सोनभद्र। देश की लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था मधुरिमा साहित्य गोष्ठी सोनभद्र के निदेशक वरिष्ठ साहित्यकार अजयशेखर की अध्यक्षता में उनके आवास स्थित काव्य कुंज में सरस काव्य संध्या का आयोजन शनिवार शाम को किया गया। जिसमें बतौर अतिथि पारसनाथ मिश्र, रामनाथ शिवेंद्र, जगदीश पंथी, सुशील राही आदि ने अपने वक्तव्य में चुनावी परिदृश्य को उकेरा तथा जाति धर्म से ऊपर उठकर सही शिक्षित जागरूक प्रत्याशी को मत देने तथा शत-प्रतिशत मतदान करने को आवश्यक बताया। ईश्वर विरागी के वाणी वंदना से विधिवत शुभारंभ किया गया। संचालन अशोक तिवारी ने किया। अध्यक्षता करते हुए चिंतक अजयशेखर ने गंभीर रचना हे इन्द्र तुम अहिल्याओं का शीलभंग करते रहो , वे पत्थर बनती रहेंगी, तुम्हारा राज्य निष्कंटक रहेगा। सुना कर सत्ता को नसीहत दिये। ओज व श्रृंगार की बेहतरीन कवयित्री कौशल्या चौहान ने मतदान जागरण करते हुए बूथ पे जाकर वोट दीजिए इससे बनती सरकार, लोकतंत्र का महापर्व है मत करना इंकार सुनाकर वाहवाही बटोरी। प्रद्युम्न तिवारी एड राष्ट्रवाद के कवि ने शत-प्रतिशत मतदान कीजिए लोकतंत्र का भान कीजिए सुनाकर समसामयिक परिदृश्य को उकेरा और सराहे गये। कवयित्री अनुपम वाणी ने शासन से सवाल किया, कब आयेंगे अच्छे दिन? ईश्वर विरागी गीतकार ने दिल्ली का शासक मूक अंधा, राजधानी की सभा में द्युत धंधा सुनाया और करतल ध्वनियों से सराहे गये। नारी सशक्तिकरण पर कवयित्री दिव्या राय ने मत रोक सांवरिया घूंघट में मुझे नींल गगन तक जाने दे। सुनाया और नव जागरण की। असुविधा संपादक वरिष्ठ साहित्यकार रामनाथ शिवेंद्र ने वास्तविकता के धरातल पर सशक्त कसी रचना पंचायत घर में मिली है लाश देखिए सुनाकर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर किये। गीतकार जगदीश पंथी ने संसद को चूल्हे चौके से जोड़ न पायेंगे तो सच कहते हैं ऐ दुनियां वालों हम मर जायेंगे सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध किया। प्रभात सिंह चंदेल ने वीर रस का जज्बा जगाते हुए सीमां के पहरेदारों को शत-शत मेरा प्रणाम,शायर अब्दुल हई ने, रो के बुलबुल ने कहा कैद से रिहा न करो, गुलसितां पर अभीं सैयाद के पहरे होंगे। विकास वर्मा ने सद्भावना समरसता की पंक्ति, मजहब को अपने घर में ही महदूद कीजिए, जब-जब सड़क पर निकला है तौहीन हुई है सुनाया। दिलीप सिंह दीपक ने तुम सबकुछ बेच दो लेकिन हिंदुस्तान मत बेचो सुनाकर स्वस्थ वातावरण का निर्माण किया। शायर अशोक तिवारी ने गांधीजी को याद करते हुए हिंसा का दावानल जब बस्तियां जलाये, मुझे तुम याद आये,, सुनाकर राष्ट्र पिता को नमन किया। कवि धर्मेश चौहान ने,, राष्ट्र द्रोहियो के लिए अंगार हूं मैं, सुनाकर देश की वंदना किये। लोकभाषा भोजपुरी के कवि दयानंद दयालू ने मटिये बा ज़िनगी मटिये परान जै माई हिंदी जय-जय हिन्दुस्तान सुनाकर भारत भारती को नमन किया। इस अवसर पर बार कौंसिल इलाहाबाद सदस्य कवि राकेश शरण मिस्र, पारसनाथ मिश्र, सुशील राही, जयराम सोनी, सुधाकर स्वदेश प्रेम, कु सृजा, दिवाकर द्विवेदी मेघ आदि कवियों ने ऋंगारओज हास्य व्यंग गीत गजल मुक्तक छंद सवैया सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आयोजन देर शाम तक चलता रहा। इस अवसर पर रिषभ, शिवमोचन फारुख अली, हाशमी, ठाकुर कुशवाहा, नीतिन सिंह, जयशंकर त्रिपाठी, गोपाल पाठक, गोलू आदि रहे। आभार आयोजन समिति के प्रदुम्न त्रिपाठी एड निदेशक शहीद स्थल प्रवंधन ट्रस्ट करारी सोनभद्र ने व्यक्त किया।