November 23, 2024

पहल टुडे

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साहिबाबाद। टीएचए में सोमवार सुबह हुई बारिश से कई जगह पर जलभराव हो गया। इस कारण लोगों को आवागमन में परेशानी आई। जीटी रोड पर मोहननगर तिराहे व अर्थला के आसपास दिनभर जाम लगा रहा। लोगों को सुबह के समय कार्यालय व गतंव्य स्थानों पर पहुंचने में भी देरी हुई। टीएचए में सोमवार सबुह करीब साढ़े नौ बजे के आसपास बारिश होनी शुरू हो गई। करीब दो घंटे की बारिश से कई जगह पर सड़क तरणताल में तब्दील नजर आईं। अर्थला मेट्रो स्टेशन के आसपास दो तीन फुट पानी जमा हो गया। इससे जीटीरोड से आवागमन करने वाले लोगों को परेशानी हुई। वहीं मोहननगर तिराहे के पास लिंक रोड पर भी जल निकासी नहीं होने के कारण जलभराव हो गया। बारिश बंद होने के बाद भी सड़क पर वाहनों की लंबी कतार लगी रही। अंदरूनी सड़क किनारे भी जलभराव हुआ।
गाजियाबाद एक और ज्योति मौर्य जैसा मामला उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में दोबारा देखने को मिला है। इस बार भी अधिकारी गाजियाबाद के विकास भवन में तैनात हैं, जबकि महिला कानपुर में समाज कल्याण विभाग में तैनात है। महिला के पति गोपाल बाबू ने लखनऊ में समाज कल्याण विभाग के निदेशक सहित गाजियाबाद के जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नर सहित कई अधिकारियों को शिकायत भेजी है। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी अधिकारी के साथ पत्नी की फोटो और शिकायती पत्र शेयर कर न्याय की अपील की है। गोपाल बाबू ने आरोप लगाया है कि उन्होंने पत्नी को पढ़ाने के लिए ट्यूशन तक पढ़ाया और उनकी सरकारी नौकरी लगवाई, लेकिन जब उनकी सरकारी नौकरी छूट गई तो उन्होंने भी उनको छोड़ दिया और किसी अन्य अधिकारी के साथ उनके संबंध बन गए हैं। उनका आरोप है कि जब शादी होकर आई थीं तब उनकी पत्नी ने मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स किया हुआ था। वह बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक पद पर तैनात थे साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने पत्नी को भी पढ़ाया और सरकारी नौकरी कराई। उनकी नौकरी समाज कल्याण विभाग कानपुर में लग गई। सरकारी नौकरी लगने के बाद तनावपूर्ण स्थिति बनने लगी। 1993 में शादी हुई थी और उसके बाद दो बच्चे हुए। उनका आरोप है कि पत्नी ने बच्चों को भड़का दिया है कि मैं उन बच्चों का पिता नहीं हूं, जिसकी वजह से बच्चे भी उनको पिता नहीं मानने से इनकार करते हैं। कानपुर में उनके घर पर भी कब्जा कर लिया है। उन्होंने बताया कि पिछले लगभग दो वर्ष से वह दोनों अलग रह रहे हैं। नौकरी और घर छूटने के बाद वह अपने अलीगढ़ स्थित पैतृक घर रहने आ गए हैं।
नई दिल्ली बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) ने तीस हजारी कोर्ट परिसर में हिंसक झड़प में शामिल होने के संदेह में 15 और अधिवक्ताओं के लाइसेंस व नामांकन निलंबित कर दिए हैं। 14 जुलाई को हिंसा के दौरान वकीलों में गोलीबारी भी हुई थी। सभी वकीलों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। बीसीडी ने हाल ही में वायरल हुए हिंसा के वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया था। इसमें वकीलों के दो समूह आपस में भिड़ते, बंदूकों से गोलियां चलाते, पथराव करते और एक-दूसरे पर गालियां देते नजर आ रहे थे। वकीलों के निकाय ने घटना में शामिल वकीलों की पहचान करने के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने तीस हजारी बार के सदस्यों से बात करने और वीडियो की जांच करने के बाद अपनी अंतरिम रिपोर्ट बीसीडी को भेज दी। इस अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर बीसीडी ने अब 15 अधिवक्ताओं का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इनमें बीसीडी ने वकील विभु त्यागी, विशाल यादव, आकाश खत्री, अमूल्य शर्मा, दीपक अरोड़ा, जितेश खारी, ललित, मोहित शर्मा, राहुल शर्मा, रणदीप सिंह, संदीप सूद, संजय कुमार, सतीश कुमार, शरद शर्मा और शिव राम पांडे को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।