भदोही। गीता ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी है। कर्म करने की जैसी प्रेरणा हमें गीता से मिलती है वैसी प्रेरणा अन्य ग्रंथों में नही मिलती। इसमें कोई संदेह नहीं कि गीता में ज्ञान, भक्ति और कर्म का अद्भुत समन्वय हैं। उक्त बातें गीता जयंती के अवसर पर रामेश्वर संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ महेश त्रिपाठी ने कही। उन्होंने कहा कि हम सभी को श्रीमद्भगवत गीता से कर्म करने की प्रेरणा लेनी चाहिए। बताया कि मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी जिसे मोक्षदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के समय समरांगण में अर्जुन को गीता का दिव्य उपदेश दिया था। उन्होंने गीता के महत्व को एक श्लोक के माध्यम से बताया कि गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रविस्तरै:। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिसृता। अर्थात् श्रीमद् भगवद्गीता समस्त शास्त्रों का सार है, ज्ञान, विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, सभ्यता, संस्कृति और समृद्धि का तत्व दर्शन करने वाली भगवान् की दिव्य वाणी है। अंत में उन्होंने गीता के उद्देश्य को बतलाते हुए बताया कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। कहा कि व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता, इसलिए स्वयं का आकलन करना बेहद जरूरी है।