November 22, 2024
Ashok Madhup

विदेशों में बसे भारतीय आज अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस  कर रहे हैं। वे समझ गए हैं कि वे कहीं भी हों उनका देश  उनके साथ खड़ा है।विपरीत परिस्थिति में वे  और उनका परिवार  भारत से इतर देश   में रहकर भी अकेला  ही नही है।उसके पीछे  भारत सरकार की सुरक्षा की गारंटी  हैं।   जबकि पहले ऐसा नही था।  संकट में विदेश में फंसे भारतीय को अपनी लड़ाई  खुद लड़नी  पड़ती थी।  वे अपने को  असहाय महसूस करते थे।

दो अगस्त 2090 को  इराक ने कुवैत पर हमला  कर दिया था।इस युद्ध के समय कुवैत में फंसे भारतीयों को देश वापिस लाने पर फिल्म बनी  एयर लिफ्ट। ये फिल्म    सच्ची कहानी पर आधारित बनी बताई गयी था। । कुवैत में फंसे 1,70,000 से अधिक भारतीय असहाय थे। लेकिन दो सराहनीय भारतीय प्रवासी श्री मैथ्यूज और श्री वेदी ने उन्हें बचाने के लिए बहुत कष्ट और प्रयास किए और यह सुनिश्चित किया कि वे सुरक्षित रूप से अपने देश पहुंच जाएं।  यह आपरेशन भारत सरकार ने चलाया था।इंडियन्स को सुरक्षित निकालने के लिए तब के विदेश मंत्री आईके गुजराल इराक में सद्दाम हुसैन से मिलने पहुंचे थे।सद्दाम हुसैन ने  सरकार को भारतीयों के रेस्क्यू ऑपरेशन करने की इजाजत दे दी। 13 अगस्त से लेकर 11 अक्टूबर 1990 (59 दिन) तक 500 फ्लाइट्स के जरिए इतिहास का सबसे मुश्किल एयर रेस्क्यू किया गया।हालाकि सरकार  का इस  आपरेशन में बड़ा कार्य रहा किंतु मैसेज दूसरा गया।
आज ऐसे  आपरेशन के लिए सरकार स्वयं खड़ी हो  जाती है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानकारी मिलने के पहले ही स्वयं सक्रिय हो जाते हैं। इतना ही नही आपरेशन की मानिटरिंग भी वे खुद  करने लगते हैं।

अभी कतर में आठ पूर्व नौसैनिकों को फांसी दिए जाने की खबर आने के बाद भारत सरकार सक्रिय हुई। इसीके फलस्वरूप इस केस में भारत के कतर राजदूत लगे।वे जेल में भारतीय पूर्व नौसैनिकों से मिले।  न्यायालय में उनके केस की अपील की गई। इससे  ये फांसी की सजा टल  गई। निर्णय के समय  कतर में भारत  राजदूत और अन्य अधिकारी उनके परिवार के सदस्यों के साथ अपील अदालत में मौजूद थे। मामले की शुरुआत से ही भारत  उनके साथ खड़े हैं। विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कहा कि हम सभी उन्हें कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे। अगले कदम पर फैसला लेने के लिए कानूनी टीम के साथ हम लगातार परिवार के सदस्यों के साथ संपर्क में हैं।अपीलीय कोर्ट का यह फैसला इस मायने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी के बीच दुबई में कॉप-28 सम्मेलन से इतर हुई मुलाकात के चार सप्ताह के अंदर सुनाया गया है। एक दिसंबर को हुई भेंट के बाद पीएम मोदी ने कहा था कि उन्होंने कतर में रह रहे भारतीय समुदाय के बारे में अमीर से बात की है। माना जाता है कि इस भेंट में इन नौसैनिकों का मुद्दा भी उठा था।

पूर्व नौसैनिकों को कतर की निचली अदालत ने अक्तूबर में मौत की सजा सुनाई थी। केंद्र सरकार इससे हैरान रह गई थी, क्योंकि कतर ने पहले इस बाबत कोई जानकारी नहीं दी थी। भारत ने फैसले के खिलाफ अपील की। कतर प्राकृतिक गैस का भारत को बड़ा आपूर्तिकर्ता है। वहां करीब आठ लाख भारतीय काम करते हैं। दोनों देशों के बीच हमेशा से बेहतर रिश्ते रहे हैं।
जिन लोगों के खिलाफ फैसला हुआ है, उनमें सेवानिवृत्त कमांडर पूर्णेंदु तिवारी हैं। पूर्णेंदु एक भारतीय प्रवासी हैं जिन्हें 2019 में प्रवासी भारती सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।एक अन्य कमांडर सुगुणाकर पकाला का भारतीय नौसेना में बेहतरीन सफर रहा है जो अपने सामाजिक काम के लिए भी जाने जाते हैं।इनमें स्वर्ण पदक विजेता कैप्टेन अमित नागपाल भी शामिल हैं। अमित नागपाल   नौसेना में कमांडर रहे हैं। अमित अपनी सेवा के दौरान संचार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध कौशल के लिए जाने जाते रहे हैं। नौसेना में कमांड रहे संजीव गुप्ता की तोपखाना से जुड़े मामलों में महारत थी। सौरभ वशिष्ठ नौसेना में कैप्टन के ओहदे पर रहे हैं। अपनी सेवा के दौरान सौरभ ने बतौर तकनीकी अधिकारी काम किया है। सजा पाने वाले बीरेंद्र कुमार वर्मा नौसेना में कैप्टन रहे हैं। बीरेंद्र कुमार को नेविगेशन और डायरेक्शन का जानकार माना जाता रहा है। कैप्टन नवतेज गिल के पिता सेना में अधिकारी रहे हैं। चंडीगढ़ से आने वाले नवतेज को राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें सर्वश्रेष्ठ कैडेट के लिए दिया गया था। वहीं अंतिम सदस्य रागेश गोपाकुमार की बात करें, तो उन्होंने नौसेना में बतौर नाविक काम किया।

भारत सरकार  का प्रयास है कि ये सजा  पूरी तरह से खत्म हो जाए।सजा खत्म न भी हुई तो लगता है कि इनकी वतन वापसी हो जाएगी।। दरअसल, भारत और कतर के लिए बीच दिसंबर, 2014 में कैदियों की अदला-बदली को लेकर संधि हुई थी। इसमें दोनों देशों की एक-दूसरे की जेलों में बंद कैदियों को बाकी बची सजा काटने के लिए उनके देश भेजने का प्रावधान है। सजा कम न होने पर उम्मीद है कि भारत इन आठ पूर्व नौसैनिकों की वतन वापसी की मांग कर सकता है।

इस्राइल गाजा  युद्ध शुरू होने की सूचना पर केंद्र सरकार  भारतीयों को वहां से निकालने के लिए सक्रिय  हुई।  भारत ने वहां से अपने 1309 नागरिक वापस भारत बुलाए। ये कार्य सरल नही था  किंतु  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कार्य में खुद लगे। भारतीयों को वापस लाने के लिए अपने मंत्रियों को  भी भेजा। अभी दो  साल  पहले , जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो 23 हज़ार भारतीयों (जिनमें लगभग 18 हज़ार मेडिकल के छात्र थे) यूक्रेन में रह रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से इन्हें निकालने के लिए दोनों देश के कुछ सयम के लिए युद्ध विराम किया। इसी से इनको  स्वदेश ले आया गया था।  इतना ही नही युद्ध विराम की अवधि में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लेकर कुछ पाकिस्तान और बंगला  देश भी  युद्ध क्षेत्र से बाहर आए। यही हालत अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के समय  हुई थी। तब भी भारत अपने देशवासियों के साथ खड़ा था।

विदेशों में रह रहे भारतीय भारत की अर्थ व्यवस्था  की एक मजबूत रीढ़ है।प्रतिवर्ष  खरबों डालर वह विदेशों से भारत भेजते हैं।2023 की रिपोर्ट के अनुसार 125 अरब  डालर विदशों में बसे भारतीयों द्वारा देश में भेजा  गया। इतना  ही रहने वाले देश में बसे भारतीय वहां के विकास में अपना योगदान देकर देश का नाम प्रसिद्ध कर रहहैं।ऐसे  में वह भी देश से चाहतें है कि जरूरत पर देश और उसकी सरकार उनके साथ  खड़ी हो। भारत सरकार अपने लोगों के साथ खड़ी है, यह अहसास पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के समय में होना  शुरू  हुआ। एक ट्विट पर वह सक्रिय  हो जाती थीं।पहले जहां विदेशों के भारतीय राजदूत के बारे में वहां रहने वाले भारतीयों की धारणा ठीक नही थी।  वह अब बदली  है।लगभग  छह साल पहले एक समस्या मेरे अमेरिका में बसे बेटे के सामने आई।उसने  अमेरिका के इंडियन कॉन्सुलेट से संपर्क किया ।  उसकी समस्या का निदान हो गया। एक बात और अबसे  पहले भारत की स्थिति दुनिया में इतनी मजबूत नही थी, जितनी आज है।पिछले कुछ सालों भारत की स्थिति दुनिया में  मजबूत हुई  हे। उसकी आवाज ही दुनिया में नही सुनी जाती , अपितु बड़े− बड़े देश उसकी बात मानते हैं। उसकी सुनते हैं। ये  बहुत ही अच्छा है। इससे  भारत खुद मजबूत नही हो रहा। जहां− जहां भारतीय रह रहे हैं, वे मजबूत और सुरक्षित   हो रहे हैं।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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