October 25, 2024

देश विदेश

नयी दिल्ली। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बुधवार को संसद में कहा कि भूमि-अधिग्रहण में देरी के कारण पिछले 10 सालों से लंबित मध्य प्रदेश के सिंगरौली से निकलने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग-39 सड़क परियोजना का काम इस साल दिसंबर तक पूरा हो जाएगा। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा कि परियोजना शुरू में सितंबर 2013 में ‘गैमन इंडिया’ को दी गई थी, लेकिन काम शुरू नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि इसलिए, परियोजना का जिम्मा जून 2021 में एक अन्य कंपनी को निविदा के माध्यम से फिर से दिया गया था। परियोजना के तहत 530 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली सड़क की लंबाई 105.59 किलोमीटर है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम लिमिटेड (एमपीआरडीसी) ने 31.11 करोड़ रुपये की मंजूरी के लिए एक प्रस्ताव भेजा है, जिसे जल्द ही मंजूरी दे दी जाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रूप से परियोजना की निगरानी कर रहा हूं और दिसंबर से पहले काम पूरा हो जाएगा।’’ मंत्री के अनुसार, परियोजना के कार्यान्वयन में देरी के प्रमुख कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब और राज्य सरकार की ओर से अतिक्रमण हटाने में देरी शामिल है। उन्होंने कहा, ‘‘1.8 किलोमीटर मुख्य राजमार्ग और 4.85 किलोमीटर सर्विस रोड से अतिक्रमण हटाया जाना है। यह एक जिलाधिकारी का काम है।’’ उन्होंने कहा कि परियोजना को 2013 में मंजूरी दी गई थी और अब 10 साल हो गए हैं लेकिन भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ है। मंत्री ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि परियोजना शुरू नहीं हो पा रही है और ठेकेदारों को किसी न किसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं जवाब देते समय (इस परियोजना के बारे में) अपराध बोध महसूस करता हूं।’’ उन्होंने कहा कि यह देश की उन दो परियोजनाओं में से एक है जो दुर्भाग्य से लंबे समय से अटकी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में प्रयागराज-मिर्जापुर राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के शुरू होने में देरी पर एक अन्य सवाल के जवाब में, मंत्री ने कहा कि इसके लिए राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) संख्या अभी तक आवंटित नहीं की गयी है और इसलिए काम शुरू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘अभी हम उन एनएच पर काम कर सकते हैं जिन्हें किसी संख्या के साथ आवंटित किया गया है। खर्च ज्यादा है। जब तक इस सड़क को संख्या के साथ आवंटित नहीं किया जाता है, तब तक हम खर्च नहीं कर सकते।’’ मंत्री ने कहा कि इसके लिए तत्काल कोई समाधान नहीं खोजा जा सकता है, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि उपयुक्त समय पर इस परियोजना को शुरु किया जाएगा।
नयी दिल्ली। सरकार ने बुधवार को कहा कि नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति के अनुसार गैर-रणनीतिक क्षेत्र वाले उद्यमों को व्यवहार्यता के आधार पर निजीकरण के लिए विचार किया जाए, अन्यथा ऐसे उद्यमों को बंद करने पर विचार किया जाएगा। इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह भी बताया कि इस्पात मंत्रालय के अधीन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (पीएसई) ‘राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड’ (आरआईएनएल) के रणनीतिक विनिवेश के संबंध में निर्णय लिया गया है। कुलस्ते ने राम मोहन नायडू के प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए सरकार द्वारा अधिसूचित नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (पीएसई) नीति के अनुसार मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को मुख्यत: रणनीतिक और गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने कहा कि गैर-रणनीतिक क्षेत्रों वाले पीएसई पर व्यवहार्यता के आधार पर निजीकरण के लिए विचार किया जाए, अन्यथा ऐसे उद्यमों को बंद करने पर विचार किया जाएगा। मंत्री के जवाब में कहा गया कि नई पीएसई नीति के अनुसार सरकार ने रणनीतिक विनिवेश के माध्यम से आरआईएनएल की सहायक कंपनियों या संयुक्त उद्यमों में आरआईएनएल की हिस्सेदारी सहित उसमें भारत सरकार की शेयरधारिता के 100 प्रतिशत विनिवेश के लिए सैद्धांतिक अनुमोदन दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की आरआईएनएल में कोई इक्विटी नहीं है। हालांकि, आवश्यकता होने पर विशिष्ट मामलों में राज्य सरकार से परामर्श किया जाता है और जिन मामलों में उनके हस्तक्षेप की आवश्यकता हो, उनमें उनकी सहायता भी मांगी जाती है।
राजनीति भी बड़ी दिलचस्प हो गई है। कब कौन किस ओर चला जाएगा, यह पता नहीं चलता है। नेताओं को सब कुछ पता होता है, बावजूद इसके उनके दावों में उसका असर कहीं से भी दिखाई नहीं पड़ता है। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश किए गए दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2023 पर जबरदस्त तरीके से हंगामा जारी है। संसद के मानसून सत्र से पहले ही इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि विधेयक पर सरकार को विपक्षी दलों के आक्रमण का सामना करना पड़ेगा। हो भी यही रहा है। मंगलवार को पेश होने के ठीक बाद लोकसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। वहीं, बुधवार को भी इस पर चर्चा नहीं हो सकी। यह विधेयक जहां विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए पहली बड़ी परीक्षा है तो वहीं सरकार के लिए भी नाक का सवाल है। दिल्ली विधायक पर रार आपको बता दें कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े एक अध्यादेश को केंद्र सरकार की ओर से 19 मई को लाया गया था। उसी को अब बिल में बदला जा रहा है दिल्ली की आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार लगातार इसका विरोध कर रही है। आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में उसे इंडिया गठबंधन के अन्य सदस्यों से भी समर्थन प्राप्त है। आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। विपक्षी दलों का दावा है कि केंद्र सरकार की ओर से इस विधेयक के जरिए देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आम आदमी पार्टी तो यह कह रही है कि अगर भाजपा सरकार का यह प्रयोग दिल्ली में सफल हो जाता है तो गैर भाजपा शासित राज्यों में इसे लाया जाएगा। आप का दावा दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने विधेयक को संसद में अब तक पेश किया गया सबसे अलोकतांत्रिक कागज का टुकड़ा करार दिया और दावा किया कि यह लोकतंत्र को बाबूशाही में बदल देगा। ‘आप’ के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि यह विधेयक पिछले अध्यादेश से भी बदतर है तथा ‘‘हमारे लोकतंत्र, संविधान और दिल्ली के लोगों के लिए’’ ज्यादा खराब है। विधेयक को संसद में रखा गया अब तक का सबसे ‘‘अलोकतांत्रिक और अवैध’’ दस्तावेज करार देते हुए चड्ढा ने कहा कि यह दिल्ली की चुनी हुई सरकार से सभी अधिकार छीनकर उन्हें उपराज्यपाल तथा ‘बाबुओं’ को दे देगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक दिल्ली में लोकतंत्र को ‘‘बाबूशाही’’ में बदल देगा और नौकरशाही एवं उपराज्यपाल को अधिक अहम शक्तियां प्रदान कर देगा। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने बुधवार को कहा कि ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023’ उच्च सदन में पारित नहीं हो सकेगा। अमित शाह ने क्या कहा निचले सदन में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने गृह मंत्री अमित शाह की ओर से विधेयक पेश किया। विधेयक पेश किये जाने का कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर एवं गौरव गोगोई, आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और एआईएमआईएम के असदुद्दीन औवैसी आदि ने विरोध किया। विधेयक पर लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संविधान ने सदन को संपूर्ण अधिकार दिया है कि वह दिल्ली राज्य के लिए कोई भी कानून ला सकता है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के हवाले से इसे पेश किये जाने का विरोध किया जा रहा है लेकिन उसी आदेश के पैरा 6, पैरा 95 में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि संसद, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए कोई कानून बना सकती है। शाह ने कहा कि विधेयक पेश किये जाने के खिलाफ सारी आपत्तियां राजनीतिक हैं और इनका कोई संवैधानिक आधार नहीं है, संसद के नियमों के तहत भी इनका कोई आधार नहीं है। अध्यादेश से अलग है बिल बिल से सेक्शन 3 A को हटा दिया गया है। इसमें दिल्ली विधानसभा को सेवाओं संबंधित कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया गया था। इसके बजाय, बिल अब अनुच्छेद 239AA पर केंद्रित है, जो केंद्र को राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) स्थापित करने का अधिकार देता है। इसके अलावा विभिन्न अथॉरिटी, बोर्ड, आयोग और वैधानिक संस्थाओं के अध्यक्ष, सदस्य की नियुक्ति के बारे में प्रावधान में ढील दी गई है। इसके बारे में प्रस्तावों को उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री को देने से पहले केंद्र सरकार को देने की बाध्यता नहीं होगी। इसमें एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया है। दिल्ली सरकार द्वारा बोर्ड और आयोग की नियुक्तियां उपराज्यपाल NCCSA की सिफारिशों के आधार पर करेगा। इस सूची में दिल्ली के मुख्यमंत्री की सिफारिशें शामिल होंगी। बोर्ड या आयोग की स्थापना दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित कानूनों द्वारा की जाती है। दोनों सदनों में सरकार की ताकत लोकसभा फिलहाल निचले सदन में 5 सीटें खाली हैं। बहुमत का आंकड़ा 270 है और बीजेपी का 301 सीटों पर कब्जा है। अगर उसके सहयोगियों की संख्या मिला दी जाए तो आंकड़ा 331 पहुंच जाता है। इसके अलावा कुछ अन्य दलों के समथर्न से यह आंकड़ा 363 पहुंच जाता है। वहीं, विपक्ष के पास 147 सांसदों का समर्थन है।
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