कोई दो राय नहीं कि ‘नारी अस्मिता’ से खेलने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती और ऐसा करने वालों को सख्त से सख्त सजा अविलम्ब देनी चाहिए। लेकिन हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक, प्रशासनिक व अन्य कारणों से जबतक हमलोग ‘मानवीय अस्मिताओं’ को रौंदने वालों को क्षमा करते रहेंगे, तबतक ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं अपनी प्रकृति बदल बदल कर सामने आती रहेंगी! और यह सभ्य समाज कुछ दिन तक हायतौबा मचाने के बाद पुनः उसी ढर्रे पर लौट जाएगा, जो इस देश की एक आदिम प्रवृति समझी जाती है। लिहाजा, आज आजादी के अमृत कालखण्ड की सबसे बड़ी जरूरत है कि संवैधानिक कारणों से पैदा हुए सामाजिक असंतोष की शिनाख्त की जाए और उसे भड़काने वाले सियासतदानों, प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायविदों और मीडिया प्रमुखों की स्पष्ट पहचान की जाए और समान रूप से उनकी पात्रताएँ निरस्त की जाएं, क्योंकि देश की सभी अप्रत्याशित घटनाओं के पीछे इनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका अक्सर संदिग्ध पाई जाती हैं! चाहे यह बात उन्हें पता हो या न हो, पर पब्लिक डोमेन में उनकी भूमिकाओं पर चर्चाएं होती रहती हैं। शायद संवैधानिक रूप से विभाजित किए हुए समाज का यह विकृत असर हो। मुझे यहां पर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हमारे संविधान निर्माता अव्वल दर्जे के ‘कालिदास’ (महामूर्ख!) निकले, जिन्होंने समान मताधिकार से इतर जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और लिंग के आधार पर हुई अपनी नुमाइंदगी को परिपुष्ट करते हुए जिन जिन विषमता मूलक वैचारिक विष-पौध (आरक्षण, अल्पसंख्यक आदि) का प्रतिरोपण किया, वो 75 साल बाद विशालकाय विष-वृक्ष बनकर हमारे सामाजिक और साम्प्रदायिक सौहार्द को ललकार रही हैं। …..और हम इतने नाकाबिल हो चुके हैं कि उन्हें रोकने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, बल्कि सिर्फ घड़ियाली आंसू ही बहा पाने में सक्षम प्रतीत हो रहे हैं! इसलिये आज ‘मर्माहत राष्ट्र’ की पुकार है कि ‘बहुमत आधारित लोकतंत्र’ को समाप्त किया जाए और ‘सर्वसम्मति वाले लोकतंत्र’ को बढ़ावा दिया जाए, प्रशासनिक रूप से अनियंत्रित होते जा रहे इस देश व समाज को नियंत्रित किया जा सके। जातीय, सांप्रदायिक व चुनावी हिंसा-प्रतिहिंसा को घटनाओं को थामा जा सके। हमारे राजनीतिक संस्थाओं, प्रशासनिक संस्थाओं, न्यायिक संस्थाओं और मीडिया प्रतिष्ठानों के साथ साथ बाजारू व कारोबारी घरानों को इतना काबिल बनाया जा सके कि वह संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के बजाय राष्ट्र के व्यापक हित में और हरेक भारतीय के दूरगामी हित में संवैधानिक हल ढूंढें। यदि वो जरूरत महसूस करें तो संवैधानिक संशोधन करवाने का माहौल बनाएं और वैसे हरेक संवैधानिक अनुच्छेद या उपबन्ध को तिलांजलि दे दें, जो दूसरे भारतीयों का हक किसी भी रूप में छिनता हो या उसे चिढ़ाता आया हो। क्योंकि आज स्थिति इसलिए दिन ब दिन जटिल होती जा रही है कि विधि व्यवस्था व प्रशासनिक व्यवस्था के सवाल को भी यह तंत्र राजनैतिक नजरिये से देखने का आदि हो चुका है, जिससे समाज के बहुसंख्यक लोगों का तो भला हो जा रहा है, लेकिन अल्पसंख्यक लोगों का उत्पीड़न आम बात हो चली है। यहां पर अल्पसंख्यक शब्द का अर्थ किसी धर्म से नहीं बल्कि गांव-मोहल्ले या क्षेत्रीय संख्याबल में कमी से है और उनकी रक्षा करने में प्रशासनिक विफलता ही तमाम विरोधाभासों के बढ़ने की मौलिक वजह है। इसके उलट हर क्षेत्र में संख्या बल में कम पर आर्थिक और बौद्धिक रूप से संपन्न एक शातिर जमात मिलती है, जो पर्दे के पीछे
देश विदेश
राजस्थान के किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का पूरा लाभ ले रहे हैं और...
