September 30, 2023

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सपा के अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव की चुनावी परीक्षा होगी, लेकिन इस बार भी अखिलेश की राह आसान नहीं लग रही है। अब तो अखिलेश के पास कोई नया ‘प्रयोग’ भी नहीं बचा है। वह कांग्रेस और बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं। राष्ट्रीय लोकदल और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी का भी साथ करके देख लिया है, लेकिन कोई भी प्रयोग उनकी हार के सिलसिले को रोक नहीं पाया। स्थिति यह हो गई है कि आज की तारीख में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव बिल्कुल ‘तन्हा’ नजर आ रहे हैं।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुसलमानों की नाराजगी की वजह पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि मुसलमानों को अखिलेश से सबसे बड़ी यही नाराजगी है कि सपा प्रमुख मुसलमानों के समर्थन में नहीं बोल रहे हैं। मुस्लिम वर्ग का कहना है कि मुस्लिमों को टारगेट किया जा रहा है। उन पर हो रही कार्रवाई के खिलाफ अखिलेश कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं। यहां तक कि मुसलमानों की समस्याओं और उत्पीड़न के खिलाफ अखिलेश शायद ही कभी मुंह खोलते हों। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के गठन के समय मुलायम सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले आजम खान की अनदेखी भी अखिलेश पर भारी पड़ रही है। कुछ राजनैतिक जानकार कहते हैं कि मुसलमानों की नाराजगी बेवजह नहीं है, वह चाहते थे कि विधानसभा में आजम खान को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाये। इसके पीछे का तर्क देते हुए मुसलमानों का कहना था कि अगर सपा चुनाव जीत जाती तो अखिलेश मुख्यमंत्री बनते, लेकिन हार के बाद तो कम से कम आजम को उचित सम्मान दिया जाता। मुस्लिम नेताओं की नाराजगी के एक बड़ी वजह यह भी है। चुनाव के समय मुसलमान वोटर तो सपा के पक्ष में एकजुट हो जाते हैं, लेकिन सपा के कोर यादव वोटर्स अखिलेश से किनारा कर रहे हैं। पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं का कहना है कि चुनाव में मुस्लिमों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के लिए वोट किया, लेकिन सपा के यादव वोटर्स ही पूरी तरह से उनके साथ नहीं आए। इसके चलते चुनाव में हार मिली। इसके बाद भी मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर अखिलेश का नहीं बोलना नाराजगी को बढ़ा रहा है।

संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. शफीकुर्ररहमान बर्क अपनी ही पार्टी पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि भाजपा के कार्यों से वह संतुष्ट नहीं हैं। भाजपा सरकार मुसलमानों के हित में काम नहीं कर रही है। फिर वह तंज कसते हुए कहते हैं कि भाजपा को छोड़िए समाजवादी पार्टी ही मुसलमानों के हितों में काम नहीं कर रही। सपा के सहयोगी रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. मसूद ने 2022 में विधान सभा चुनाव नतीजे आने के कुछ दिनों बाद ही अपना इस्तीफा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेज दिया था। इसमें उन्होंने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा था। अखिलेश को तानाशाह तक कह दिया था। सपा पर टिकट बेचने का आरोप भी लगाया था।

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नब्बे के दशक तक उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था। तब तक यूपी में कांग्रेस मजबूत स्थिति में रही, लेकिन, राम मंदिर आंदोलन के चलते मुस्लिम समुदाय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *