
भदोही। सरज़मीने भदोही जहां कालीन के नाम से पूरी दुनिया मे मशहूर है तो वहीं इल्म की दुनिया मे भी अपना एक अलग मुकाम हासिल किए हुए है। भदोही नगर में सैकड़ो की तायदाद में हाफिज-ए-कुरआन हैं, आलीम, कारी भी हैं जो अल्लाह रब्बुल इज्जत का बहोत बड़ा एहसान और करम है। वहीं अल्लाह ने भदोही की जरखेज जमीं से एक आलीमें दीन को हाफिज, कारी व मौलाना मआज़ मिस्बाही की शक्ल में आलीम पैदा कर दिया। बताते चलें कि मौलाना मआज़ मिस्बाही 9 वर्षों से मदरसा अल जामियतुल अशरफिया में आलीमाना की पढ़ाई करते रहे। पिछले दिनों मदरसे में हाफिजे मिल्लत के उर्स के मौके पर पढ़ाई मोकम्मल होने पर मौलाना मआज़ मिस्बाही को मौलाना की सनद (डिग्री) और उनके सर पर एमामा शरीफ बांध कर तथा एबा शरीफ पहना कर इज्जत बख्शी गई। इस इज्जतो इकराम को देख मौलाना के वालिदे मोहतरम, वालिदा व बड़े अब्बू, चाचा तथा घर के भाई, बहन, रिश्तेदार, नातेदारों के आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े और परवरदिगार की किब्रियाई करने लगे। वहीं मौलाना मआज़ मिस्बाही को मदरसा अल जामियतुल अशरफिया से भदोही घर आने पर नगर सहित दोश्त अहबाब व रिश्तेदार उनके घर पहुंच कर फूल माला पहनाकर मोबारकबाद दी। इस हसीं मौके पर मौलाना मआज़ मिस्बाही ने कहा अल्लाह पाक का बहोत बड़ा एहसान और करम है कि हमें इल्म-ए-दीन से नवाजा। कहा यह मेरे मां बाप, बड़े अब्बू, चाचा, भाई, बहन और मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों, रिश्तेदारों की दुआओं का सिला है जो अल्लाह ने हमें इल्म-ए-दीन की खिदमत के लिए चुना। मौलाना ने कहा सबसे पहले अपने बच्चों को इल्म दीन सिखाओ उसके बाद दुनिया के इल्म को सिखाओ। बगैर इल्म के इंसान अधूरा है। कहा बच्चों की पहली दर्सगाह मां होती है इसलिए हमारी मां बहनें अपने बच्चों की पहली दर्सगाह बनकर इल्म के जेवर से उनकी जिंदगी को मोअत्तर व मोजय्यन करें।