बहराइच l इंडो-नेपाल बॉर्डर के गांव फकीरपुरी की रूपा अपने 28 हफ्ते के प्रीमैच्योर शिशु को एक विशेष “कवच” में अपने सीने से लगाए रहती हैं, जैसे मादा कंगारू अपने शिशुओं के लिए करती है। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. असद अली फोन कॉल्स के माध्यम से रूपा को शिशु की देखभाल में मार्गदर्शन देते हैं और प्रशिक्षित नर्सें उनके घर जाकर मां और परिवार को शिशु के तापमान, पल्स, और अन्य जरूरी संकेतों की निगरानी करना सिखाती हैं। ताकि आपात स्थिति में तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया जा सके। हिमालय की तलहटी में कंगारू मदर केयर (केएमसी) की इस विधि ने हजारों शिशुओं को नया जीवन दिया है।
बहराइच मेडिकल कॉलेज के इस प्रयोग ने पिछले तीन सालों में 2600 से अधिक प्रीमैच्योर और 1800 ग्राम से कम वजन के बच्चों को स्वस्थ जीवन प्रदान किया है, इतना ही नहीं इनमें से एक 531 ग्राम का भी शिशु है जो प्रदेश का सबसे कम वजन में सरवाइव करने वाला बच्चा है। डॉ. असद बताते हैं कि यह प्रदेश का पहला पायलट प्रोजेक्ट है, जिसे अगस्त 2021 में राइस संस्था के सहयोग से शुरू किया गया था, जिसमें अस्पताल में मां की देखभाल, कंगारू मदर केयर, फोन पर परामर्श, और शिशुओं की घर-घर जाकर स्क्रीनिंग शामिल हैं। सीमित संसाधनों में कारगर है कंगारू केयर –
डॉ. असद के अनुसार प्रदेश में हर 1000 में से 43 शिशु जन्म के बाद जीवित नहीं रह पाते, जिनका मुख्य कारण प्रीमैच्योरिटी (37 हप्ते से पहले) और जन्म के समय कम वजन (2500 ग्राम से कम) है। हर साल प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में करीब 1.5 लाख प्रीमैच्योर शिशु जन्म लेते हैं, लेकिन सभी की अस्पताल में पूरी देखभाल संभव नहीं होती। ऐसे में कंगारू मदर केयर घर पर देखभाल का एक कारगर विकल्प साबित हो रहा है।
डॉ. असद कहते हैं, “लैंसेट की रिसर्च और हमारे अनुभव बताते हैं कि मां की ममता में किसी भी मशीन से अधिक शक्ति है, और इसमें कोई खर्च नहीं आता। कंगारू मदर केयर के प्राकृतिक तरीकों से माँ और शिशु का जुड़ाव बढ़ता है, स्तनपान बेहतर होता है, और शिशु का वजन तेजी से बढ़ता है। यही कारण है कि इस परियोजना की सफलता दर 90 फीसदी से अधिक रही है। मां के अस्वस्थ होने पर, परिवार का कोई भी स्वस्थ सदस्य केएमसी दे सकता है।
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. संजय खत्री बताते हैं कि हर महीने औसतन 70 प्रीमैच्योर शिशुओं की केएमसी विधि से देखभाल की जाती है। 15 प्रशिक्षित नर्सों की टीम 100 किमी तक यात्रा कर 6-8 घंटे तक शिशुओं की निगरानी करती हैं और माताओं को देखभाल के तरीके सिखाती हैं। परियोजना के तहत प्रदेश का सबसे बड़ा 17-बेड का कंगारू मदर केयर वॉर्ड स्थापित किया गया है, जहां माताओं को कंगारू मदर केयर और स्तनपान के महत्व पर जागरूक किया जाता है।