November 27, 2024
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उरई। कुछ अनपढ़ किसानों की स्वार्थी सोच के कारण खेतों की पराली एवं चकरोड व सड़क के किनारे खड़ी डाव (कुशा) नामक घास जलाकर अनजाने में ही वन्यजीव व मानव जीवन के साथ निरंतर खिलवाड़ किया जा रहा है।
माधौगढ़ तहसील अंतर्गत कृषि क्षेत्र में किसानों के द्वारा खेतों की पराली जलाने एवं मेंड़ पर व सड़क तथा चकरोड के किनारे खड़ी डाव (कुश) घास व अनेक प्रकार की वनस्पति जलने का सिलसिला प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है परिणाम स्वरूप कुछ अशिक्षित किसान अज्ञानतावश अपने सूक्ष्म स्वार्थ में संपूर्ण प्राणी जगत के जीवन के लिए संकट उत्पन्न कर रहे हैं। समस्त लोग जानते हैं कि मानव जीवन एवं प्राणी जगत के लिए ऑक्सीजन गैस की आवश्यकता होती है बिना ऑक्सीजन के प्राणी जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए प्रकृति ने पीपल, बरगद, नीम जैसे बहुत अधिक ऑक्सीजन आपूर्ति करने वाले वृक्षों के साथ-साथ अनेक वृक्ष जो हमारे आसपास खड़े हैं वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित कर ऑक्सीजन आपूर्ति करते हैं। ज्ञात हो कि वायुमंडल में सिर्फ 21 प्रतिशत ऑक्सीजन गैस है। लेकिन खेतों एवं उसके आसपास आग लगने पर 16 प्रतिशत ऑक्सीजन गैस जलकर नष्ट हो जाती है धुआं व आग से कार्बन मोनोऑक्साइड गैस बनती है जो वायुमंडल में घुल जाती है। वैज्ञानिक एवं चिकित्सकों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कार्बन मोनोऑक्साइड गैस निगल लेता है तो उसके शरीर में ऑक्सीजन के प्रवेश में अवरोध उत्पन्न हो जाता है परिणाम स्वरूप ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती जिससे हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त होकर होता है । इससे इसके अतिरिक्त खेतों में पराली एवं मेंड़ो पर घास में आग लगने से उसमें रहने वाले जीव जैसे चूहा, सांप, गिरगिट, नेवला, गोह सहित अनेक थलचर जीव व पेड़ों पर घोंसले में नवजात पंख विहीन उड़ पाने में अक्षम विभिन्न पक्षियों के चूजे एवं सड़क के किनारे स्वत जन्म लेकर वृक्ष बनने की दौड़ में लहलहाते नवोदित पौधे जलकर बेमौत नष्ट हो जाते हैं। खेतों की पराली में लगी आग बुझने के बाद भस्मीभूत खेत में भ्रमण करने पर ना चाहते हुए भी अनेक जीव जंतुओं के जले हुए अवशेष दिखाई दे जाते हैं जिससे किसी का भी मन करुणा से भर उठता है , कल्पना करो कि बेचारे वह निर्दोष जीव दुष्ट किसानों के द्वारा लगाई गई आग में कितनी पीड़ा सहते हुए तडफ तडफ कर जिंदा जल मरे होंगे। इसी प्रकार कुछ छोटे-छोटे कीट पतंग जो फसल के लिए भी लाभदायक होते हैं वह भी आग की भेंट चढ़ जाते हैं। खेतों की पराली तथा डाब (कुशा) व अन्य वनस्पति जलने का परिणाम सिर्फ जीव हत्या व पशुओं के खाने के लिए खड़ी घास फूस वनस्पति या उसका भोजन जलाने का ही अपराध नहीं है बल्कि भीषण गर्मी में और अधिक तापमान बढ़ने व असहनीय गरमी का कारण भी अकारण लगाई जाने वाली आग है। प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन को चाहिए कि पराली व खरपतवार नष्ट करने के कारगर उपायों को बताते हुए किसानों द्वारा खेतों में खडी पराली में आग लगाने से होने वाले नुकसान जैसे जीव जंतुओं वनस्पतियों एवं नये पुराने वृक्षों की जलकर नष्ट होने व जीवन उपयोगी ऑक्सीजन गैस के जलने एवं हानिकारक गैसों के उत्पन्न होने से नुकसान की प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाय व प्रत्येक पंचायत स्तर पर एक निगरानी समिति बनाई जाए जिसमे स्थानीय निकाय अध्यक्ष ग्राम प्रधान, सचिव, लेखपाल, राजकीय नलकूप ऑपरेटर चार या पांच स्थानीय शिक्षित किसान आदि को निगरानी समिति का सदस्य बनाकर खेतों व सड़क के किनारे खडी वनस्पतियों में आग लगाने वालों को रोका जाए तथा न मानने पर उनके विरुद्ध जीव जंतुओं की निर्मम हत्या, वृक्ष व वनस्पति नष्ट करने, जीवन उपयोगी गैसों को जलाकर नष्ट कर हानिकारक गैसों के उत्पादन जैसी गंभीर धाराओं में अभियोग पंजीकृत कराने का प्रावधान हो तो शायद अकारण आग लगाने के कारण उत्पन्न संकट से मानव एवं प्राणी जीवन को बचाया जा सकता है।

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