मानवीय शक्ति और प्राकृतिक संसाधन,विकास और प्रगती के पहिये। सार्थक समुचित उपयोग की दरकार।

जब भी हम अपने विकास का इतिहास देखते हैं तो ब्रिटिश सत्ता के दौरान हमारे संसाधनों का प्रकृति का अंधाधुंध दोहन होता रहा है। आजादी हमें मिली है यानी कि मानव को परंतु प्रकृति आजादी से अछूती रही है। अमूमन हमारी जरूरत रोटी, कपड़ा, मकान और जल की थी कि हमको उद्योग धंधे का विकास […]