निलंबित किए गए लोगों को जारी किए गए नोटिस में कहा गया कि समिति की सिफारिशों और रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर विचार करने के बाद बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष पूरी तरह से संतुष्ट हैं। उन्होंने माना है कि अन्य अधिवक्ताओं के अलावा आप भी हिंसक घटना और पथराव में सक्रिय रूप से शामिल दिख रहे हैं। निलंबित वकीलों को अपना लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने और 25 अगस्त को शाम चार बजे बीसीडी के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। इससे पहले पांच व छह जुलाई को बीसीडी ने हिंसा में कथित भूमिका के लिए पांच अधिवक्ताओं को निलंबित कर दिया था। इन वकीलों में मनीष शर्मा, ललित शर्मा, अमन सिंह, सचिन सांगवान और रवि गुप्ता आदि शामिल हैं। विवाद में शामिल होने के आरोपी तीन वकीलों को छह जुलाई को दिल्ली की एक अदालत ने चार दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया था।
लखनऊ कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन 2009 में जीती गई 21 सीटों पर पुख्ता रणनीति बनाकर तैयारी तेज करेगी। इसमें 12 सीटें मध्य उत्तर प्रदेश की हैं। यह फैसला सोमवार को प्रदेश कार्यालय में हुई पार्टी के पूर्व पदाधिकारियों, जिला एवं शहर अध्यक्षों की बैठक में लिया गया।विभिन्न जिलों से आए पदाधिकारियों ने सियासी समीकरण के बारे में जानकारी दी। बूथ कमेटी से लेकर जातीय समीकरण पर भी चर्चा हुई। पार्टी नेताओं ने कहा कि प्रदेश की 80 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी रखनी होगी। इसमें 2009 में जीती गई 21 सीटों पर विशेष रूप से चर्चा हुई। पहले चरण में पार्टी के वरिष्ठ नेता इन सभी सीटों पर फोकस करेंगे। इन 21 सीटों पर अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में फ्रंटल संगठन अलग- अलग कार्यक्रम करेंगे। जातीय गणित का ध्यान रखते हुए जहां जिस जाति की आबादी अधिक होगी, वहां उनसे जुड़े जातीय सम्मेलन होंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी ने कहा कि महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर हर जिले में धरना- प्रदर्शन शुरू किया जाएगा। उन्होंने प्रदेश के विभिन्न जिलों में आई बाढ़ में जनता का सहयोग करने की अपील की। यह भी कहा कि मथुरा- वृन्दावन और पूर्वाचल में बाढ़ से परेशान लोगों की मदद के लिए कांग्रेस के पदाधिकारी सक्रिय भूमिका निभाएं। भाजपा के रवैए का पर्दाफाश करें। इस दौरान सभी ने एक स्वर से लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत सुनिश्चित कराने का संकल्प लिया। बैठक में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री, प्रांतीय अध्यक्ष पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, अनिल यादव, हरीश बाजपेई, अनिल अमिताभ दुबे, श्याम किशोर शुक्ला, अमरनाथ अग्रवाल, सीमा चौधरी आदि ने संबोधित किया। बैठक का संचालन पूर्व संगठन सचिव विजय बहादुर ने किया।
लखनऊ उत्तर प्रदेश में 1573 स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएनएम) को मंगलवार को लोकभवन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नियुक्ति पत्र वितरित किया। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि 1573 एएनएम प्रदेश की तस्वीर बदलने के लिए है। नीति आयोग की रिपोर्ट बता रही है कि यूपी बीमारू राज्य से बाहर निकला है। पहले करीब पौने छह करोड़ दिन हीन स्थिति में थे। अब करीब इनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। दो साल में स्वास्थ्य शिक्षा क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है। यूपी विकास की प्रक्रिया से जुड़ा है। सीएम ने कहा कि बहराइच, बस्ती संभल, खीरी, बांदा सहित कई जिलों में पूर्वर्ती सरकार ने ध्यान नहीं दिया। यहां अभियान चलाया गया, जिसकी वजह से व्यापक स्तर पर सुधार हुआ। 100 असेवित  ब्लाक चुने गए। वहां सुधार हुआ। टीकाकरण का कवरेज 98 फीसदी हो गया है। इसमें एएनएम की बड़ी भूमिका है। आशा वी एएनएम की ताकत का मूल्यांकन नहीं किया गया लेकिन अब इनकी ताकत का अहसास हो गया है। पहले गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से बच्चे मरते थे। लेकिन 2017 के बाद बच्चों की मौत नही हो रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले 10 से 15 जिलों में कोई मेडिकल कॉलेज...
