अनवरत श्रम और साहस से भाग्य का मार्ग प्रशस्त होता हैभाग्य को परिभाषित करना अत्यंत कठिन है
अनवरत श्रम और साहस से भाग्य का मार्ग प्रशस्त होता है
भाग्य को परिभाषित करना अत्यंत कठिन है,
जहां सफलता की संभावना एकदम कम तथा न्यून हो और सफलता मिल जाए तो भाग्य को श्रेय दिया जाता हैl वास्तव में जो सफलता के चरम पर होता है, वह खुद ही जानता है कि भाग्य जैसी कोई चीज नहीं होती हैl पर सफल व्यक्ति से जुड़े हुए लोग उसके साहस और श्रम को श्रेय देने के बजाय व्यक्ति के भाग्य पर जोर देने लगते हैंl इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, जो सफलता को कुछ निश्चित गुणों पर आधारित मानते हैं।असफल व्यक्ति ही भाग्य पर ज्यादा भरोसा करते हैं, असफल होने पर अपने भाग्य को कोसते हैंl वस्तुतः भाग्य नाम की कोई चिड़िया होती ही नहीं है। भाग्य साहस और मेहनत की परिणति है। जिसके भीतर साहस और श्रम करने की प्रवृत्ति होती है, वही व्यक्ति सफल होता है। भाग्य उसका सदैव साथ देता है। साहसी व्यक्ति मेहनत से नहीं डरता,चुनौतियां स्वीकार करता है,और निडर होकर हर चुनौती का डटकर मुकाबला करता है। साहसी व्यक्ति कांटों से भरे पथ पर चलने के लिए तत्पर रहता है, डर नामक चीज़ से वह परिचित नहीं होता है। और अपनी मेहनत और साहस के बल पर बड़ी से बड़ी सफलता प्राप्त करता है, वही व्यक्ति भाग्यवान कहलाता है। मशहूर मुक्केबाज मोहम्मद अली उर्फ कैशियस क्ले ने एक महत्वपूर्ण मुक्केबाजी की स्पर्धा जीतकर कहा था,” जो व्यक्ति जीवन में ज्यादा खतरे नहीं उठाता वह एक साधारण जिंदगी जीने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता” मोहम्मद अली के इस कथन में कई सफलता के तत्व छुपे हुए हैं, यदि आपने अपनी जिंदगी में साहस नहीं दिखाया तो निश्चित तौर पर आप कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर सकते हैं, साहस एक ऐसा माननीय गुण है जो व्यक्ति की सफलता को दुगना कर देता है। साहस और श्रम ही जीवन का पर्याय है, और ऐसे व्यक्ति भीड़ में अलग दिखाई देते हैं। उन्हें ही समाज सफल व्यक्ति एवं भाग्यवान होने की श्रेणी में रखता है। साहसी व्यक्ति के मन में हिचक नहीं होती वह किसी भी निर्णय लेने में कभी किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं होता, अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए वह अपने साहस और श्रम पर विश्वास रख आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहता है। नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार भाग्य केवल सक्रिय मस्तिष्क का साथ देता है, इसीलिए मनुष्य को अपना मस्तिक सदैव क्रियाशील व सक्रिय रखना चाहिए, वास्तव में हम जैसे विचार रखते हैं, हम जैसा सोचते हैं, हम वैसे ही बन जाते हैं, जिसने विचारों की ऊर्जा को पहचाना, उसका जीवन सकारात्मक तथा सफलता के कदम चूमता है। अपने लक्ष्य के बारे में सदैव विचार करते रहें एवं उपलब्ध संसाधनों का रोना रोने के बजाय यह सोचना आवश्यक होगा कि हम अपना सर्वोत्तम कैसे दे सकते हैं। ऐसे विचारों और साहस के बहुत बड़े उदाहरण मीराबाई चानू,बजरंग पूनिया और गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा हैं, जो देश के लिए बहुत बड़े उदाहरण हैं। इसके अलावा अन्य भी जिन्होंने ओलंपिक 2020 जापान में देश के लिए खेल में चार और मेडल प्राप्त किया और देश का गौरव बढ़ाया। इन सब को बधाइयों के साथ शुभकामनाएं भी हैं, इनकी मेहनत लगन और साहस को देश के 135 करोड़ आवाम का अभिनंदन तथा वंदन है। थॉमस कूलर के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति अवसर को एक अच्छे भाग्य में बदल देता है। और वही व्यक्ति जो अवसर की तलाश में रहता है, उसे परिवर्तित कर अच्छे परिणाम देकर,अपने परिवार, समाज देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करवाता है। स्वयं को मिले अवसरों को सफलता में बदल डालिए, आपका हर पल बहुत कीमती है, उसे नष्ट ना करें, सफलता को अपनी आदत में शुमार कर लीजिए फिर देखिए दुनिया आपकी, संसार आपका, सफलता आपके द्वार पर होगी। क्या आपने कभी विचार किया की ओलंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा की सफलता का राज क्या है, निसंदेह उनके मन में केवल मेहनत परिश्रम और साहस था, उनके दिमाग में डर नाम की कोई चीज नहीं थी। यही उनकी सफलता का बड़ा फलसफा है।
प्राचीन यूनानी कवि वर्जिन में युवाओं को संबोधित करते लिखा था कि “भाग्य सदैव साहसी लोगों का साथ देता है”,ऐसे लोगों का साथ न दीजिए, उनसे मित्रता न कीजिए जो हमेशा अपनी उपलब्ध सुविधा के नाम पर रोना रहता रोते हैं, और अपनी परिस्थितियों से लगातार शिकायत करते हैं, ऐसे लोग सदैव खोजते रहते हैं कि मैं किसी बड़े धनवान व्यक्ति के घर में क्यों पैदा नहीं हुआ, जहां अपार सुख सुविधाएं उपलब्ध है और मैं भी सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता, पर वह यह नहीं जानता कि बड़े व्यक्ति के बड़े होने के पीछे कितनी मेहनत साहस और ऊर्जा अंतर्निहित है। हमारे शास्त्रों में भी लिखा गया है की लक्ष्मी निष्क्रिय और निठल्ले लोगों का साथ नहीं देती, एवं निष्क्रिय लोगों के पास नहीं जाती है।
अब्राहम लिंकन ने भी कहा कि डर कमजोर दिमाग के निशानी है।, मनुष्य को डर अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए, डर के परिणाम स्वरुप ही शंका पैदा होती है, और शंका व्यक्ति के मन में कमजोरी लाती है। डरा हुआ व्यक्ति हमेशा नकारात्मक विचारों वाला होता है और यही नकारात्मक विचार असफलता को जन्म देते हैं, गीता का भी ज्ञान है