औरंगाबाद/बुलंदशहर जिम्मेदार अधिकारियों को इन बच्चों के विषय में सोचना चाहिए, जो चिलचिलाती धूप और लू के थपेड़ों से बचने के लिए अपने सिर पर हाथ रखकर विद्या माँ की कसम खाने वाले झोले को रखकर चल रहे हैं।इनमें से बहुत ऐसे भी जिनके पैरों में चप्पल तक नहीं होती है।फिर भी नन्हे कदमों से पैरों को उचकाकर चलते रहते हैं।इन्हें न तो सरकार की परिभाषा ज्ञात है, और न शिक्षा विभाग के नियम क़ानून,किन्तु गर्मी का एहसास तो होता ही है। स्कूल में जब इन बच्चों को गर्मी लगती है, तो ये इधर-उधर भागते हैं।हम समझ नहीं पाते हैं कि बेसिक शिक्षा में कौन सी ऐसी पढ़ाई होती है, जिसके लिए 08 से 2:30 बजे तक विद्यालय चलना ही चाहिए। क्या प्राथमिक शिक्षा माध्यमिक शिक्षा से श्रेष्ठ हो गयी है.? एक तरफ बाल अधिकार का प्रपंच किया जा रहा है, तो दूसरी ओर उन्हीं बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार, क्यों है ऐसा.?हो सकता है,हम शिक्षकों के साथ समाज और सरकार का कोई पूर्वाग्रह हो, किन्तु उस पूर्वाग्रह का शिकार इन अबोध बच्चों को नहीं बनाया जाना चाहिए।सरकार को अविलम्ब विद्यालय समय में परिवर्तन करना ही चाहिए।