नई दिल्ली: बिग बॉस ओटीटी का दूसरा सीजन हर गुजरते दिन के साथ प्रशंसकों का...
ड्रीम गर्ल 2 के मस्ती भरे प्रोमो में, पूजा उर्फ आयुष्मान खुराना को रणवीर...
रामनगर। मणिपुर राज्य में केंद्र और मणिपुर सरकार के इशारे पर देश को शर्मसार और कलंकित करने वाली घटना के विरोध मे पूर्व विधायक रणजीत रावत के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार का पुतला दहन किया। इस दौरान रणजीत रावत ने कहा कि मणिपुर की घटना देश को शर्मसार और कलंकित करने वाली है उन्होंने कहा कि जिस तरीके से 77 दिनों से मणिपुर जल रहा है उस पर मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की घटना महाभारत काल की घटना को याद दिलाती है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि आखिर ऐसे कौन से कारण है कि सरकार के नुमाइंदे इस शर्मसार करने वाली घटना पर खामोश है। उन्होंने मणिपुर सरकार को तत्काल भंग करने की मांग की। कहा नारी प्रधान देश में आज नारियों को निर्वस्त्र घुमाना मणिपुर में जंगलराज का गवाह है। इन्होंने कहा की दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत पर यह सबसे बड़ा कलंक है। जिन्होंने नारा दिया पढ़ाओ, बेटी बचाओ वह किस तरीके से बेटियों को बचा रहे हैं ये आज दुनिया देख रही है यह हमारे इतिहास का हमारे स्वतंत्रता का बहुत ही काला दिन है इसलिए हमने आज यहां पर इस गूंगी बहरी सरकार का पुतला दहन किया है। इस दौरान नगर अध्यक्ष भुवन शर्मा, ब्लॉक अध्यक्ष देशबंधु रावत, नगर अध्यक्ष महिला कांग्रेस ललिता उपाध्याय, सतेस्वरी रावत, बीना रावत, एंडी पंत, बाली राम, नवीन सनवाल, उमाकांत ध्यानी, प्रताप बिष्ट, कमल नेगी, कमल तिवारी, देवेंद्र चिलवाल, कुंदन नेगी, राहुल नेगी, अनुभव बिष्ट, अमरजोत, धीरज उपाध्याय, सभासद गुलाम सादिक, रमेश नेगी, अंकुश अग्रवाल, नज़ाकत अली, धीरज मोलीखी, राजेंद्र बिष्ट, मोहम्मद मुजीब, महेश पाण्डे, ललित जोशी, रघुवर दत्त चोनियाल, राजेश नेगी, बबलू तिवारी, चांद खान मौजूद रहे।
भारी रिश्वत राशि लेकर अपात्र एवं साधन संपन्न रसूखदार एवं अपने चहेतों को दिए...
देहरादून । पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा है कि उत्तराखंड पुलिस, महिला और बाल सुरक्षा को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। डीजीपी के अनुसार, बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) पर साइबर टिपलाइन रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भारत और नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी), यूएसए के बीच समझौता हो चुका है। इसका मकसद भारत से संबंधित जानकारी साझा करने के साथ-साथ ऐसे अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना है। इससे जानकारी प्राप्त करने के बाद एनसीआरबी राज्य के पुलिस अधिकारियों को यह सूचना भेजती है। डीजीपी कुमार के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट पुलिसिंग के विजन को पूरा करते हुए उत्तराखंड पुलिस अपने एप के माध्यम से गौरा शक्ति सुविधा प्रदान कर रही है जहां 1.2 लाख से अधिक महिलाओं ने अपना पंजीकरण कराया है। क्या है साइबर टिपलाइन साइबर टिपलाइन बाल यौन शोषण के मामलों के लिए एक रिपोर्टिंग तंत्र है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में बच्चों को यौन कृत्य या आचरण में चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना शामिल है। उत्तराखंड एसटीएफ के तहत साइबर क्राइम थाना, चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित सभी शिकायतों को स्कैन करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। प्रक्रिया में यह हुआ इस प्रक्रिया में उत्तराखंड पुलिस ने 113 प्रथम रिपोर्ट सूचना (एफआईआर) दर्ज की हैं। इस साल 49 से ज्यादा एफआईआर स्वयं दर्ज करायी गईं तो 38 शिकायतों पर जल्द ही अलग-अलग जिलों में एफआईआर होंगी। पीड़ित उन्मुख पुलिसिंग (वीओपी) के लिए 906 जीरो एफआईआर और 472 ई-एफआईार साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई हैं। कानूनी पहलू की बात करें तो चाइल्ड पोर्नोग्राफी कानून (आईटी एक्ट सेक्शन 67बी) गैर जमानती अपराध है। डीजीपी का कहना है कि उत्तराखंड पुलिस प्रवर्तन (केस पंजीकरण, गिरफ्तारी) और शिक्षा (साइबर, यातायात, नशीली दवाओं, महिलाओं/बच्चों से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता) के लिए राज्यव्यापी अभियान चला रही है।
गाजीपुर । उ0प्र0 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ के निर्देशानुसार तथा माननीय जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष,...
