टि का प्रत्येक जीव सुख की शोध में है। वह केवल सुख चाहता है। यह जीव ईश्वर का अंश है तो ईश्वर का गुण भी जीव में है। अंशी हमेशा अपने अंश में मिलना चाहता। दीपक कि लव ऊपर की ओर जाती है दीपक की लव सूर्य भगवान का अंश है। इसलिए ऊपर जाता है।पानी अपने आप नीचे की ओर जाता है पानी का मूल स्रोत समुद्र है समुद्र नीचे की तरफ है। यह जीव ईश्वर का अंश है।और ईश्वर सुख की राशि है। जीव की गति ईश्वर की तरफ है। धर्म हमें मजबूत बनाता है। प्रमाणिक बनाता है। कर्मनिष्ठ बनाता है। यह सब कुछ करते हुए अपने कमाई का दान करें। परोपकार में परमार्थ में। ऐसा करने से व्यक्ति का भगवान कल्याण करते हैं। हमको घर परिवार कुछ नहीं छोड़ना है। किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। लेकिन जो कुछ कर रहे हैं भगवान की सेवा के लिए कर रहे हैं। ऐसा भाव होना चाहिए। अपने परिवार को मान लो कि यह भगवान के भेजे हुए हैं इनका सेवा करना है यही धर्म का सिंबल होना चाहिए। इस कार्यक्रम में रामेश्वर जी, विजय जी, राम अवध प्रभारी आदि लोग उपस्थित रहे एवं सभा का संचालन श्री तेज बहादुर जी ने किया। अंत में आरती प्रसाद एवं भोजन प्रसाद किया गया।

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