ललितपुर। परम पूज्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज, परम पूज्य मुनि श्री प्रणतसागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में ब्र. जयकुमार जी निशान्त व डॉ नरेंद्र कुमार जैन गाजियाबाद के निर्देशन तथा डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर के संयोजकत्व में सिद्धक्षेत्र अहार जी (टीकमगढ़) में उत्कर्ष समूह भारत व सिद्धक्षेत्र अहार जी कमेटी के तत्वावधान में 2 व 3 जनवरी 2025 को दो दिवसीय जैन विद्या के विविध आयाम युवा विद्वत्संगोष्ठी एवं विद्वत् सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ जिसमें 51 विद्वान सम्मिलित हुए । विविध विषयों पर आलेख प्रस्तुत किए गए।
इस संगोष्ठी में युवा मनीषी डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने ‘शास्त्रीय भाषा के मापदंड और शास्त्रीय भाषा प्राकृत के प्रति हमारे कर्तव्य और दायित्व ‘ विषय पर शोधालेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वर्ष 2004 में भारत सरकार ने प्राचीन विरासत को स्वीकार करने और संरक्षित करने के लिए भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रुप में नामित करना शुरू किया था। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती है, जो प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील का पत्थर होती हैं। शास्त्रीय भाषा के रूप में भाषाओं को शामिल करने से रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा होंगे, खासकर अकादमिक और रिसर्च के क्षेत्र में। इसके अलावा, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
3 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित केबिनेट की बैठक में केंद्र सरकार ने प्राकृत, मराठी, पाली, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की घोषणा की थी। 2004 से अब तक कुल 11 भाषाओं को केंद्र सरकार शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे चुकी है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रीय भाषा प्राकृत जनभाषा रही है। इस लोकभाषा का समृद्ध साहित्य मौजूद है जिसके अध्ययन के बिना भारतीय संस्कृति , समाज एवं संस्कृति का अध्ययन अपूर्ण रहता है। प्राकृत भाषा, व्याकरण और साहित्य का इतिहास ढाई हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। वैदिक काल में भी यह जनभाषा के रूप में विख्यात रही है। भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिए थे। प्राकृत भाषा से देश की कई भाषाओं उप भाषाओं और बोलियों का विकास हुआ। यह भाषा अनेक चुनोतियों को पारकर वर्तमान में एक सशक्त, जीवंत एवं समृद्ध रूप में हमें प्राप्त होती है।
भारत सरकार ने इस भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित कर स्तुत्य कार्य किया है। हम सभी को इस प्राचीन भाषा के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए आगे आना चाहिए।
खुद माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृत भाषा के शास्त्रीय दर्जा प्रदान करने के बाद एक्स पर पोस्ट में लिखा था कि ‘ प्राकृत और पाली भारत की मूल संस्कृति हैं, ये आध्यात्मिकता , ज्ञान और दर्शन की भाषाएं हैं। शास्त्रीय भाषाओं के रूप में उनकी मान्यता भारतीय विचार, संस्कृति और इतिहास पर उनके कालातीत प्रभाव का सम्मान करती है, मुझे विश्वास है कि शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने के कैबिनेट के फैसले के बाद अधिक लोग उनके बारे में जानने के लिए प्रेरित होंगे।
सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जयकुमार निशान्त ने की। इस मौके पर निर्देशक डॉ नरेंद्र कुमार जैन, ब्र. साकेत भैया,मनोज शास्त्री, डॉ निर्मल जैन, संजीव शास्त्री, डॉ आशीष आचार्य, डॉ राजेश शास्त्री, डॉ सचिन शास्त्री, शील चंद्र शास्त्री, अनिल साहित्याचार्य, पंडित मनीष जैन, अखिलेश शास्त्री सहित इक्यावन विद्वान उपस्थित रहे। संचालन शीलचंद्र जैन शास्त्री ने किया।
उत्कर्ष समूह भारत और सिद्धक्षेत्र कमेटी भारत के पदाधिकारियों ने संगोष्ठी के कुशल संयोजन और शोधालेख प्रस्तुति के लिए डॉ सुनील संचय का तिलक, माला, शाल, श्रीफल, साहित्य, स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र भेंटकर सम्मानित किया।