देश की राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के रौद्र रूप के चलते बाढ़ का आपदाकाल चल रहा है। यमुना नदी में जल ने वर्ष 1978 के रिकॉर्ड 207.49 मीटर को तोडकर 208.66 मीटर के नये रिकॉर्ड तक जलस्तर बढ़ने से देश का दिल राजधानी दिल्ली की बहुत बड़ी आबादी बाढ़ की मार को झेलने के लिए मजबूर है। आज दिल्ली की 20 फीसदी आबादी यमुना के जल के प्रकोप से किसी ना किसी रूप से त्रस्त है। दिल्ली में यमुना के आसपास के क्षेत्रों में रह रहे लोगों के सामने यमुना नदी की बाढ़ एक बड़ी चुनौती के रूप में आकर खड़ी है। दिल्ली में यमुना नदी के रौद्र रूप के चलते जबरदस्त बाढ़ आ गयी है, शहर की कॉलोनियों में जल भराव की गंभीर समस्या खड़ी हो गयी है। जिसके बाद से ही देश में दिल्ली की बाढ़ पर राजनेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का बहुत ही जबरदस्त सियासी घमासान मचा हुआ है। दिल्ली की राजनीति में सक्रिय कोई भी राजनीतिक दल आपदा के इस अवसर पर अपनी सियासत चमकाने में पीछे नहीं रहना चाहता है। लेकिन हर वर्ष देश में कहीं ना कहीं बाढ़ की मार झेलने वाले आम आदमी के बीच देश में बाढ़ से बचाव के उचित प्रबंधन क्यों नहीं है, इस ज्वलंत मुद्दे के बारे में चर्चा हो रही है, लोग बाढ़ प्रबंधन को समय की मांग बता रहे हैं। वैसे भी देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में विभिन्न प्रकार की आपदाओं के कारण औसतन वार्षिक आर्थिक हानि 9.8 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें से अकेले ही 7 अरब डॉलर से अधिक का बहुत बड़ा नुकसान तो देश में समय-समय पर आने वाली बाढ़ के कारण ही हो जाता है, जो स्थिति हम सभी के लिए बेहद चिंताजनक है और जिस पर हमें व हमारे देश के सिस्टम को समय रहते लगाम लगाने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने चाहिए, क्योंकि भारत जैसे गरीब देश के लिए हर वर्ष इतनी बड़ी आर्थिक क्षति से मुक्ति पाना बेहद जरूरी है। वैसे भी जब से देश में अंधाधुंध अव्यवस्थित शहरीकरण तेजी से बढ़ा है तब से शहरी क्षेत्रों में जरा सी बारिश के बाद ही बाढ़ जैसा माहौल बन जाना एक आम बात होती जा रही है। इसके चलते ही पिछले कुछ वर्षों से जरा भी तेज बारिश के बाद ही दिल्ली के साथ देश के अन्य शहरों में बाढ़ जैसी गंभीर समस्या तत्काल उत्पन्न हो जाती है। देश में अचानक से आई बाढ़ पलक झपकते ही अपने रास्ते में आना वाले जान-माल सभी कुछ को जल प्रवाह के द्वारा लील कर अपने साथ बहाकर ले जाने के लिए तत्पर नज़र आती है। हालांकि वास्तव में बाढ़ नदी के पानी का वह अतिप्रवाह है, जिसमें आमतौर पर सूखी रहने वाली भूमि भी डूब जाती है और नदी किनारे के क्षेत्रों में बाढ़ आने पर परिस्थितियाँ अचानक से गंभीर नहीं हो जातीं, लोगों को बाढ़ से जान-माल के बचाव करने का भरपूर समय मिलता है। वैसे भी किसी भी नदी का जैसे-जैसे
आलेख:—-द्वारा कृष्ण कुमार निर्माण क्या फर्क पड़ता है हमें ऐसी घटनाओं से?क्योंकि हम तो...