विगत नौ वर्ष में मोदी सरकार विकास एवं सशक्तीकरण के अनेक आयाम स्थापित किये हैं, सरकार ने ऐसी गरीब कल्याण की योजनाओं को लागू किया गया है, जिससे भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए है एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है। वर्ष 2005 से 2020 तक देश में करीब 41 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं तब भी भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जहां गरीबी सर्वाधिक है। भारत और इसकी अर्थव्यवस्था की सफलताओं व संभावनाओं की बुनियाद में राजनीतिक स्थिरता, मोदी सरकार की दूरगामी एवं गरीबी उन्मूलन की योजनाओं की बड़ी भूमिका है। यूएनडीपी की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के आंकडे भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। साल 2005-06 में देश में करीब 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी-रेखा के नीचे जी रहे थे। वर्तमान में अब यह संख्या काफी कम होकर वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार भारत में कुल 23 करोड़ गरीब हैं। बावजूद इसके यह स्पष्ट संकेत है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए विचारों एवं कल्याणकारी योजनाओं पर विमर्श के साथ गरीबों के लिये आर्थिक स्वावलम्बन-स्वरोजगार की आज देश को सख्त जरूरत है। गरीबों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने एवं उनके वोट बटोरने की स्वार्थी राजनीतिक मानसिकता से उपरत होकर ही संतुलित समाज संरचना की जा सकती है। मोदी सरकार राजनीतिक रूप से स्थिर रही हैं और इनकी प्राथमिकताओं में गरीबी उन्मूलन प्रमुखता से शामिल रहा है। महान् अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार भी स्थिर थी और उन्होंने भी गरीबी उन्मूलन के ठोस उपक्रम किये। उनकी सरकार के समय से ही यह प्रयास निरन्तर जारी है। अनूठी बात यह है कि ये दोनों सरकारें दो विपरीत राजनीतिक ध्रुवों पर खड़ी रही हैं, पर इनका आर्थिक दर्शन एक रहा है। मगर भारतीय अर्थव्यवस्था के नीति-नियंताओं को इसकी कुछ विसंगतियों को गंभीरता से देखने की जरूरत है। देश में गरीबी का अंत जितना जरूरी है, आर्थिक विषमताओं से निपटना उससे कम अहम नहीं है। ऑक्सफेम की हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि देश की 60 फीसदी संपत्ति सिर्फ पांच प्रतिशत भारतीयों के पास है, जबकि निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा है। हमें इस बात की खुशी है और होनी चाहिए कि हमने डेढ़ दशकों में इतने करोड़ों लोगों को गरीबी-रेखा से ऊपर उठाया, मगर हम इस तथ्य की भी अनदेगी नहीं कर सकते कि 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है। एक अच्छी-खासी तादाद में हमारे करोड़पति-अरबपति दूसरे देश जाकर बस भी रहे हैं। क्या भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले अरबपतियों पर कोई प्रभावी दण्ड व्यवस्था लागू नहीं होनी चाहिए ? भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों को इन विसंगतियों पर नियंत्रण पाने के तार्किक रास्ते तलाशने होंगे। हम नहीं भूल सकते कि हमारी गरीबी की रेखा जिस स्तर पर तय होती