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जैन जगत का सबसे बड़ा अनुष्ठान होता है चातुर्मास दिगंबर जैन समाज द्वारा भव्यता के साथ हुआ मंगल कलश स्थापित

टीकमगढ़ -शहर के हृदय स्थली 1008 पारसनाथ दिगंबर जैन बाजार  मंदिर में महा श्रमण  मुनि रत्नत्रय के धारी 108 सौम्य सागर जी महामुनि राज एवं 108 जयंत सागर जी महामुनि राज के सानिध्य में जैन समाज द्वारा मंगल कलश की स्थापना हुई
     धर्म प्रभावना समिति के अध्यक्ष नरेंद्र जनता ने जानकारी देते हुए बताया कि मंगलवार को दोपहर 1:30 बजे महाराज श्री मंच पर विराजमान हुए  मंगलाचरण  चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन ,गुरु जी के चरण प्रक्षालन  हुआ फिर कई सांस्कृतिक एवं ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों के बाद  कलश  स्थापना की गई सैकड़ो की संख्या में माता ,बहने एवं पुरुष शामिल हुए
मुनि महाराज ने कहा कि घर-घर चर्चा रहे धर्म की कोई कभी नहीं घबरावे
एवं अपने स्वभाव से अहंकार का त्याग करने से ही मनुष्य गति मिलती है
नरेंद्र जनता ने कहा कि इस टीकमगढ़ धरती ने कुछ तो विशेष पुण्य किया होगा   इस धरती का कोई सौभाग्य रहा होगा की अनमोल क्षण टीकमगढ़ समाज को प्राप्त हुए और गुरुओं के चरण टीकमगढ़ में पड़े आज टीकमगढ़ में कलश स्थापना त्योहार के रूप में मनाया गया    ऐसे लग रहा था ,मानो दीपावली का पर्व मनाया जा रहा हो   ऐसे गुरु मिले जो 28 मूल गु्णो का पालन करते हुए  उत्कृष्ट साधना से तप और ध्यान कर रहे हैं ऐसा लग रहा है जैसे इस पंचम काल में चतुर्थ कालीन कोई गुरु महाराज पधारे हो
जहां गुरु विराजमान होते हैं वह शहर सदैव यश ,कीर्ति ,और सम्मान ,सुख, समृद्धि से हरा भरा रहता है
दिगंबर जैन साधु एवं समाज के लिए चतुरमास का विशेष महत्व होता है जैन साधु एक स्थान पर रहकर तप, साधना और धर्म ध्यान करते हैं दूसरे जीवों की विराधना नहीं हो इसलिए चातुर्मास करते हैं क्योंकि वर्षा ऋतु में बहुत छोटे-छोटे जीव हो जाते हैं जो हमारे चलने फिरने पर पैरों के नीचे नहीं आए इसी भावना से जियो और जीने दो का उद्देश्य से साधु स्वयं चातुर्मास करते हैं और समाज को कराते हैं  सभी जीव समान है मेरे द्वारा किसी जीव को कोई कष्ट ना हो इसी भावना से यह चातुर्मास मानते हैं संयम और साधना का उत्कृष्ट उदाहरण सात दिवस पूर्व  गुरु ने स्वयं कैसलांच किये,    कैसलॉन्च वह होते हैं  जो स्वयं गुरु अपने हाथों से स्वयं के सिर के  बाल उखाड़ते हैं जिन्हें जैन समाज की भाषा में कैसलॉन्च कहते हैं  ऐसे  तपस्वी गुरु ने कैसलॉन्च भी किया
  इसके बाद अपनी चारों दिशाओं में नियम लिए कि हम इतने किलोमीटर से आगे नहीं बढ़ेंगे यह पर्व 105 दिन से लेकर 120 दिन तक का होता है जिसे जैन समाज का श्रावक बड़े बूढ़े और बच्चे सभी मानते हैं एवं संयम की साधना अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार  करते हैं
प्रथम कलश का सौभाग्य युवराज जैन को प्राप्त हुआ दूसरा कलश
राजा कारी को प्राप्त हुआ
और एक कलश देवेंद्र जैन को प्राप्त हुआ संजीव जैन और अखिलेश जैन को भी एक एक कलश  प्राप्त हुआ इस प्रकार और भी कलश का सौभाग्य कई जानो  को प्राप्त हुआ
इस कार्यक्रम में *नगर पालिका अध्यक्ष पप्पू मलिक ने महाराज श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया

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