peom: मेरे बचपन का एक हिस्सा सखा वही चिड़िया गौरैया

"चिड़िया गोरैया..."
मेरे बचपन का एक हिस्सा सखा वही चिड़िया गौरैया ।
मेरे बचपन के साथ-साथ वो साथी जाने कहां खो गया ।।
जान से प्यारा प्राण से प्यारा राजदुलारा नन्नी सी गोरैया ।
नामो निशान खत्म हुआ पत्थर दिल इंसां समझे क्या ।।
उठना साथ घूमना साथ खाना कहां खो गए वो दिन ।
तुझ बिन सब सूना सूना तन्हा-तन्हा घर बार विहिन ।।
अभी भी याद है मुझे वो पल वो आखिरी मुलाकात ।
जब तू चल बसा छोड़कर हम सबके हाथ और साथ ।।
हम सब दोस्त मिलकर जानाज़ा सजाया खोदा कब्र ।
चेहरा सबका गमगीन खो गया वो मासूमियत वो सब्र ।।
फूल लाया कोई अगरबत्ती कोई लाया था लकड़ियां ।
तू गया बचपन गया जग के नजरों में था बस चिड़िया ।।
तुझे दफनाने के बाद भी तीन दिनों तक याद आता रहा ।
हल्का सा कब्र बिखरा देख कितनों पे दोष लगाता रहा ।।
जब तू कब्र से गायब हुआ तो कोसने लगा कितनों को ।
बिल्ली कुत्ते कौवा से दुश्मनी किया ताने मारा अपनों को।
वो वक्त याद करके अफसोस होता है रहा बैरी दुनिया ।
दुनिया के नजरों में चिड़िया सही मेरा तो हमदम गोरैया।। कितना रोया तेरे गुज़र जाने के बाद ये जमाना क्या जाने
आज इंसां का क़ातिल इंसां चिड़ियों का जान क्या जाने।
आज इंसां की जान की कीमत नन्नी गोरैया से भी कम है ।
इंसां की बदहाली देख नन्नी गोरैया जाने का न गम है ।।
जब इंसान के बस्ती में इंसान ही आग लगाएगा ।
तब ना कोई मासूम हमारी मौत पर आंसू बहाए ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'