October 8, 2024

जम्मू कश्मीर और तीन तलाक पर सरकार के लिए गए फैसले के बाद से देश की अपेक्षाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से और भी बढ़ गई। ऐसे में लोगों के जेहन में यह सवाल पिछले काफी वक्त से था कि तीन तलाक और अनुच्छेद 370 के बाद मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अधिसूचना आखिर कब जारी करेगी। 75 साल पहले पाकिस्तान को अपना मुल्क चुनने वाले लोग भारत को अपना मुकद्दर चुनने के बराबर हो जाएंगे। घुसपैठियों को देश से बाहर करने की बात मोदी सरकार द्वारा समय-समय पर की भी जाती रही है। इस दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ। वर्तमान में नागरिकता संशोधन विधेयक को भी इसी कवायद का हिस्सा माना गया। संसद में पारित होने के पांच साल बाद केंद्र ने 11 फरवरी को नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू कर दिया। यह अधिसूचना भारत निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले आई है। इसलिए यह जानना जरूरी है नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करके भाजपा को लोकसभा चुनाव में कितना फायदा मिलेगा?
गौरतलब है की नागरिकता संशोधन अधिनियम की अधिसूचना भले ही अब जारी हुई हो पर कानून 5 साल पहले ही संसद में पारित हो चुका है। देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते इसे अभी तक लागू नहीं किया गया था। सवाल उठ रहा है कि, अचानक क्या ऐसी मजबूरी आ गई कि ऐन लोकसभा चुनावों के पहले इसे लागू किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने का एक मात्र कारण चुनावी लाभ लेने की कोशिश है। लेकिन लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए अपने वोटर्स से किए गए वादे पूरा करना क्या अपराध माना जा सकता है? भाजपा शुरू से ही कहती रही है कि वो नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करके अपने पड़ोसी देशों से आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करेगी। सरकार का कहना है कि इस कानून से मुस्लिम लोगों को कोई खतरा नहीं है। किसी की भी नागरिकता नहीं छीनी जाएगी। कहा जा रहा कि भाजपा ऐन चुनावों के पहले इसे लागू करके बहुत बड़ी माइलेज लेने की फिराक में है। पर वास्तव में देखा जाए तो भाजपा को इससे कुछ खास नहीं मिलने वाला है। अगर विपक्ष इसका विरोध न करे तो भाजपा को फायदा की जगह नुकसान भी हो सकता है। क्योंकि पूरा नॉर्थ ईस्ट जिसमें असम भी शामिल है इसका विरोध कर रहा है।
विपक्ष का आरोप है कि ऐन चुनाव के मौके पर जानबूझकर सरकार इस कानून को लागू कर रही है इसलिए इसका मंतव्य स्पष्ट है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश का बयान है कि भाजपा चुनावी फायदे के लिए ऐन चुनाव के पहले इसे लागू कर रही है। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर बहुत दिनों से ये बात कर रहे हैं कि चुनाव के पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू कर दिया जाएगा। दोनों नेता बंगाल की चुनावी सभाओं में बार-बार देशभर में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने का दावा करते रहे हैं।

ज्ञात हो कि भाजपा के लिए पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। भाजपा सोचती है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को पार्टी के प्रति ध्रुवीकृत किया जा सकता है। दरअसल भाजपा ये कानून खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है के लिए ही लेकर आ रही है। क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम से जिन राज्यों में जितने लोगों को नागरिकता मिलेगी उससे तो पार्टी स्थानीय चुनाव भी नहीं जीत सकती है। दरअसल भाजपा जानती है कि इस मुद्दे का विपक्ष जमकर विरोध करेगा। विपक्ष जितना इस मुद्दे का विरोध करेगा उतना ही भाजपा को फायदा पहुंचेगा।भाजपा यह साबित करने की हर संभव कोशिश करेगी कि विपक्ष एंटी हिंदू है और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए यह विरोध कर रहा है। अगर विपक्ष इस मुद्दे का विरोध न करके भाजपा की साजिश में ट्रैप होने से बच सकती थी । राजनीतिक विश्लेषको के अनुसार नागरिकता संशोधन अधिनियम का कानून केवल लोगों को नागरिकता देने का कानून है। इसमें किसी से नागरिकता छीनने की बात नहीं कही गई है। लेकिन पिछली बार शाहीन बाग में हुए प्रदर्शनों को ध्यान में रखते हुए इस बात की पूरी संभावना बढ़ सकती है कि इसे मुस्लिम समाज के विरोध में पेश किया जाए। इससे लोगों में भ्रम और इसका विरोध बढ़ सकता है। लेकिन इसका विरोध जितना ज्यादा होगा, उसका असर और ज्यादा हो सकता है। यानी लोकसभा चुनावों के ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करना भाजपा का सोचा समझा और बहुत बेहतर तरीके से खेला गया कार्ड है। 2024 के चुनाव परिणाम पर भाजपा के संदर्भ में इसका बेहतर असर देखने को मिल सकता है।

