October 3, 2024

जरवल/बहराइच। देखो देखो देखो दिल्ली का कुतुब मीनार देखो…! लता मंगेशकर द्वारा गाया गया यह गीत 1972 में बनी दुश्मन फिल्म का गीत सुनते ही बायोस्कोप की याद जरूर तरो-ताजा हो जाती है लेकिन नई पीढ़ियों के लिए बायोस्कोप एक कहानी बनकर रह गई है। बताते चले रांची में पहली बार बायोस्कोप की स्थापना 1924 में हुई थी तब से आज तक सिनेमा के रुपहले पर्दो के साथ मोबाइल फोन ने इसे काफी प्रभावित कर दिया। जिससे बायोस्कोप अब कहीं दिखाई ही नहीं पड़ता जिसमे दुनिया की सारी चीजे घर बैठे बच्चे देख सकते थे।वैसे इतिहासकारों की माने तो पता चलता है की बायोस्कोप एक मूवी प्रोजेक्टर है जिसे 1895 में जर्मन के एक आविष्कारक और फिल्म निर्माता ने विकसित किया था। इसे साधारण भाषा में बायोस्कोप को सिनेमाघर व चलचित्र दर्शी भी कहते हैं। बायोस्कोप शब्द नया नहीं है ये शब्द ग्रीक (बायोस,जीवनः स्कोपीन,इसके देखने के लिए)से बना है और आंख आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में इसकी पारंपरिक परिभाषा जीवन का एक दृष्य या सर्वेक्षण के रूप में 1812 मे एक किताब मे लिखा भी गया है। वैसे आज भी बिहार में एक साप्ताहिक संग्रहालय मे बायोस्कोप बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है जिसे देखने के लिए बच्चे कतारबद्ध होकर देश-दुनिया का नजारा देखकर खुशी का इजहार भी करते हैं। आज आधुनिकता की चकाचौध मे बायोस्कोप का अस्तित्व पूरी तरह मिट चुका है।जो नई पीढ़ियों के जुबान पर किस्से कहानियों से बढ़ कर कुछ नही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *