गाजियाबाद/ मनुष्य की तरह पशु भी एक समतापी प्राणी होता है। गाय भैंस के शरीर का तापमान 100-101 डिग्री फारनहाइट या 38 डिग्री सेल्सियस होता है।
ठंड से बचाव का समुचित प्रबंध न होने पर शरीर का तापमान धीरे धीरे कम होने लगता है और 86 डिग्री फारेनहाइट से नीचे होने पर हाइपोथर्मिया के लक्षण प्रकट होने लगते हैं और ठण्ड जानलेवा बन जाती है। गाभिन, दुधारू, बीमार कमजोर पशुओं को ठण्ड ज्यादा प्रभावित करती है। दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन घटने लगता है। ठण्ड के समय परजीवी, कीटाणु का आक्रमण होने से भूख में कमी, डायरिया, बुखार, गाभिन पशुओं में गर्भपात हो सकता है।
शारीरिक रूप से कमजोर पशु के ठंड से प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है। बुखार होने या शरीर का तापमान बढ़ने पर बाल खड़े हो जाते है। पशु सुस्त रहता है। मुह का थूथन सुख जाता है, कपकपी भी हो सकती है। कई बार दस्त शुरू हो जाते है जो पशु को बहुत कमजोर कर देते है और दुधारू पशु का दूध घटने लगता है।
पशु के शरीर का तापमान 82 डिग्री फारेनहाइट से कम होने पर जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाता है और बिना चिकित्सा सहायता के ठीक होने की सम्भावना कम ही होती है। अतः तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
नवजात और छोटे बच्चे भी ठंड से अधिक प्रभावित होते हैं। इसका पहला कारण यह है कि तीन महीने तक उनकी प्रतिरोधक क्षमता नही के बराबर होती है । इसलिए ठंड के कारण श्वास सम्बन्धी तथा पाचन तंत्र की बीमारियां पकड़ लेती हैं।
दूसरा कारण यह होता है कि ठंड के कारण पशु का दूध उत्पादन कम होने पर पशु स्वामी बच्चे को पीने के लिए कम दूध छोडते हैं और कुपोषण होने से अनेक बीमारियां पैदा हो जाती है।
इसलिए जाड़े में ठण्ड से बचाव के लिए निम्न कार्य अवश्य करें।
◆ गोवंश एवं अन्य पशुओं के आवास को चारों तरफ से ढकने के लिए पर्दे लगाए।
◆ झूल पहनाए।
◆ फर्श गीला होने व नीचे से ठण्ड के बचाव के लिए पुआल, बुरादा, खराब भूसा, चावल की भूसी, गन्ने की खोई आदि फर्श पर बिछाए और समय समय पर सफाई करें।
◆ कभी कभी चूने का छिड़काव करें।
◆ पिसाब की निकासी की समुचित व्यवस्था करें और गोबर की सफाई करते रहे।
◆ धूप निकलने पर पशु को धूप में बांधे लेकिन शीत लहर चलने पर सीधे हवा के संपर्क में न आने दे।
◆ बहुत अधिक ठण्ड पड़ने पर अलाव जलाए। छोटे बच्चों को बांध कर ही रखे जिससे उन्हें आग से कोई नुकसान न हो।
◆ छोटे/ नवजात बच्चों को खीस अवश्य पिलाये। खीस पिलाने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
◆ हरे चारे, बरसीम के साथ भूसा अवश्य खिलाये।
◆ खनिज मिश्रण, कंसन्ट्रेट राशन की मात्रा बढ़ाये।
◆ पेट के कीड़े की दवा खिलाये।
◆ सुस्त बीमार पशु की तुरंत चिकित्सा कराये।