है, उसके ऊपर भी जीवन काफी कठिन है। इसलिए इन खुशनुमा आर्थिक तस्वीरों को हाशिये के करोड़ों भारतीयों के लिए सुखद बनाने की कवायद की जाए। जिन दो एजेंसियों ने भारत की सुखद एवं खुशहाल आर्थिक तस्वीर प्रस्तुत की है, उस तस्वीर में एक वर्तमान भारत से संबंधित है, दूसरी भविष्य के भारत के संबंध में। दोनों ही तस्वीर नये भारत, सशक्त भारत, विकसित भारत एवं दूसरी की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने की बात को उजागर कर रही है। इन सुखद क्षणों में अधिक सावधानी एवं सर्तकता अपेक्षित है। यह अधिक चुनौतीपूर्ण दौर है, क्योंकि भारत अमीर-गरीब के बीच बढ़ रहा फासला एक चिन्ता का कारण है, जिस बड़ा राजनीतिक मुद्दा होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से यह मुद्दा कभी भी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना। शायद राजनीतिक दलों की दुकानें इन्हीं अमीरों के बल पर चलती है और गरीबी कायम रहना उनको सत्ता दिलाने का सबसे बड़ा हथियार है। दुर्भाग्यपूर्ण है
sunroof और moonroof के बीच है ये खास अंतर नई दिल्ली । अधिकतर लोगों को सनरूफस मूनरूफ और पैनोरमिक सनरूफ को कन्फ्यूजन रहता है। इसी कन्फ्यूज को दूर करने के लिए आपके लिए एक खास ऑर्टिकल लेकर आए हैं, जहां हम बात करने वाले हैं सनरूफ और मूनरूफ के बारे में। देश में इस समय सनरूफ गाड़ियों का आप क्रेज देख सकते हैं। यही वजह है कि वाहन बनाने वाली कंपनियां इस समय अपनी गाड़ियों में इस फीचर्स को जोड़ने लगी हैं। हालिया पेश हुई होंडा एलिवेट, मारुति इनविक्टो और किआ सेल्टोस फेसलिफ्ट को आप उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। सनरूफ किसे कहते हैं? वह डिवाइस जो गाड़ी की छत को खोलता है, ऊपर से धूप गाड़ी के अंदर प्रवेश करती है, उसे सनरूफ कहा जाता है। सनरूफ का सबसे अधिक फायदा ये है कि स्टैंडर्ड ग्लास क्षेत्र की तुलना में बाहर से अधिक रोशनी देता है। केबिन को ज्यादा गरम होने से बचाने के लिए सनरूफ के साथ सनब्लाइंड और टिंट हमेशा शामिल किया जाता है। इससे केबिन को बड़ा दिखाता है और अधिक प्राकृतिक रोशनी मिलता है। मूनरूफ किसे कहते हैं? मूनरूफ एक फ्लैट कांच की खिड़की है, जो पूरे छत क्षेत्र को कवर करती है। इसे कई वाहनों पर इंस्टाल किया जाता है, क्योंकि यह आपको धूप, बारिश और अन्य तत्वों से सुरक्षित रहते हुए अपने वाहन से बाहर देखने की अनुमति देता है। सनरूफ और मूनरूफ के बीच का अंतर? इन दोनों की बीच के अंतर के बारे में बता करें तो, सनरूफ एक ग्लास या धातु का पैनल होता है जो कार, ट्रक या एसयूवी की छत पर इंस्टाल किया जाता है। जो गाड़ी के अंदर सीधे धूप या फिर रोशनी आने की इजाजत देता है। वहीं मूनरूफ आम तौर पर एक स्पष्ट या रंगा हुआ ग्लास पैनल होता है, जो गाड़ी के छत और हेडलाइनर के बीच स्लाइड करता है और ताजी हवा में आने के लिए अक्सर खुला झुका हुआ होता है। Panoramic Sunroof ज्यादातर कार निर्माता कंपनियां इस प्रकार के सनरूफ को अपने टॉप-स्पेक मॉडल में विकल्प के रूप में जोड़ रहे हैं। Panoramic Sunroof कार की पूरी छत को लगभग ठक लेता है। इसे दो पार्ट में विभाजित किया जाता है। भारत में Jeep Compass,...