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं। इनकी आबादी अच्छी खासी है। ये लोग बांग्लादेश से आए हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने से इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। पिछले लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को मतुआ समुदाय ने भर-भर कर वोट दिया था। 2024 चुनाव में भाजपा को अगर फिर से मतुआ समुदाय का वोट पाना है तो यह कानून इसके लिए मददगार साबित होगा।2014 चुनाव में बंगाल में भाजपा के पास सिर्फ दो लोकसभा सीट थी।इन्ही समीकरणों के बल पर 2019 चुनाव में बढ़कर 18 सीटें हो गईं और 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद बंगाल (42) तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।
बंगाल में मतुआ समुदाय की आबादी करीब 30 लाख है। नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में कम से कम लोकसभा की चार सीट पर इस समुदाय का प्रभाव है। ममता बनर्जी ने ऐलान किया है कि वो पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू नहीं होने देंगी। ममता जितना अड़चन डालती हैं तो भाजपा उन पर उतना ही मुस्लिम परस्ती का आरोप लगाकर कठघरे में खड़ी करेगी। भाजपा को बंगाल ही नहीं पंजाब और दिल्ली में भी सिखों का भी समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में सिख पलायन कर रहे हैं, उनमें बड़ी संख्या कनाडा और इंडिया में माइग्रेट करना चाहती है।
देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध का आधार यह है कि मुसलमानों को क्यों नहीं इसमें शामिल किया गया है। पर पूर्वोत्तर विरोध की अलग वजह हैं। पूर्वोंत्तर में बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक हिंदुओं को नागरिकता मिलने से इन छोटे राज्यों में अलग तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है।पूर्वोत्तर के मूल निवासियों का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा के मूल लोग सजातीय हैं। इनका खानपान और कल्चर काफी हद तक मिलता है। लेकिन कुछ दशकों से यहां दूसरे देशों से अल्पसंख्यक समुदाय भी आकर बसने लगा। खासकर बांग्लादेश अल्पसंख्यक बंगाली यहां आने लगे।जिसके चलते यहां की मूल निवासियों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
मेघालय में वैसे तो गारो और खासी जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, पर बंगाली हिंदुओं के आने के बाद उनका दबदबा हो गया। इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं। सरकारी नौकरियों में बड़े पदों पर भी बंगाली समुदाय काबिज हो चुका है। असम के हाल सबसे खराब माने जा रहे हैं। राज्य में करीब 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं।स्थानीय लोगों का दावा है कि जनगणना से असल स्थिति साफ नहीं होती क्योंकि सेंसस के दौरान अवैध लोग बचकर निकल जाते हैं।
लेकिन एक ट्रेंड यह भी देखने को मिला है जहां कहीं भी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को बसाया गया है स्थानीय जनता ने उनका विरोध किया है। पिछले साल राजस्थान से ऐसी कई खबरें आईं थीं जिसमें स्थानीय आबादी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को कहीं अन्यत्र बसाए जाने की मांग कर रही थी।कहीं भी स्थानीय जनता नहीं चाहती कि बड़ी संख्या में दूसरे लोग आकर उनके जनजीवन को प्रभावित करें। पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि जब तक यह संख्या मुट्ठी भर लोगों की रहेगी तब तक विरोध नहीं होता है । संख्या बढ़ते ही विरोध शुरू हो जाता है। मुंबई में उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों का विरोध, तमिलनाडु में बिहारियों का विरोध इसी आधार पर होता है।

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