मथुरा । जनपद में इस समय यमुना नदी के किनारे बसे शहर और गाँव में बाढ-बाढ का हल्ला मचा हुआ है, कान्हा की नगरी भी इससे अछूती नहीं है, हालांकि जिला प्रशासन लगातार मुस्तैदी बरत रहा हैं, बाढ चौकियां बनाई गई हैं और राहत शिविर बनाए गये हैं, राहत शिविरों में लोग पहुंच रहे हैं, कालाॅनियों में पानी भरा हुआ है, साथ ही एनडीआरएफ की टीम भी लगी हुई हैं, लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा रहा है, वहीं जिस तरह सूखा और गरिया घोषित होती है, ठीक वैसे ही बाढ को लेकर जिम्मेदार साफ-साफ कुछ भी बोलने से बच रहे हैं ।
सोमवार की रात मथुरा में यमुना के पानी ने खतरे के निशान को छूआ, इससे पहले ही बाढ का होहल्ला मचना शुरू हो गया था, यमुना खतरे के निशान से नीचे बह रही थी और काॅलोनियों जलमग्न हो रही थीं, लोगों को राहत शिविरों में शिफ्ट किया जा रहा था, वृंदावन से लेकर गोकुल नगरी तक दर्जनों कॉलोनियों में पानी घुस चुका था, जब यमुना ने खतरे के निशान को छूआ तो यमुना के पानी ने इधर-उधर फैलना शुरू कर दिया, यमुना में मांट, सदर और महावन तहसील के एक सैकड़ा से भी ज्यादा गांव यमुना नदी के किनारे बसे हैं, सबसे ज्यादा बुरी स्थिति यमुना खादर में नव विकसित कॉलोनियों की है ।
यमुना खादर में वृंदावन से गोकुल तक करीब 250 से भी अधिक काॅलोनियों को नियम विरूद्ध विकसित किया जा चुका है, इन काॅलोनियों में ही भयावह स्थिति होती है, तमाम काॅलोनी तो ऐसी हैं जो हर साल इस तरह की समस्या से जूझती हैं जबकि तमाम काॅलोनियां तब यमुना के पानी की जद में आ जाती हैं जब जलस्तर खतरे के निशान पर पहुंचने लगता है, एनजीटी, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के तमाम आदेश इस संबंध में आ चुके हैं, इसके बावजूद भी इस अवैध विकास कार्यों पर लगाम नहीं लग पा रही है, कॉलोनाइजर मुनाफा कमाकर निकल जाते हैं जबकि वहां रहने वाले लोगों पर कार्यवाही की तलवार लटकी रहती है, यमुना के उफान को देखकर लोग इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि अगर बाढ़ की स्थिति वास्तव में बनी तो मंज़र भयावह होगा ।