जरवल/बहराइच। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक लड़की थी जिसका नाम था बृंदा उसका जन्म हुआ था वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी बड़े प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी उसका विवाह हो जालंधर राक्षस जो समुद्र से उत्पन्न हुआ था। बताते चले वृंदावन सदा अपने पति की सेवा किया करती थी उधर उसके पति जालंधर देवताओं से युद्ध करने जा रहे हैं बृंदा पूजा में बैठकर उसकी जीत के लिए अनुष्ठान करने लगी और ये संकल्प लिया कि जब तक उसके पति वापस नहीं लौटेगे संकल्प नहीं छोड़ेंगी। उनके व्रत के प्रभाव से सारे देवता जब हारने लगे तब भगवान विष्णु के पास गए और रोने लगे जिस पर भगवान ने कहा वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं सकता भगवान से दूसरे उपाय की बात की तो भगवान ने जालंधर का रूप रख कर बृंदा के महल पहुंच गए l जैसे ही बृंदा ने अपने पति को देखा और उनके चरण जैसे ही छुआ जालंधर का सिर देवताओं ने सिर काट कर उसके महल मे फेक दिया भगवान द्वारा किया गया l छल से क्रोधित होकर बृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि तुम अभी पत्थर के हो जाओ भगवान तुरन्त पत्थर के हो गए जिससे देवता ही नहीं माता लक्ष्मी भी घबड़ा गई l तब भगवान विष्णु से बृंदा से शादी हो गई तब वृंदा ने भगवान का श्राप को खत्म कर अपने पति का सिर लेकर सती हो गई उनकी राख से जो पौधा निकला भगवान विष्णु ने कहा आज से बृंदा का नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से पूजा किया जाएगा। मैं बिना तुलसी जी के बिना भोग को भी स्वीकार नहीं करूंगा।और भगवान शालिग्राम का विवाह तुलसी के साथ कार्तिक मास के देवउठनी के दिन शालिग्राम और तुलसी की पूजा का एक विधान के रूप में किया जाता है।